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यूं तो आस्था को किसी पैमाने पर परखा नहीं जा सकता, पर मंदिर जीर्णोद्धार के इच्छुक भक्तों में शिव आराधकों की तादाद सबसे ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा घोषित पर्यटन संवर्धन योजना के तहत एक ‘विधानसभा-एक पर्यटन केंद्र’ योजना के लिए 373 विधायकों की ओर से आए प्रस्तावों में से सीधे करीब 52 शिव मंदिरों से जुड़े हैं। शिव के अन्य नामों दुग्धेश्वर, कैलाश, महादेव, गौरी शंकर, भुजंगनाथ, तपेश्वरनाथ और मनकामेश्वर आदि नामों को जोड़ दें तो यह संख्या और अधिक हो जाएगी। मालूम हो कि मुख्यमंत्री पर्यटन संवर्धन योजना के तहत योगी सरकार हर विधानसभा के किसी एक पर्यटनस्थल पर बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए 50 रुपये लाख देती है। इसमें विधायक अपनी निधि या अन्य स्रोतों से भी खर्च कर सकते हैं। सरकार का मानना है कि इससे हर विधानसभा क्षेत्र में एक पर्यटन स्थल पर बुनियादी सुविधाएं बढ़ने से वहां स्थानीय लोगों की आवाजाही और बढ़ेगी। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार का अवसर भी बढ़ेंगे। सरकार की मंशा को पूरी करने में गांव-गिरांव की आस्था के केंद्र वहां के शिवालय बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं।
क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी कीर्ति ने बताया, “कोविड के दौरान लोगों का बाहर जाना बंद है। ऐसे में स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार तेजी से काम कर रही हैं। इसके लिये यूपी हर विधानसभा में कोई न कोई धार्मिक या अन्य कोई पर्यटक स्थल है, उसको पर्यटन की दृष्टि से सुसज्जित रखने का काम किया जा रहा है। जैसे कि संपर्क मार्ग, प्रकाश शौचालय ,पीने का पानी आदि की व्यवस्था को दुरुस्त करना है। काफी विधानसभा में काम शुरू है। अक्टूबर नवम्बर तक सभी काम पूरा करना है। इसका बजट 50 लाख रुपये रखे गए हैं।”
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पंडित गिरीश्वर कहते हैं, “भौतिकवादी जीवन मे भी संतस्वरूप और योग के अधिष्ठाता भगवान शिव की स्वीकार्यता का निर्विवाद प्रमाण है। शिव अनादि हैं और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समग्र ब्रह्मांड उनमें समाहित है। अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि ही शिवमय है। ‘वेदो शिवम, शिवो वेदं’ अर्थात वेद ही शिव हैं और शिव ही वेद हैं का आख्यान उनकी सर्वस्वीकार्यता और अनिर्वचनीय महत्ता का हर युग में पर्याय है। शिव भगवान श्रीराम के भी आराध्य हैं। रामचरित मानस में कई जगह इसका जिक्र भी है। मसलन लंका पर विजय के लिए समुद्र पार करने के लिए पुल बनाने के पहले श्रीराम ने रामेश्वरम में शिव की पूजा की थी।”
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यह हम सबका सौभाग्य है कि तीनों लोकों से न्यारी शिव की अतिप्रिय काशी उत्तर प्रदेश में है। मान्यता है कि भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी दुनिया की प्राचीनतम जीवंत नगरी काशी के कोतवाल बाबा विश्वनाथ यानी शिव खुद हैं। सावन का पूरा महीना ही शिव के नाम है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में शिव की स्वीकार्यता स्वाभाविक है। लगभग हर गांव में तालाब या पोखरे के किनारे छोटे-बड़े शिवालयों का होना इसका प्रमाण है। अनेक गांवों में स्वप्रस्फुटित शिवलिंग शिवालयों में विराजमान हैं। शिव की स्वीकार्यता का आलम यह है कि पहले गांवो में कुंए के किनारे और घर के आंगन में भी एक वेदी पर शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा होती रही है।” (आईएएनएस-SM)