By : Swati Mishra
भारत (India) अपने त्यौहारों व उससे जुड़ी पौराणिक कथाओं के लिए सम्पूर्ण विश्व में प्रख्यात है। भारतवर्ष में हर माह कोई ना कोई त्यौहार अवश्य मनाया जाता है। भिन्न – भिन्न धर्मों से जुड़े नाना प्रकार के उत्सव मनाए जाते हैं। हिन्दू धर्म (Hindu religion) का सबसे प्रसिद्ध व मार्च के महीने में मनाया जाने वाला त्यौहार है होली। होली (Holi) का त्योहार वसंत (Spring) आगमन का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। चारों ओर प्रकृति अपनी अनुपम छटा बिखेर रही होती है। उस बीच हमारी ज़िन्दगी में, खुशियों के रंग भर देने वाला यह होली का त्यौहार (Festival) जिसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। एक नए परिवर्तन का एहसास प्रदान करता है।
होली से एक दिन पूर्व होलिकदहन (Holikadahan) का त्यौहार मनाया जाता है। जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। गांवों से लेकर शहरों तक, सभी लोग होलिका दहन की बड़ी ही रोचक तैयारी में जुट जाते हैं। लकड़ियों का ढेर जमा कर, गोबर के उपलों, घी आदि से संध्या के समय अग्नि की पूजा करते हैं। अग्नि का अपना विशेष महत्व है। सम्पूर्ण संसार को यह प्रकाश से भर देता है। पंचतत्वों में से अग्नि को सबसे पवित्र व पूजनीय माना जाता है। इसी तरह होलिका दहन की अग्नि को सभी बुराइयों का नाश करने वाला माना जाता है। इस दिन अलग – अलग रीतियों के अनुसार होलिका की अग्नि की पूजा करते हैं। गुड़ और गेहूं के आंटे से तैयार पकवानों को भी अग्नि को समर्पित किया जाता है। इसके अलावा गोबर से बनी ढाल एवम खिलौनों को भी रखा जाता है। धान , पके चने, गेहूं की बालियां आदि भी अग्नि को समर्पित किया जाता है। सूत्र से होलिका अग्नि के चारो ओर परिक्रमा की जाती है। जब अग्नि राख स्वरूप अपना अस्तित्व छोड़ जाती है तब उस राख को घरों, मंदिरों और लोगों को लगाया जाता है।
(होलिकादहन की पौराणिक कथा)
जिस तरह होलिका दहन का अपना महत्व है उसी प्रकार इससे जुड़ी पौराणिक कथा का भी विशेष महत्व है। कहा जाता है कि, प्राचीन काल में भारतवर्ष में दैत्य हिरणकश्यप (Hiranyakashyap) नामक असुरों का राजा रहता था। असुरों के राजा हिरणकश्यप ने कठिन तपस्या के पश्चात भगवान ब्रह्मा (Bhagwan Brahma) जी को प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर हिरणकश्यप से एक वरदान मांगने को कहा। तब उसने अनश्वरता का वरदान मांगा था। परन्तु ब्रह्मदेव ने उन्हें अमर होने का वरदान नहीं दिया और वरदान स्वरूप हिरणकश्यप (Hiranyakashyap) को अपार शक्तियां प्रदान करी। ब्रह्मदेव ने हिरणकश्यप को आशीर्वाद देते हुए कहा कि, तुम्हें देव – देवता, दानव – मानव, जीव – जंतु में से कोई नहीं मार पाएगा। तुम्हारी मृत्यु ना किसी शस्त्र से होगी ना किसी अस्त्र से होगी। तुम्हें ना कोई दिन में मार पायेगा ना ही रात में। ब्रह्मदेव ने उन्हें यह सभी वरदान दे दिया कि तुम पृथ्वी, आकाश या पाताल कहीं भी नहीं मारे जाओगे। अहंकारी हिरणकश्यप ये वरदान पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और धीरे – धीरे खुद को अजर – अमर समझने लगा। घमंड से चूर वह अपने आपको भगवान समझने लगा।
दैत्यराज हिरणकश्यप भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) को अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता था। उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता था। अहंकार में चूर वह स्वयं को मृत्यु लोक का भगवान समझने लगा था। परन्तु हिरणकश्यप का पुत्र प्रहलाद (Prahlad) जन्म से भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रहलाद दिन – रात भगवान विष्णु का ध्यान और उन्हीं का गुणगान करता रहता था। और इसी कारणवश हिरणकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद से अत्यंत क्रोधित रहता था। उसने हर तरीके से प्रहलाद को समझाया कि, वह विष्णु की उपासना करना छोड़ दे लेकिन प्रहलाद नहीं माना। भगवान विष्णु के प्रति उसकी श्रद्धा – आस्था अपरंपार थी।
हिरणकश्यप ने हर वो संभव प्रयास किए जिससे प्रहलाद भगवान विष्णु का जाप करना छोड़ दे। हिरणकश्यप के आदेश पर कई बार उसके असुरों ने प्रहलाद (Prahlad) को जान से मार डालने की कोशिश कि। प्रहलाद को जहरीले सांप से कटवाया गया। एक बार हिरणकश्यप ने भक्त प्रहलाद को ऊंची चोटी से गिरा देने का भी आदेश दिया था। परन्तु प्रहलाद पर भगवान विष्णु की इतनी अनुकम्पा थी, कि मृत्य प्रहलाद का वरण ना कर सकी। अंत में हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। होलिका (Holika) को भी भगवान ब्रह्मा से वरदान में एक एसी चुन्नी प्राप्त थी, जिसे पहनकर अगर वह अग्नि में बैठेगी तो अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुंचा पायेगी। होलिका प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ गई लेकिन जैसे ही लकड़ियों में अग्नि प्रज्वलित हुई तभी हवा के कारण वह चुन्नी होलिका के शरीर से हटकर प्रहलाद पर आ गई थी और इस प्रकार होलिका आग में जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रहलाद को भगवान विष्णु ने बचा लिया था। कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने हिरणकश्यप का वध करने के लिए नरसिंह का अवतार धारण किया था।
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तभी से हमारे पुराणों में इस घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है, अर्थात सभी बुराइयों का नाश और अच्छाई पर विजय का दिन। इस तरह हमारे त्यौहार उससे जुड़ी पौराणिक कथाएं हमें सदैव कुछ ना कुछ जरूर सिखलाती हैं। होलिका दहन (Holikadahan) हमें बुराई से अच्छाई का मार्ग सीख देती है। वहीं होली (Holi) रंगों के माध्यम से हमारे जीवन में खुशियां भर देती है।