स्वर्ण युग के विनाशकारी एक खानाबदोश “हूण जाति” !

हूण एशिया की खानाबदोश व बर्बर जाति में से एक थी। जिसने चौथी से पांचवी शताब्दी के दौरान सम्पूर्ण विश्व में अपना वर्चस्व फैलाया हुआ था।

0
218
Hun race
हूण एशिया (Asia) की खानाबदोश व बर्बर जाति में से एक थी। (Wikimedia Commons)

सदियों से हमारे भारत (India) पर कई आक्रमण हुए हैं। अलग-अलग समुदायों, प्रजातियों ने हमेशा से भारत पर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहा है। जिनमें से कइयों के बारे में, जैसे मुग़ल साम्राज्य (Mughal Empire), गुप्त साम्राज्य (Gupt Dynasty) , चोल वंश (Chol vansh)  तथा जातियों में, सामंत, दक्कन के वाकटक आदि के बारे में हम हमेशा से पढ़ते आएं हैं या सुनते आएं हैं। लेकिन थोड़ा इतिहास की गहराइयों में झाकेंगे तो आपको ज्ञात होगा की ऐसे बहुत से आक्रमण भारत पर हुए हैं जिसने भारत की सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व आर्थिक स्तिथि को बहुत चोट पहुंचाई है। आज उसी इतिहास से संबंधित एक विशेष जाति हूण जाति के बारे में जानेंगे, जिन्होंने 5 वीं शताब्दी के दौरान भारत पर कई बार आक्रमण किया था।

हूण एशिया (Asia) की खानाबदोश व बर्बर जाति में से एक थी। जिसने चौथी से पांचवी शताब्दी के दौरान सम्पूर्ण विश्व में अपना वर्चस्व फैलाया हुआ था। मुख्य रूप से यह जाति चीन के उत्तर पश्चमी कोने पर बसती थी। भारतीय इतिहासकारों का मानना है कि यह हूण बंजारा जाती का मूल वोल्गा (रूस की एक नदी ) के पूर्व में था। यूरोप (Europe) के एक प्रसिद्ध लेखक “गिबन”, इन हूणों के बारे में लिखते हैं कि “सारे यूरोप(Europe) में गाथ ओर वेंडल नामक असभ्यों ने अपना उत्पात मचा रखा था, लेकिन जैसा प्रभाव हूणों का था और कोई भी अपना अधिकार स्थापित नहीं कर सका था। उनका समूचा समुह वोलगा नदी (Volga River) से लेकर डैन्यूब नदी (Denube River) तक फैला हुआ था। इनके आक्रमणों से पूरे एशिया और यूरोप महाद्वीप में हाहाकार मचा हुआ था। 

माना जाता है कि ये हूण सबसे पहले 350 ईसवीं में बादशाह शापूर के समय में फारस की पूर्वी सीमा पर पहुंचे थे। भारत के संदर्भ में बात करें तो जिन हूणों का भारतीय इतिहास में जिक्र मिलता है वे श्वेत हूण हैं। भारतवर्ष में हूण लोग गुप्त साम्राज्य के आस-पास देखने की मिलते हैं। उस समय वहां के सम्राट “कुमारगुप्त” थे। लेकिन दुर्भाग्यवश कुमारगुप्त (Kumargupt), हूणों का सामना नहीं कर पाए थे। उन्हें बूरी तरह हार का सामना करना पड़ा था। हूणों ने दूसरा आक्रमण स्कंदगुप्त (Skandgupt) के काल के दौरान किया था परन्तु इस बार उन्हें भीषण हार का सामना करना पड़ा था। स्कंदगुप्त ने इन हूणों को गुप्त साम्राज्य (Gupt Dynasty) से खदेड़ बाहर निकाल दिया था। उस समय पहली बार हूणों की नींव ढीली पड़ गई थी।

Hun Race

    पश्चिम भारत के कई क्षेत्रों पर इन्होंने अपना अधिकार स्थापित किया था। (फेसबुक)

