By : विवेक त्रिपाठी
अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा नामित एसोसिएट अटॉर्नी जनरल वनिता गुप्ता ने चार साल की उम्र में अपने साथ हुए नस्लीय कट्टरपंथ के अनुभव को याद किया है, जब उन्होंने नागरिक अधिकारों और न्याय सुधार के लिए अपनी प्रतिबद्धता का वादा किया।
गुरुवार को बाइडेन द्वारा अमेरिका में सबसे सम्मानित नागरिक अधिकारों की वकील में से एक के रूप में पेश किए जाने के बाद, वनिता गुप्ता ने ‘भारत से गर्वित अप्रवासी’ के रूप में अपने माता-पिता के बारे में बात की और परिवार को किन पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा, इस बारे में अपने अनुभव साझा किए।
उन्होंने कहा, “एक दिन, मैं अपनी बहन, मां और दादी के साथ मैकडॉनल्ड्स के रेस्तरां में बैठी हुई थी। जब कि हम खाना खा रहे थे, पास वाली मेज पर बैठे कुछ लोगों ने हम पर नस्लीय फब्तियां कसना शुरू कर दिया और भोजन फेंकने लगे, जिसके कारण हम रेस्तरां से निकल गए।”
गुप्ता ने कहा, “उस भावना ने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा कि आप जो हैं, उसके कारण असुरक्षित होने का क्या मतलब है।” वह उस समय चर्चा में आईं जब एक नई वकील के रूप में उन्होंने 38 लोगों की रिहाई कराने में कामयाबी हासिल की, उनमें से अधिकांश अफ्रीकी-अमेरिकी थे, जिन्हें टेक्सस शहर में ड्रग के आरोपों में गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था और गुप्ता ने उन्हें मुआवजे के तौर पर 60 लाख डॉलर भी दिलाया था।
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गुप्ता ने कहा कि उन्होंने नस्लीय कट्टरता का अनुभव करने के साथ ही अमेरिका के वादे का सबक भी सीखा है।उन्होंने कहा, “मैंने अपने साथ एक और भावना रखी, हालांकि, मेरे माता-पिता द्वारा और मेरे पति (चिन्ह क्यू. ली) द्वारा भी इसे गहराई से अनुभव किया गया, जिनके (ली के) परिवार ने वियतनाम में हिंसा और युद्ध के कारण पलायन किया था।”
उन्होंने आगे कहा, “उन्होंने अमेरिका के वादे पर किसी चीज की अपेक्षा ज्यादा भरोसा जताया और इस देश से प्यार करना सीखा, इसे बेहतर बनाने के लिए आवश्यक कार्य करने का दायित्व भी साथ लाता है।” वहीं, गुप्ता का परिचय कराते हुए बाइडेन ने कहा कि वह हर कदम पर, हम केस में बेहतर निषप्क्षता और समानता के लिए लड़ीं और हमारी न्याय प्रणालियों की गलतियों को ठीक करने के लिए लड़ीं। (आईएएनएस)