माघ मेला के संत तकनीक के माध्यम से भक्तों से जुड़ रहे

उन लोगों के लिए जो विभिन्न कारणों से माघ मेले में शामिल नहीं हो पाए हैं, जिनमें कोरोना भी शामिल है, उनके लिए अब उम्मीद जगी है। वे तकनीक के माध्यम से इसका हिस्सा बन सकते हैं। माघ मेला में डेरा डाले हुए संतों ने अपने शिष्यों से जुड़ने के लिए तकनीक का इस्तेमाल शुरू कर दिया है।

संत विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने प्रवचन का लाइव स्ट्रीमिंग कर रहे हैं।

आचार्य परमानंद उन लोगों में से हैं जो नियमित रूप से अपने फेसबुक पेज के साथ-साथ यूट्यूब चैनल पर भी अपनी भागवत कथा और राम कथा अपलोड करते हैं।

उनके शिष्य अजय राय ने कहा, “आचार्य के बड़ी संख्या में भक्त हैं जो महामारी के कारण इस साल माघ मेले में नहीं आ सके। वे हमसे संपर्क कर रहे हैं और इसलिए हमने आचार्य के प्रवचनों को लाइव स्ट्रीम करने का फैसला किया। ये प्रवचन पोस्ट किए जाते रहेंगे और कोई भी बाद में उन्हें सुन सकता है।”

अखिल भारतीय दंडी संन्यासी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी ब्रह्माश्रम महाराज ने कहा कि वह नियमित रूप से अपने अनुयायियों के साथ स्काइप और फेसटाइम के माध्यम से निर्धारित समय पर बातचीत करते हैं।

साधु माघ मेला Magh Mela
माघ मेला स्नान पवित्र स्नानों में से एक है।(Pixabay)

उन्होंने कहा, “मेरे भक्तों के असंख्य प्रश्न हैं और मैं इस तकनीक के माध्यम से उनकी समस्याओं को दैनिक आधार पर हल करता हूं।”

माघ मेला में लगभग हर शिविर में एक लैपटॉप और एक टेक-सेवी शिष्य है। व्हाट्सऐप के माध्यम से प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए संदेश भेजे जाते हैं और प्रवचन और अन्य धार्मिक गतिविधियों के लिए कार्यक्रम ईमेल और सोशल मीडिया के माध्यम से बताए जाते हैं।

इस समय प्रौद्योगिकी के अनुकूलन को जो चीज आसान बनाती है वो यह तथ्य है कि बड़ी संख्या में संत उच्च शिक्षित हैं। उदाहरण के लिए, स्वामी प्रणव पुरी के पास कंप्यूटर साइंस में बी.टेक की डिग्री है और उन्होंने एमबीए भी कर रखा है। महंत बजरंग मुनि उदासीन के पास बीबीए (बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन), बीए और एमए जैसी डिग्री भी हैं।

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किन्नर अखाड़े जैसे अखाड़ों से जुड़े संत भी टेक्नो-सेवी हैं। इस वर्ष ‘कल्पवासी’ भी पिछले वर्षों के विपरीत बाहरी दुनिया से कटे हुए नहीं हैं। 76 वर्षीय स्वदेश मौर्य अपने साथ अपना लैपटॉप और सेल फोन लेकर आए हैं। उन्होंने कहा, “यह मुझे अपने परिवार से जुड़े रहने में मदद करता है क्योंकि वे मेरी भलाई के बारे में चिंता करते हैं। इसके अलावा, मैं अपने तम्बू में बैठे आध्यात्मिक प्रवचनों को सुन सकता हूं।”(आईएएनएस)

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