यह है वीर गाथा ‘तक्षक’ की

'तक्षक' कन्नौज के राजा नागभट्ट द्वितीय के अंग रक्षक थे और उनके शौर्य के किस्से हर तरफ सुनाई दे रहे थे। तक्षक ने अरब से हुई युद्ध में वीरगति को गले लगा लिया था।

0
937
Takshak the warrior
तक्षक ही वह योद्धा थे जिन्होंने समस्त अरबी सेना को धुल चटाया था। (काल्पनिक चित्र, Pixabay)

“तलवारों पर क्षत्रिय खून आग उगल रहें हैं, देखो उस ज्वाल में कितने मुग़ल जल रहे हैं”

ऐसे ही एक वीर की कहानी दोहराने जा रहा हूँ, एक ऐसी गाथा से आपको परिचित कराने जा रहा हूँ जिसे आज के आधुनिक युग ने भुला दिया है। यह गाथा है शौर्य एवं अतुल्य बलिदान कि, यह गाथा है ‘तक्षक’ की। 

महज़ 8 वर्ष के बालक ने अपने पिता को खोया और साथ ही साथ अपनी माँ और दोनों बहनों को भी खो दिया। तक्षक के पिता सिंधु नरेश दाहिर के सैनिक थे जो मौहम्मद बिन कासिम की सेना साथ हुए युद्ध में वीरगति पा चुके थे। इस युद्ध के बाद अरब सेना ने मानो कहर बरसा दीया हो। कासिम के अभियान में युवा आयु वाले एक भी व्यक्ति को जिन्दा नहीं छोड़ा और न जाने कितने ही मंदिर व मठों को तोड़ दिया गया। 

यह भी पढ़ें: “यह है मेरा जवाब”

वह 8 वर्ष का अनाथ बच्चा अब 32 वर्ष का पुरुष हो चुका था और तो और कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का अंगरक्षक था। तक्षक के मन में कहीं न कहीं बदला छुपा था अपनी माँ व बहनों का बदला अपने पिता का बदला मगर सनातन नियमों को पालन करना उसका पहला कर्तव्य था। 

अरब सैनिक कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे मगर हर बार मुँह की खा कर लौट गए थे, यह इसलिए कि कन्नौज की सेना एक विशाल सेना थी और तक्षक जैसे शूरवीरों से लदी हुई थी। यही कारण था कि हर बार राजपूती योद्धा उन्हें खदेड़ देते किन्तु ‘सनातन नियमों’ का पालन करते हुए नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते। यह युद्ध और हराने का सिलसिला 15 वर्षों से हो रहा था।  

कुछ ही समय पूर्व एक गुप्तचर ने सुचना दी कि अरब के ‘खलीफा’ से सहयोग लेकर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण करने के लिए चल पड़ी है और लगभग दो से तीन दिन में कन्नौज की सीमा पर होगी, इसी विषय पर महाराज की सभा लगी थी। 

नागभट्ट उन राजाओं में से थे जो अपने सभी सेनानायकों का विचार लेकर ही कोई निर्णय लेते थे और आज भी  सेनानायकों से उनका मत पूछा गया। सबको सुनने के बाद  तक्षक- बोले “महाराज, इस बार उन निर्दयी प्राणियों  को उन्ही भाषा में उत्तर देना होगा।” महाराज ने कुछ सोचा और तक्षक को बोले- “अपनी बात साफ़ साफ कहो तक्षक, कई चेहरे दुविधा में दिख रहें हैं।”

तक्षक ने कहा “महाराज अरब सैनिक बहुत क्रूर हैं, हम सनातन नियमों को ताक पर रख कर उन अरबियों को उन्ही की शैली में मुँह तोड़ जवाब देंगे।”

तक्षक के ऐसा कहते ही सभा में हलचल हो पड़ी और महाराज बोले “हम धर्म और मर्यादा को नहीं छोड़ सकते तक्षक”

तक्षक ने गर्जना के साथ कहा “मर्यादा, उन्ही के साथ निभानी चाहिए जिन्हे उसका मोल पता हो और ,महाराज, यह सभी तो राक्षस हैं इन्हे सिर्फ माँ बेटियों की चीखों और बच्चों को तड़पाने में ही आनंद मिलता है। इन सभी के लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है। 

देवल एवं मुल्तान के युद्ध को याद करें महाराज, जब कासिम ने दाहिर को पराजित करने के उपरांत प्रजा पर कितना अत्याचार किया था।  

अगर हम नियमों की लाज रखने के लिए इन राक्षसों को छोड़ देंगे, मुझे भय है की सिर्फ चीखें ही चुने देंगी।”

तक्षक के तर्कों और सभी के सहमति का भाव पढ़कर महाराज अपने मुख्य सेनापतियों, मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभा कक्ष की और बढ़ गए। अगले ही दिन कि संध्या तक कन्नौज की पश्चिमी सीमा पर दोनों सेनाओं का आगमन हो चूका था और सभी को लग रहा था की अगला सवेरा एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा। 

मगर, आधी रात को जब अरबी सेना निश्चिन्त हो कर सो रही थी तभी तक्षक के नेतृत्व में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर बरस पड़ी। 

अचानक हुए हमले की न तो किसी ने उम्मीद की थी और न ही तयारी, वह क्या सावधान होते और क्या हथियार संभालते इससे पहले ही आधे अरब राजपूती नरसिंहों का शिकार बन चके थे। उस रात्रि और अंधेरे ने तक्षक के शौर्य को अपनी आँखों से देखा था, तक्षक जिस तरफ मुद जाते उसी तरफ भूमि रक्तरंजित हो जाती, तक्षक उस समय उस सिंह की तरह शिकार कर रहे थे जो कई दिनों या वर्षों से भूखा था। सूर्यउदय से पहले ही अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी।

सुबह बची हुई सेना पीछे भागी, किन्तु महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ तैयार खड़े थे और दोपहर होते होते समूची अरब सेना को काट डाला गया। जिन अरबियों ने विश्वविजय का स्वप्न देखा था उन्हें यह उत्तर पहली बार मिला था। 

यह भी पढ़ें: धर्म एक विषय है या स्वयं में सवाल?

महाराज ने विजय के बाद सभी सेना नायकों की तरफ देखा मगर उनमे तक्षक नहीं दिखाई दिए। तक्षक की खोज किए जाने का आदेश मिलते ही सभी सैनिकों ने खोज अभियान शुरू कर दिया। लगभग हज़ार अरब मृत सैनिकों के बीच तक्षक के मृत शरीर का तेज चरों दिशाओं को रौशन कर रहा था। 

अपने वीर योद्धा को मृत देखने के बाद महाराज नागभट्ट ने अपनी तलवार तक्षक के चरणों में रखा और उस मृत शरीर को प्रणाम किया। 

तक्षक की यह गाथा शौर्य और बुद्धिमानी का एक अकल्पनीय मेल है। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here