भारत और खासकर हिन्दू धर्म में पहनावे का एक अलग महत्व है। देवी-देवताओं के साथ-साथ उनके भक्त भी सात्विक परिधान धारण कर इस धर्म की विविधताओं और समानताओं को दर्शाते हैं। कैलाश पर्वत पर एक व्याघ्र चर्म और भस्म से लिपटे शिव हैं वहीं उन्हीं के समान एक भगवा धोती और भस्म में रमे तपस्वी व सन्यासी।
अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि मंदिर में भगवान राम और अन्य देवताओं का अब नया वस्त्रागार होगा। भगवान राम के भाई – लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न – और भगवान हनुमान अब खादी सिल्क से बने कपड़े पहनेंगे। नए कपड़े खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा प्रदान की गई खादी सिल्क के साथ बनाए गए हैं।
वसंत की शुरुआत – बसंत पंचमी के त्योहार के मौके पर देवताओं को नए कपड़े पहनाना शुरू किया गया है। वस्त्रों का उल्लेख और महत्व हिन्दू धर्म में बड़ी बारीकी से समझाया गया है। भारत वह देश है जहाँ हर महीने एक न एक पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। पर्व के साथ कई अन्य परम्पराएं जैसे उपनयन संस्कार, विवाह जैसे अनेक परम्पराओं और विविधताओं से भारत व्यस्त रहता है।
इन सब में भारत की पहचान है उसका पहनावा। शास्त्रों के अनुसार वस्त्रों का निर्माण देवताओं ने किया था। इन्ही वस्त्रों से हमे शक्ति और रूप मिलता है। भारतीय महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली साड़ी शाक्तित्व प्रदान करती है जिसका उल्लेख वेदों में भी है।
![sari dhoti and hindu dharma](https://hindiimages.newsgram.com/hinuploadedimages/31909d871c3981e6a2ec3fb67ef56789.jpg)
त्योहारों या कर्मकांड के समय जब हम पूजास्थल पर देवी-देवताओं की मंत्रोचारण द्वारा आराधना करते हैं तो मान्यता यह है की वह वहाँ उपस्थित रहते हैं। इसलिए शास्त्रों में यह कहा गया है कि हमें सात्विक परिधान धारण करने से अधिक लाभ होता है। महिलाओं द्वारा पहने जाने वाली साड़ी से मन एवं बुद्धि पर अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव कम पड़ता है। पुरुषों के लिए कुर्ता पैजामा या रेशमी धोती से एक कवच का निर्माण होता है जिससे आध्यात्मिक तत्वों को प्राप्त करना आसान हो जाता है।
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शास्त्रों के अनुसार त्यौहार या कर्मकांड के दौरान देवताओं और असुरों के बीच ब्रह्मांड या वास्तु में भीषण युद्ध होता है जिसका प्रभाव हम पर भी किसी न किसी रूप में पड़ सकता है। उन्ही अनिष्ट ताकतों से खुदको सुरक्षित रखने के लिए हमे पहनावे का ध्यान रखना चाहिए।
हिन्दू धर्म या उनके शास्त्र किसी पर भी उनके व्यक्तिगत पहनावे पर टीका-टिपन्नी नहीं करता है, वह तो यह समझाता है कि किस समय, किस कार्य को करने से, क्या फल मिलेगा और वह सदा से यही करता आ रहा है।