बिहार में किसानों की मेहनत मात्र औने-पौने भाव

बिहार में किसानों को औने-पौने दाम पर धान बेचना पड़ रहा है क्योंकि वहां की एजेंसियों ने अभी एमएसपी पर खरीद शुरू नहीं की है।

farmers in bihar have to sell paddy at throwaway prices
बिहार में मुख्य रूप से धान और गेहूं की सरकारी खरीद होती है। (Pixabay)

By – प्रमोद कुमार झा

पंजाब और हरियाणा में सरकारी एजेंसियां विगत एक महीने से किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर धान खरीद रही हैं, लेकिन बिहार में किसानों को औने-पौने दाम पर धान बेचना पड़ रहा है क्योंकि वहां की एजेंसियों ने अभी एमएसपी पर खरीद शुरू नहीं की है।

केंद्र सरकार ने खरीफ सीजन 2020-21 के लिए धान (कॉमन ग्रेड)का एमएसपी 1,868 रुपये प्रति क्विं टल जबकि धान (ग्रेड-ए) के लिए 1,888 रुपये प्रति क्विं टल तय किया है। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, सरकार द्वारा तय एमएसपी पर पंजाब, हरियाणा समेत विभिन्न राज्यों में 28 अक्टूबर तक 179.827 लाख टन धान की खरीद हो चुकी थी, मगर बिहार में जहां इन दिनों विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हैं वहां धान की सरकारी खरीद अभी शुरू भी नहीं हुई है।

बिहार में सहकारिता विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि राज्य में धान की खरीद आमतौर पर 15 नवंबर के बाद ही शुरू होती है। हालांकि राज्य में खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान की कटाई जोरों पर है और रबी सीजन की फसलों की बुवाई के लिए किसानों को पैसों की जरूरत है इसलिए वे औने-पौने भाव पर धान बेचने को मजबूर हैं।

बिहार में कृषि उत्पादों की सबसे बड़ी मंडी पूर्णियां जिला की गुलाब बाग मंडी में शुक्रवार को धान का बाजार भाव करीब 1,260-1,270 रुपये प्रति क्विं टल था। मतलब, इस भाव पर किसानों से मंडी के निजी कारोबारी धान खरीद रहे थे। मंडी के एक कारोबारी ने बताया कि अधिकतम 1,300 रुपये प्रतिक्विं टल तक धान की खरीद हो रही है। गुलाब मंडी में अनाज कारोबारी के मुंशी सिकंदर चौररिसा ने कहा कि मंडी में इन दिनों धान की नई फसल की आवक तेज हो गई है। इस प्रकार बिहार में किसानों को एमएसपी से 600 रुपये प्रतिक्विं टल से कम भाव पर धान बेचना पड़ रहा है।

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बिहार में खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान की कटाई जोरों पर है। (Pixabay)

सहकारिता विभाग के अधिकारी ने बताया कि बिहार में मुख्य रूप से धान और गेहूं की सरकारी खरीद होती है जो पैक्स (प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट सोसायटी) और व्यापार मंडल जैसी एजेंसियों के जरिए की जाती है और किसानों को खरीद की तारीख से तीन दिन के भीतर फसल के दाम का भुगतान किया जाता है।

हालांकि, एक किसान ने बताया कि समय पर भुगतान नहीं होने की वजह से किसान सरकारी एजेंसियों के बजाय निजी कारोबारियों के हाथों अपनी फसल बेचना पसंद करते हैं।

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केंद्र सरकार द्वारा हाल में लागू किए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर पंजाब और हरियाणा में किसान संगठन लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके विरोध की मुख्य वजह यह है कि उन्हें लगता है कि नये कृषि कानून से मंडी व्यवस्था समाप्त होने से किसानों को उनकी फसलों का एमएसपी नहीं मिल पाएगा जबकि केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि किसानों से एमएसपी पर फसलों की पूर्ववत जारी रहेगी।

दरअसल, नये कानून में कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) द्वारा संचालित मंडियों की परिधि के बाहर कृषि उत्पादों की खरीद-बिक्री पर कोई शुल्क का प्रावधान नहीं है, जबकि मंडी में मंडी शुल्क होता है, लिहाजा इससे मंडी में फसलों की खरीद नहीं होने पर मंडी व्यवस्था के समाप्त होने की आशंका है।

गौरतलब है कि बिहार में 2006 में ही एपीएमसी एक्ट को निरस्त कर दिया गया था, जिसके बाद से मंडियों में कोई मंडी शुल्क नहीं लगता है। (आईएएनएस)

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