हिरकानी: जिन्होंने छत्रपति शिवाजी के किले की दीवारों को भेद दिया था।

एक साधारण महिला जिन्होंने मराठा शासन के दौरान अपने बेटे को बचाने के लिए शासन के नियमों के विरुद्ध जाकर अपने शौर्य और वीरता का परिचय दिया था।

0
1635
Rajgad Fort
छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati Shivaji) महाराज ने 1674 में राजगढ़ किले पर विजय हासिल की थी| (Wikimedia Commons)

साहस और वीरता की जितनी सराहना की जाए उतनी कम है। हमारा यह देश हमारे शूरवीरों के बलिदान, उनकी बहदुरी का ही परिणाम है। आज उसी इतिहास के पन्ने से हम मराठा शासन के दौरान एक बहादुर महिला सेनानी की बात करेंगे। जिन्हें आज भी उनकी वीरता के लिए याद किया जाता है, वह महिला सेनानी थीं हिरकानी। हिरकानी (Hirkani) एक साधारण महिला जिन्होंने मराठा शासन (Maratha Rule) के दौरान अपने बेटे को बचाने के लिए शासन के नियमों के विरुद्ध जाकर अपने शौर्य और वीरता का परिचय दिया था। हिरकानी, राजगढ़ किले के नजदीक ही रहा करती थी। इस किले पर छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati Shivaji) महाराज ने 1674 में विजय हासिल कर इसे अपनी राजधानी में बदल दिया था। शिवाजी के लिए यह राज्य अत्यंत महत्वपूर्ण था। उनका राज्याभिषेक भी रायगढ़ में ही हुआ था। 

आपको बता दें कि यह किला पहाड़ की चोटी पर है और पूरा गांव पहाड़ की तलहटी में है। किले की खड़ी दीवारें सभी तरफ से किले की रक्षा करती हैं। एक तरफ खड़ी गिरावट थी जहां कोई दीवार खड़ी नहीं की गई थी। क्योंकि सेनापतियों का मानना था कि इस पहाड़ी से किसी भी इंसान का महल के अंदर प्रवेश करना असंभव है। पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह किला इतना ऊंचा है कि इस पर चढ़ना और इसे भेदना नामुमकिन था। 

किले के ठीक नीचे ही गांव हुआ करता था और किले की ओर जाने वाली सड़क के माध्यम से किले के अंदर रहने वाले लोगों के लिए दैनिक आवश्यक चीजों को लाया और ले जाया जाता था। इस किले के द्वार सुबह खुलते थे और शाम को बंद हो जाते थे। सुरक्षा कारणों की वजह से यह निर्णय लिया गया था। ताकि रात के अंधेरे का लाभ उठा कोई दुश्मन किले के अंदर ना घुस पाए।

Hirkani Burj
छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही आदेश दिया था कि उस बुर्ज का नाम हिरकानी के नाम पर रखा जाएगा। (सोशल मीडिया)

हिरकानी, जो एक दूध विक्रेता भी थी, प्रतिदिन किले में लोगों को बेचने के लिए ताजा दूध लाया करती थी। वह हर रोज सुबह मुख्य द्वार से आती थी और सूर्यास्त होने से पूर्व घर चली जाती थी। हिरकानी का एक छोटा बच्चा भी था, जिसे वह घर पर अकेला छोड़ कर आया करती थी। 

अन्य दिनों की तरह उस दिन भी हिरकानी ग्राहकों को दूध बेचने के लिए किले के अंदर आई थी। लेकिन उस दिन उसका बच्चा अस्वस्थ था। जिस वजह से वह उस दिन किले में देरी से पहुंची थी। देरी से पहुंचने की वजह से उसका सारा ध्यान जल्दी से जल्दी दूध बेचना और किले से निकलने पर था। लेकिन वह दूध बेचने में व्यस्त हो गई थी। जिस वजह से जब वह किले के निकास द्वार तक पहुंची तो किले का द्वार बंद हो चुका था। अब वह बाहर अपने घर अपने बच्चे के पास नहीं जा सकती थी। निकास द्वार पर देरी से आने वाले अन्य सभी लोगों की तरह हिरकानी को भी द्वार पर ही रोक दिया गया था। 

जिसके बाद हिरकानी ने निकास द्वार पर खड़े सिपाहियों से विनती कि, की उसे बाहर जाने दिया जाए क्योंकि उसका बच्चा अस्वस्थ है और घर पर अकेला है। क्योंकि शिवाजी महाराज के सख्त आदेश थे कि सूर्यास्त के बाद द्वारा नहीं खोला जाएगा। इसलिए सैनिकों ने हिरकानी को मना कर दिया और सूर्योदय तक इंतजार करने को कहा। 

Chhatrapati Shivaji
शिवाजी महाराज, हिरकानी की वीरता को देख अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस पहाड़ी पर एक दीवार के निर्माण का आदेश दिया। और यह वही दीवार है जिसे आज “हिरकानी बुर्ज” (Hirkani Burj) के नाम से जाना जाता है। (Wikimedia Commons)

लेकिन हिरकानी जो एक बहादुर महिला और एक मां थी, वह रात को अपने बच्चे को अस्वस्थ अवस्था में अकेला कैसे छोड़ सकती थी। तब हिरकानी ने खड़ी गिरावट वाली पहाड़ियों के बारे में सोचा और घोर अंधेरे में किले से नीचे उतरने का फैसला लिया। नुकीले पत्थरों और झाड़ियों की वजह से उन्हें कई चोटें भी आईं। लेकिन उस रात उन्होंने अपनी बहादुरी और निडरता से किले को पार कर लिया था। 

अगली सुबह वह रोज की भांति किले में दूध बेचने के लिए किले के द्वार खुलने का इंतजार कर रही थी। लेकिन जब सैनिकों ने हिरकानी को देखा तो वह सभी हैरान रह गए और उन्होंने फैसला किया कि हिरकानी को शिवाजी महाराज के पास ले जाया जाए क्योंकि उन्होंने किले के नियमों का उल्लंघन किया है। जब छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिरकानी से पूछा कि, वह शाम के समय किले से बाहर कैसे गई तो बहादुर हिरकानी ने बिना संकोच किए जवाब देते हुए कहा कि उसका बच्चा घर पर अकेला और अस्वस्थ था। वह उसे घर पर अकेला नहीं छोड़ सकती थी इसलिए उन्होंने किले की खड़ी गिरावट वाली पहाड़ियों को पार किया था। 

यह भी पढ़ें :- भारतीय इतिहास से जुड़ा ऐसा सच जिसे आप भी जानकर रह जाएंगे दंग!

शिवाजी महाराज, हिरकानी की वीरता को देख अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस पहाड़ी पर एक दीवार के निर्माण का आदेश दिया। और यह वही दीवार है जिसे आज “हिरकानी बुर्ज” (Hirkani Burj) के नाम से जाना जाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही आदेश दिया था कि उस बुर्ज का नाम हिरकानी के नाम पर रखा जाएगा। यह हिरकानी बुर्ज आज भी हिरकानी की बहादुरी के प्रतीक के रूप में मौजूद है। जिसने अपने बच्चे के लिए किले की दीवारों को भेद दिया था। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here