Happy Shivratri 2021: श्रावण माह की शिवरात्रि का महत्व

श्रावण माह की शिवरात्रि के इस पावन पर्व पर सभी शिव भक्तों को ढेरों शुभकामनाएं।

Shivratri
सावन का यह माह धार्मिक दृष्टि से बहुत खास माना जाता है। (Pixabay)

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एक वर्ष में कुल 12 शिवरात्रि मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दर्शी तिथि को शिवरात्रि मनाई जाती है। लेकिन हम सभी जानते हैं कि यह माह श्रावण का चल रहा है। सावन का यह माह धार्मिक दृष्टि से बहुत खास माना जाता है। श्रावण माह की शिवरात्रि पर भक्त कावड़ में जल भर कर लेकर आते हैं और उसी जल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है।

श्रावण माह की शिवरात्रि का महत्व इसलिए होता है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव अपने पूरे परिवार समेत धरती पर विराजते हैं। इसके अतिरिक्त यह भी मान्यता है कि इस महीने में भगवान शिव अपने रुद्र रूप में सृष्टि का संचालन करते हैं। इसलिए इस अवसर पर पूरे विधि – विधान से भगवान शिव और गौरी माता की पूजा की जाती है।

श्रावण माह की शिवरात्रि पर भक्त कावड़ में जल भर कर लेकर आते हैं और उसी जल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। (Pixabay)

इस मौके पर भारी संख्या में शिव भक्त अपने आराध्य के दर्शन के लिए मंदिर जाते हैं। दूध और जल से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। कहते हैं कि श्रावण माह के महीने में भगवान शिव की पूजा करने से सभी दोष दूर हो जाते हैं। वैवाहिक जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। श्रावण माह की शिवरात्रि का तो अपना ही महत्व है इसके अतिरिक्त फाल्गुन मास में मनाई जाने वाली शिवरात्रि जिसे महाशिवरात्रि कहा जाता है उसका भी विशेष महत्व होता है। श्रावण माह की शिवरात्रि के इस पावन पर्व पर सभी शिव भक्तों को ढेरों शुभकामनाएं।

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श्रावण मास में ‘दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌’ पढ़ने से सभी दोष दूर हो जाते हैं।

( दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌ )

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।
कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय
दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय ॥दारिद्रय. ॥2॥

भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय ॥ दारिद्रय. ॥3॥

चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।
मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय ॥ दारिद्रय. ॥4॥

पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय।
आनंतभूमिवरदाय तमोमयाय ॥दारिद्रय. ॥5॥

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय ॥दारिद्रय. ॥6॥

रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय ॥ दारिद्रय. ॥7॥

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।
मातङग्‌चर्मवसनाय महेश्वराय ॥ दारिद्रय. ॥8॥

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्‌।
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्‌।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्‌ ॥9॥

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