लेकिन देखते ही देखते इन खानाबदोश हूणों ने 5वीं शताब्दी के दौरान गांधार देश ( जिसे आज रावल पिंडी से काबुल तक का प्रदेश माना जाता है) से फिर एक बार धीरे – धीरे अपना वर्चस्व फैलाना शुरू किया था। हूण के श्रेष्ठ राजा तोरमाण ने सबसे पहले मालवा (Malwa) पर विजय प्राप्त की और वहीं अपना स्थायी निवास बना लिया। तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने भारत पर कई बार आक्रमण किए और इसी में आगे बढ़ते हुए उसने पंजाब पर भी अपना वर्चस्व स्थापित किया था। पश्चिम भारत के कई क्षेत्रों पर इन्होंने अपना अधिकार स्थापित किया था।

बाणभट्ट (Banabhatta) ने अपने हर्षचरित में हूणों के आक्रमणों के बारे में काफी विस्तार पूर्वक उल्लेख किया है। उनका उल्लेख दर्शाता है कि कैसे हूणों ने आज पंजाब (Punjab), राजस्थान (Rajasthan), कश्मीर (Kashmir), पूर्वी मालवा आदि अन्य कई क्षेत्रों पर अपना कब्ज़ा किया था।

तोरमाण के बाद उसके पुत्र मिहिरकुल ने सत्ता हासिल की थी। माना जाता है कि यह एक अत्यंत क्रूर शासक था। इसकी बर्बरता का उल्लेख चीनी यात्री हुएनसांग (Xuanzang) ने बौद्ध के भयंकर उत्पीड़क के रूप में किया है। मिहीरकुल ने पंजाब स्तिथ साकल (सियालकोट) को अपनी राजधानी बनाई थी। यह कहा जाता है कि मिहिरकूल  शैव सम्प्रदाय का अनुयायी था। उसने अपने शासनकाल में सैकड़ों शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। जिसमें श्रीनगर के पास मिहिरेश्वर नामक भव्य शिव मंदिर प्रसिद्ध है। मिहीरकूल ने भारत की जनता , उसकी संस्कृति को जितना नुकसान पहुंचाया था, वो भारतीय संस्कृति यहां के लोगों पर सबसे बड़ी चोट थी। मिहीरकूल बहुत अंत में जाकर पराजित हुआ था और यहीं से हूण वंश की बर्बरता, उनका उद्वंश समाप्त हो गया था।

ऐसा माना जाता है कि बचे हुए हूण जाति के लोग भारत छोड़ कर नहीं गए थे बल्कि उन्होंने यहीं की संस्कृति को अपना लिया था। स्थाई रूप से यही बस गए थे।

हूणों का अधिकार भारत के कई क्षेत्रों पर रहा था और इसका प्रभाव गंभीर रूप से भारत की राजनीति, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक स्तिथि पर पड़ा था। सांस्कृतिक रूप से बात करें तो हूणों के हाहाकार, उनकी बर्बरता ने भारत के कई  मठों , मंदिरों , ग्रंथों का सम्पूर्ण विनाश कर दिया था और यही कारण है कि आज हम इतिहास के कई पन्नों से अनभिज्ञ हैं। सामाजिक रूप से नजर दौड़ाएं तो ज्ञात होगा कि हूणों का आक्रमण गुप्त साम्राज्य के दौरान हुआ था। हूणों ने उस समय समूचे गुप्त साम्राज्य का विनाश कर दिया था। स्वर्ण युग कहलाने वाले गुप्त वंश को बेहद नुकसान पहुंचाया था। उस समय ये भारतीय राजनैतिक एकता पर सबसे बड़ा चोट था।

यह भी पढ़े :- सामाजिक – धार्मिक सुधार आंदोलनों का प्राचीन इतिहास !

जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा कि चीनी यात्री हुएनसांग (Xuanzang) ने हूण जाति में मिहिरकुल को बौद्ध धर्म (Buddhism) का विनाशकारी कहा है। इससे पता चलता है कि कैसे हूणों ने बौद्ध धर्म के कई स्तूपों का मठों का यहां तक कि संपूर्ण बौद्ध धर्म का विध्वंश कर डाला था। हिन्दू धर्म (Hindu Religion) में साथ – साथ इन खानाबदोश जातियों ने अन्य धर्मों को भी क्षति पहुंचाई थी।

इस तरह हमने देखा कि कैसे एक खानाबदोश हूण जाति ने चौथी से पांचवीं शताब्दी के दौरान भारत पर कई आक्रमण किए और उसे गंभीर रूप से कई बार क्षति पहुंचाई।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here