पवनसुत, रामदूत, संकटमोचक, बजरंगबली, अंजनि-पुत्र, मारुति नंदन, कपीश और भी ना जाने कितने नामों से श्री रामभक्त हनुमान को पुकारा जाता है।
बजरंगबली को लेकर लोगों के बीच कई सवाल हैं। कई कहानियां हैं। अंग्रेज़ी में हनुमान को ही मंकी गॉड के नाम से अनुवादित किया गया है। क्या यह अनुवाद उचित है? क्या हनुमान सच में मंकी (बंदर) थे? वानर शब्द का असल मतलब क्या है? जीवन भर दूसरों की सेवा में समर्पित हनुमान, क्या स्वयं को मिले भगवान के दर्जे से प्रसन्न होंगे?
इस लेख में हम युगों से चली आ रही लोक कथाओं से गुज़रते हुए, उन्हें एक अलग परिप्रेक्ष्य से समझने की कोशिश करेंगे।
![Is Hanuman a devotee or God and is it fair to call him Monkey God?](https://hindi.newsgram.com/wp-content/uploads/2020/11/religion-3363462_960_720-e1606489001413.jpg)
हनुमान नाम क्यों पड़ा ?
यह वही किस्सा है जब मारुति नंदन ने सूर्य को फल समझने की गलती कर दी थी। भूख से व्याकुल अंजनी पुत्र से अत्यंत दूर…सूर्य देव अपनी लालिमा पर इतरा रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि एक छोटा बालक हवा के साथ बहता हुआ उनके समीप आता जा रहा है। मारुति ने सूर्य देव को हाथों में पकड़ लिया।
देवताओं के राजा इंद्र ने जब यह देखा तो उन्हें इस बालक पर क्रोध आ गया। उन्होंने अपने अस्त्र से मारुति पर वार कर दिया। प्रहार के कारण, मारुती भूतल पर आ गिरे। अचानक गिरने की वजह से उनकी ठोड़ी पर चोट आ गई, और वो टूट गई। जब इंद्र को बालक के विषय में पता लगा तो उन्होंने वायु देव से क्षमा याचना की और तभी से उस महावीर का नाम, हनुमान पड़ गया।
हनु का अर्थ होता है ठोड़ी/ठुड्डी; अंग्रेज़ी में (Chin) चिन। हनुमान का मतलब हुआ – कोई ऐसा जिसकी ठुड्डी टूटी हुई हो।
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मर्कट (बंदर) ना होने के पीछे का तर्क
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
वानर शब्द को तोड़ने पर ज्ञात होता है कि ‘वा’ का अर्थ है ‘अथवा/या’ और ‘नर’ का अर्थ है ‘मनुष्य’, यानी कि वानर का मतलब हुआ ‘…अथवा मनुष्य’! तर्कसंगत समझें तो हनुमान ना तो सम्पूर्ण मनुष्य थे और ना ही मर्कट (बंदर)। अपनी बात को मजबूती प्रदान करते हुए, मैं कुछ और बातें भी रखना चाहूंगा।
![हनुमान को ज्ञान और गुणों का सागर कहा गया है Hanuman has been called the ocean of knowledge and virtues.](https://hindi.newsgram.com/wp-content/uploads/2020/11/photo-1583089892943-e02e5b017b6a.jpg)
हनुमान चालीसा के पहले भाग में ही लिखा गया है,’जय हनुमान ज्ञान गुण सागर’; यहाँ हनुमान को ज्ञान और गुणों का अथाह सागर कहा गया है। वाल्मीकि ने भी रामयण में हनुमान के विद्वान स्वरूप का उल्लेख किया है। हनुमान – वेद, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र और भी अन्य विषयों के ज्ञाता थे। हनुमान बहुत बड़े योगी थे, उनका खुद पर समूर्ण नियंत्रण था। बलशाली थे, विराट रूप के अधिपति थे। दूसरी ओर बंदर प्रजाती राजसिक गुणों की श्रेणी में आती है; राजसिकता वाले जीव अंदर और बाहर से अशांत स्वभाव के होते हैं।
इन दलीलों से यह तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि रामायण काल के वानर, आज की वानर मंडली से अत्यंत विकसित थे। चलिए इसी आर्ग्यूमेंट को एक कहानी के रूप से भी समझने की कोशिश करते हैं।
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रूद्र अवतार
रावण ने ब्रह्म देव को प्रसन्न कर उनसे अमृत्व का वरदान माँगा। मगर ब्रह्म देव ने अमृत्व देने से इंकार किया तो रावण ने वरदान में पुनः माँगा कि मुझे नर और वानर के अलावा और कोई ना मार सके।
कहते हैं कि रावण के वध के लिए देवताओं ने ही वानर सेना के रूप में जन्म लिया था ताकि रावण वध को पूर्ण किया जा सके। कथा के अनुसार यह वानर सेना एक दूसरे से बात कर सकती थी, वो सारे काम करने में सक्षम थी जो एक मनुष्य उस काल में करने की सोच सकता था…अंतर था तो मात्र रूपरेखा में! वानर सेना की सूरत मानव जाती से मेल नहीं खाती थी और उनके पास अपनी पूँछ भी थी!
