बलूचिस्तान में जबरन गायब किए गए लोगों की संख्या इमरान खान के दौर में बढ़ी

बलूच कार्यकर्ता बलूचिस्तान में जबरन गायब किए जाने के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, संयुक्त राष्ट्र के दूतों और संयुक्त राष्ट्र संधि निकायों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।

Balochistan
परिवारों का आरोप है कि इन लापता व्यक्तियों के जबरन गायब होने, प्रताड़ना और हत्याओं के पीछे पाकिस्तान (Pakistan) की जासूसी एजेंसियां हैं। (Wikimedia Commons)

बलूच कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयास में संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा में स्थित ब्रोकन चेयर मूर्तिकला में ‘बलूचिस्तान लैंड ऑफ एनफोस्र्ड डिसअपीयरेंस’ नामक तीन दिवसीय फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया है, जिसका उद्देश्य कुछ दशकों में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में लापता हुए बुद्धिजीवी और छात्रों के बारे में जागरूकता लाना है। बलूच वॉयस एसोसिएशन द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में एक पोस्टर है, जिसका शीर्षक है, ‘मार्च 1948 से बलूचिस्तान (Balochistan) पाकिस्तान के कब्जे में है’।

बलूच कार्यकर्ता बलूचिस्तान में जबरन गायब किए जाने के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC), संयुक्त राष्ट्र के दूतों और संयुक्त राष्ट्र संधि निकायों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।

परिवारों का आरोप है कि इन लापता व्यक्तियों के जबरन गायब होने, प्रताड़ना और हत्याओं के पीछे पाकिस्तान (Pakistan) की जासूसी एजेंसियां हैं।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) ने कई बार दावा किया है कि उनकी सरकार जबरन गायब होने की प्रथा को समाप्त कर देगी और यहां तक कि मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी ने पीड़ितों के परिवार के सदस्यों से मुलाकात की थी और दावा किया था कि उनकी सरकार इस के अभ्यास में शामिल लोगों को दंडित करने के लिए एक विधेयक पेश करने जा रही है।

लेकिन परिवार के सदस्यों, मीडिया रिपोटरें, मानवाधिकार संगठनों और नागरिक समाज संगठनों के अनुसार, इमरान खान के शासन के दौरान इसे समाप्त करने या कम करने के दावों के बावजूद, जिनेवा प्रेस क्लब द्वारा एक जारी एक नीति संक्षिप्त विवरण के अनुसार, जबरन गायब किए जाने की प्रथा बढ़ गई है।

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मार्च 1948 से बलूचिस्तान (Balochistan) पाकिस्तान के कब्जे में है’| (Pixabay)

वक्ताओं में कनाडा स्थित प्रोफेसर नायला कादरी, एक वरिष्ठ बलूच राजनेता और बलूच पीपुल्स कांग्रेस (बीपीसी) की अध्यक्ष थी। कादरी ने बचपन से ही बलूच राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। उन्होंने बलूचिस्तान में पाकिस्तानी राज्य बलों के अत्याचार का साहसपूर्वक सामना किया है। उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को राज्य की आक्रामकता के खिलाफ उनकी बोल्ड और तेज आवाज के कारण अतिरिक्त न्यायिक रूप से जेल में डाल दिया गया था। उन्हें ‘बलूचिस्तान की लौह महिला’ के रूप में जाना जाता है।

इसमें स्विस स्थित सरदार शौकत कश्मीरी, एक वरिष्ठ राजनेता और यूनाइटेड कश्मीर पीपुल्स नेशनल पार्टी (यूकेपीएनपी) के अध्यक्ष भी शामिल थे। वह अपनी स्कूली उम्र से ही राजनीति में रहे हैं और उन्होंने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी चेतना की आवाज के कारण, उन्हें कई बार अतिरिक्त न्यायिक रूप से जेल में डाल दिया गया था और उन्हें पाकिस्तानी सेना द्वारा बलपूर्वक पकड़ भी लिया गया था, जिसके दौरान उन्हें एकांत में रखा गया है।

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वह और उनकी पार्टी संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संसद सहित विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर और यहां तक कि इस्लामाबाद और रावलपिंडी में भी पीओके में अधिकारों के दुरुपयोग के मुद्दों को लगातार उठाते रहे हैं। बलूच वॉयस एसोसिएशन ने कहा कि बलूच परिवारों को वर्षों से गायब कर दिया गया है।

एक कार्यकर्ता फाजि़ला बलूच ने पहले एक ट्वीट में कहा, “बलूचिस्तान: बंदूक की नोक पर अपने हितों के लिए पाकिस्तान ग्वादर बंदरगाह का निर्माण कर सकता है। वही सरकार अपने बंदूक की नोक पर स्कूल, विश्वविद्यालय, अस्पताल और बहुत कुछ क्यों नहीं बना सकती है। हां यह आसान है, जैसा कि शहीद नवाब अकबर बुगती ने कहा था, वे सिर्फ हमारी राष्ट्रीय संपत्ति चाहते हैं।” (आईएएनएस-SM)

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