नीलम संजीव रेड्डी : भारत के एकमात्र निर्विरोध चुने गए राष्ट्रपति।

नीलम संजीव रेड्डी एक ऐसे राष्ट्रपति थे, जिन्होंने आजादी से पहले भी देश हित में काम किया और आजादी के बाद भी देश के लिए काम किया।

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Neelam Sanjeeva Reddy
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjeeva Reddy) की भूमिका एक युवा नेता के रूप में शुरू हुई थी। (ट्विटर)

एक भारतीय राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता कार्यकर्ता और भारत में छठे राष्ट्रपति, नीलम संजीव रेड्डी का जन्म आज ही के दिन यानी 19 मई 1913 को आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के इलुरी नामक गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हाई स्कूल अडयार, मद्रास से पूरी हुई और आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने आर्ट्स कॉलेज अनंतपुर में दाखिला लिया था।

यह वह समय था, जब पूरा भारत स्वतंत्रता की अपनी लड़ाई लड़ रहा था। प्रत्येक युवा वर्ग मानों स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने को तत्पर था और मात्र 18 वर्ष की आयु में ही नीलम संजीव रेड्डी भी अपनी पढ़ाई छोड़ कर देश में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjeeva Reddy) की भूमिका एक युवा नेता के रूप में शुरू हुई थी। शुरू में वह एक छात्र सत्याग्रह से जुड़े थे और गांधी से प्रभावित होकर, छात्र जीवन में ही उन्होंने अपना पहला सत्याग्रह किया था। बीस वर्ष की उम्र तक नीलम संजीव रेड्डी राजनीति में काफी सक्रिय हो चुके थे और सन 1936 में पहली बार आंध्र प्रदेश कांग्रेस (Congress) समिति के सामान्य सचिव के रूप में निर्वाचित हुए थे। जिसे APPCC के नाम से भी जाना जाता था। यह उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक स्थानीय शाखा थी और नीलम संजीव रेड्डी ने अगले दस वर्षों तक APPCC के सचिव के रूप में कार्य किया था।

1940 के दशक में शुरुआती दिनों में गांधी (Mahatma Gandhi) जी एक नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” शुरू किया था। यह उस समय का राष्ट्रव्यापी आंदोलन था, जिसका एकमात्र उद्देश्य अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालना था और देश के सबसे बड़े आंदोलन में नीलम संजीव रेड्डी ने अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई थी। हालांकि यह आंदोलन शांतिपूर्ण विरोध के रूप में शुरू हुआ था। लेकिन फिर भी ब्रिटिश सरकार ने अपनी दमनकारी नीति के तहत कई कांग्रेस नेताओं को जेल में डाल दिया था। 

राजनीतिक जीवन!

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नीलम संजीव रेड्डी आज भी एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो निर्विरोध चुने गए थे| (Wikimedia Commons)

आंदोलन का हिस्सा होने के कारण 1940 – 45 के बीच नीलम संजीव रेड्डी कई बार जेल गए थे। जेल से निकलने के बाद नीलम संजीव रेड्डी ने अपना ध्यान राजनीति की ओर अग्रसर किया और 1946 में मद्रास सभा के लिए चुने गए। बाद में मद्रास से ही भारतीय संविधान सभा के सदस्य के रूप में भी उनका चुनाव किया गया था।

उसके बाद 1951 में उन्होंने आंध्र प्रदेश के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की थी। 1953 में जब आंध्र प्रदेश राज्य का गठन हुआ था, तो नीलम संजीव रेड्डी यहां के पहले उपमुख्यमंत्री बने थे। देखते ही देखते 1956 में आंध्र प्रदेश राज्य के पहले मुख्यमंत्री का पद भी उन्होंने ही संभाला था। लेकिन कुछ कारणों के चलते 1962 में नीलम संजीव रेड्डी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। एक सीएम के रूप में नीलम संजीव रेड्डी का कार्यकाल काफी प्रभावशाली रहा था। 

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1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। तब जयप्रकाश नारायण की अध्यक्षता में जनता पार्टी बनाने के लिए कई विपक्षी दलों को एक साथ लाया गया था। नीलम संजीव रेड्डी को भी आमंत्रित किया गया और उन्होंने अपना पूरा समर्थन दिया था। 1977 में जब राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव की घोषणा हुई तब नीलम संजीव रेड्डी ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा था और वह उस समय भारत के निर्विरोध छठे राष्ट्रपति के रूप में चुने गए थे। जिस समय रेड्डी, राष्ट्रपति बने थे, वह मात्र 64 वर्ष के थे और भारत के सबसे कम उम्र के राष्ट्रपति बने थे। 

नीलम संजीव रेड्डी आज भी एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो निर्विरोध चुने गए थे। नीलम संजीव रेड्डी का राजनीतिक जीवन काफी प्रभावशाली रहा था। एक आम चेहरे से, देश के लोकप्रिय नेता बने थे रेड्डी। नीलम संजीव रेड्डी एक ऐसे राष्ट्रपति भी थे, जिन्होंने आजादी से पहले भी देश हित में काम किया और आजादी के बाद भी देश के लिए काम किया।
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