राम एवं रामचरितमानस से क्यों डरते हैं लिब्रलधारी?

राम वह शक्ति हैं जिनके विचारों और मर्यादा के कारण ही सनातन धर्म के अनुयायियों में एकजुटता और सौहार्द है। फिर "लिब्रलधारियों" को राम नाम से भय क्यों?

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why are liberals afraid of ram and ramcharitmanas and Sanatan Dharma
(NewsGramHindi, साभार: Wikimedia Commons)

राम वह प्रभाव हैं जिनके नाम सुनने मात्र से, कई प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं। राम वह शक्ति हैं जिनके विचारों और मर्यादा के कारण ही सनातन धर्म के अनुयायियों में एकजुटता और सौहार्द है। ‘राम’ नाम का अर्थ है मेरे भीतर का प्रकाश। महाकवि तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामकथा सभी आम हिन्दुओं के लिए ‘रामचरितमानस‘ के रूप में सग्रहित है, जिन्हें कई वर्षों से सभी हिन्दू घरों में श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त हुआ है। साथ ही ‘वाल्मीकि रामायण’ के रचयता महर्षि वाल्मीकि ने बड़े सुंदर भाव से संस्कृत भाषा में राम कथा को उकेरा और जन-जन तक पहुँचाया।

हाल के कुछ समय में राम नाम काफी चर्चा में रहा है। वैसे तो ‘श्री राम’ का नाम सुख एवं शांति के लिए सभी पहर जपा जाता है किन्तु, चर्चा में कई कारणों से इस्तेमाल किया गया है। वह कारण है ‘लिबरल कुप्रचार’ जिन्होंने ‘राम’ इस पवित्र नाम को बदनाम करने का जिम्मा अपने सर उठा लिया है। उन्होंने हर माध्यम से यह बताने कि कोशिश की है कि राम नाम का अस्तित्व नहीं। उन्हें देश में ‘श्री राम’ एवं सनातन धर्म के चाहने वालों से घृणा है और इसी घृणा का इस्तेमाल वह देश और देशवासियों को बदनाम करने में करते हैं।

‘श्री राम’ इन लिब्रलधारियों के सामने इसलिए भी संकट के रूप में खड़े हैं क्योंकि राम सनातन धर्म के अत्यंत मूल्यवान मुकुट हैं और इन्ही के कारण हिन्दू एकजुट खड़ा है। यह चिंता समय-समय पर लिब्रलधारियों के लिए घाव का काम करती क्योंकि वह हिन्दू धर्म की आलोचनाओं में यह भूल जाते हैं कि देश का अधिकांश तबका हिन्दू धर्म से नाता रखता है और अन्य धर्मों में भी श्री राम को पूजा जाता है या आदर किया जाता है।

चाहे वह अयोध्या राम मंदिर का मामला हो या राम सेतु के प्रमाण का हर समय वामपंथियों और अजेंडाधारियों द्वारा उनके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया गया। इन्होंने माता जानकी द्वारा दिए गए ‘अग्नि परीक्षा‘ के माध्यम से श्री राम को ‘महिला विरोधी’ तक बताने में परहेज नहीं किया। इन्हीं आरोपों एवं आहत करने वाले बयानों के कारण इन लिब्रलधारियों की मंशा स्पष्ट हो जाती है।

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(NewsGram Hindi, साभार: Wikimedia Commons)

‘राम’ एवं रामचरितमानस को पहले भी अंग्रेजी लेखकों द्वारा तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है। अंग्रेजों ने भारत पर राज करते समय भर-सक प्रयास किया कि हिन्दुस्तानियों में से राम नाम का प्रेम सदैव के लिए समाप्त हो जाए। किन्तु उनकी यह मंशा अंत तक सफल न हो सकी। इसलिए अंग्रेजी लेखकों ने रामचरितमानस के अपने अंग्रेजी अनुवाद में रामचरितमानस को भारत की बाइबल कहा। जी हाँ! यह बात सत्य है, जे एम मैक्फी ने जब रामचरितमानस का अनुवाद किया तो उन्होंने इसे उत्तर भारत की बाइबल करार दिया। उन्होंने लिखा है कि “हम इसे उत्तर भारत की बाइबल के रूप में स्पष्टता के साथ कह सकते हैं। इसकी एक प्रति लगभग हर गांव में मिल जाती है। और जो व्यक्ति इसका मालिक है जब इसके पन्नों को पढ़ने के लिए सहमत होता है तब वह अपने अनपढ़ पड़ोसियों की कृतज्ञता अर्जित करता है। कवि जितना जानता था उससे कहीं अधिक चतुर था, जब उसने अपनी पुस्तक को स्थानीय भाषा में लिखने पर जोर दिया।”(Ramayan of Tulsidas: Or the Bible of Northern India)

महर्षि तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के साथ-साथ ‘वाल्मीकि रामायण’ को भी इन अंग्रेजी अनुवादकों और बुद्धिजीवियों द्वारा तोड़-मरोड़ कर सामने रखा गया। यहाँ तक की रामानंद सागर द्वारा निर्मित ‘रामायण’ धारावाहिक को भी हिंदू-प्रोपेगैंडा का नाम दिया गया और इस विषय में बड़ी संख्या में तथाकथित सेक्युलरवादियों द्वारा लेख लिखे गए। ऐसा नहीं है की इन लिब्रलधारियों ने श्री राम एवं रामायण पर ही भ्रम फैलाया, बल्कि अन्य हिन्दू देवी-देवताओं पर भी आपत्तिजनक लेख और कविताएं लिखीं।

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रेख्ता फाउंडेशन की सह-वेबसाइट हिंदवी पर ऐसे अश्लीलतापूर्ण कविताओं की भरमार है, जिसका खंडन अति-आवश्यक है। हिंदवी इन तथाकथित क्रान्तिकारी लेखकों के जरिए हिन्दू धर्म एवं राम को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। हिंदवी वेबसाइट की तथाकथित क्रान्तिकारी लेखिका आभा बोधिसत्व ने अपनी कविता में श्री राम की तुलना रावण से की है। वह इसलिए क्योंकि लक्ष्मण ने माँ सीता की रक्षा के लिए शूर्पणखा की नाक काट ली थी, साथ ही यह लिखा कि राम ने राक्षसी शूर्पणखा पर उपहास क्यों किया? इन सबके पीछे दलील यह दी गई कि वह राक्षसी थी तो क्या हुआ, वह थी तो स्त्री।

बहरहाल, इन सभी बातों से यह साफ झलकता है कि देश में हिन्दूफोबिया किस तरह सेक्युलरधारियों पर हावी है और क्यों हिन्दू धर्म में परम आदरणीय एवं एकजुटता के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।

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