तो क्या मात्र इस कारण से हनुमान को मंकी गॉड कह देना न्यायसंगत होगा? हनुमान को मंकी गॉड कह देने से हम उन्हें पूर्ण रूप से मर्कट (बंदर) श्रेणी में डाल देते हैं। यहाँ फिर किसी दूसरी दलील के लिए स्थान शेष नहीं रह जाता।
![हनुमान Hanuman himself was the 11th Rudra avatar of Shiva.](https://hindi.newsgram.com/wp-content/uploads/2020/11/620px-11TH_Rudra_Shiva_Hanuman.jpg)
हनुमान स्वयं शिव के 11वें रूद्र अवतार थे। श्रीमद्भागवत महापुराण में लिखा है, “वैष्णवानां यथा शम्भुः” अर्थात वैष्णवों में श्रीशंकर सर्वश्रेष्ठ हैं। अपने रूद्र अवतार में शिव ने अपना सम्पूर्ण जीवन राम भक्ति और दूसरों की सहायता करने में बिता दी। यहीं से यह सवाल उठता है कि क्या हनुमान स्वयं को मिले भगवान के दर्जे से प्रसन्न होंगे? क्या भक्त और जीव के रूप में उनका अनुसरण नहीं किया जा सकता?
राम भक्त हनुमान
यह तो आप जानते ही होंगे कि जब अयोध्या आगमन के बाद, अतिथि के रूप में आए विभीषण, सुग्रीव और अन्य अतिथिगण श्री राम से विदा ले रहे थे तब हनुमान ने राम के चरणों में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने की इच्छा प्रकट की थी। प्रभु राम ने उनकी इच्छा का सम्मान किया।
हनुमान के भक्ति भाव, उनके कौशल के कारण ही आज विश्व भर में लोग उनकी पूजा करते हैं। उन्होंने भक्ति में कर्मसाध्य रहना सिखाया था। पर कलयुग भक्ति के नाम पर कर्म को भूल जाता है।
क्या हनुमान ने मात्र ‘राम’ नाम जपते हुए अपना जीवन व्यतीत किया? क्या उन्होंने कर्म को साथ नहीं रखा? उचित सवाल यह भी होगा कि अंततः कर्म क्या है?
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आज की तस्वीर को समझें तो कुछ लोग पूजा पाठ को ही जीवन का आधार बना कर आलस्य का हाथ पकड़ लेते हैं। अनेक बाबा खुद को भगवान का अवतार कह कर, पवित्रता को बाज़ारू कर देते हैं। इंसान जब कमज़ोर पड़ने लगता है, तो किसी को भी ईश्वर का दर्जा दे देता है।
अपने जीवन का भार, अपने हर फैसले की ज़िम्मेदारी लेना आसान नहीं, शायद इसलिए इंसान खुद को छोड़ कर, दूसरे किसी में अपने भगवान की खोज करने लगता है। हिन्दू धर्म में करोड़ों देवी देवताओं का वर्णन है। इसके बाद भी हिन्दुओं को ईश्वर की कमी महसूस होती है! हम लोग हर समय किसी ऐसे की तलाश में होते हैं जिसे हम अपनी खुशियों और नाकामियों का हक़दार कह सकें, जिसके माथे हम अपनी गलतियों का बोझ रख सकें, कोई ऐसा जो हमें मार्ग दिखा सके।
क्या हनुमान भी ऐसे ही थे?
उन्हें भगवान के रूप में समझने वालों पर मेरा कोई कटाक्ष नहीं हैं और ना ही इस ओर मेरी कोई व्यक्तिगत नाराज़गी है, पर क्या कभी हम लोगों ने ईश्वर के अवतारों के मानवीय गुणों का अनुसरण करने का प्रयास किया है? जब हम किसी को भगवान का दर्जा दे देते हैं तो उन्हें इंसान के रूप में समझना कठिन हो जाता है। पर क्या पता, सम्भवतः इस ओर प्रयासशील होने पर मानव जाती अपने उत्थान के पथ पर चल पड़े!