जलवायु परिवर्तन तेज़ी से हिमालय ग्लेशियरों (Glaciers) को निगलता जा रहा है। हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि, दुनिया के सभी ग्लेशियर हाल के वर्षों में तेजी से पिघलते जा रहे हैं। अध्ययन के मुताबिक बढ़ते तापमान के कारण हिमालय ग्लेशियर 21 वीं सदी की शुरुआत की तुलना में आज दोगुनी तेजी से पिघल रहे हैं।
विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने 2000 से 2019 के बीच दुनिया के ग्लेशियरों का अध्ययन करने के लिए नासा के टेरा उपग्रह (NASA’s Terra satellite) से उच्च संकल्प कल्पना का उपयोग किया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि, साल 2000 से 2019 के बीच ग्लेशियरों का प्रतिवर्ष कुल 267 गीगाटन बर्फ पिघल गई है। जिस कारण समुद्र के स्तर में भी 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
भारत समेत पूरे हिमालय क्षेत्रों में गर्मी के कारण हर साल करीब 0.25 मीटर ग्लेशियर पिघल रहे हैं। अब तक करीब चार दशकों में इन ग्लेशियरों ने अपना एक चौथाई घनत्व खो दिया है।
वैज्ञानिकों ने लंबे समय से चेतावनी दी है कि, जलवायु परिवर्तन (Climate change) से प्रेरित गर्म तापमान दुनिया भर के ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों को सिकोड़ रहे हैं। जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है। लगातार समुद्र स्तर में वृद्धि आने वाले समय में तटीय शहरों के लिए एक गंभीर खतरा साबित होंगे। कुछ हद तक ये कई तटीय क्षेत्रों को नुकसान भी पहुंच चुके हैं।
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change) प्रोजेक्ट की ताजा रिपोर्ट में कहा भी गया है कि, अगर यही हालात कायम रहे तो भविष्य में समुद्र का स्तर 2100 मीटर से अधिक बढ़ जाएगा। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि, अलास्का, आइसलैंड, आल्प्स, पामीर पर्वत और हिमालय में ग्लेशियर का पिघलना सबसे अधिक प्रभावित हुआ है।
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भारत , चीन, भूटान और नेपाल जैसे देशों के लोग सिंचाई, पीने का पानी आदि के लिए हिमालय के ग्लेशियर पर निर्भर करते हैं। इन ग्लेशियरों के पिघलने से इस पूरे क्षेत्र के जल तंत्र और यहां रहने वाली आबादी का जीवन प्रभावित हो सकता है। शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि, ग्लेशियर में कमी का लगभग आधा हिस्सा उत्तरी अमेरिका में है। (VOA) (हिंदी अनुवाद: स्वाती मिश्रा)