वैसे तो क्रिकेट सफेद या लाल बॉल से खेला जाता है लेकिन पिछले 5 वर्षों में एक नई गेंद आई है पिंक बॉल जिससे डे – नाइट टेस्ट मैच खेले जाते हैं । दुनिया का पहला पिंक बॉल टेस्ट मैच ऑस्ट्रेलिया बनाम न्यूजीलैंड के बीच 2015 में ऑस्ट्रेलिया खेला गया था और अब तक 14 पिंक बॉल टेस्ट मैच खेले जा चुके हैं । हर बार हमें विजेता ही देखने को मिला है ।
अबतक कितने पिंक बाल टेस्ट मैच हुए
कंगारुओं के पिंक टेस्ट मैचों के इतिहास को देखें तो उन्होंने लगभग 7 पिंक बॉल टेस्ट मैच खेले हैं और सभी में जीत प्राप्त करी है लेकिन उन्होंने सारे टेस्ट मैच अपने ही घर में ही खेले हैं । इसके अलावा भारत ने अपना पहला पिंक बॉल टेस्ट मैच बांग्लादेश के खिलाफ़ ईडन गार्डंस में खेला था जो भारत ने आसानी से जीत भी लिया था । अब तक साउथ अफ्रीका, जिंबाब्वे और बांग्लादेश ने सिर्फ एक ही पिंक बॉल टेस्ट मैच खेला है पाकिस्तान ने चार और न्यूजीलैंड , इंग्लैंड और श्रीलंका ने तीन और वेस्ट इंडीज़ ने दो डे एंड नाइट पिंक बॉल टेस्ट मैच खेले हैं ।
गुलाबी गेंद और लाल गेंद का फर्क
गुलाबी गेंद वैसे तो 10 साल पहले ही ( कुकापूरा ) कंपनी के द्वारा ऑस्ट्रेलिया में बना दी गई थी लेकिन इसके परीक्षण में समय लग गया था । वैसे तो गुलाबी गेंद और लाल गेंद में कुछ खास फर्क नहीं है दोनों ही गेंद समानता के साथ बाउंस , स्पिन और स्विंग होती हैं । फर्क है तो सिर्फ उनके ऊपर होने वाली कोटिंग का और एक मुख्य अंतर है कि गुलाबी गेंद के ऊपर हरे रंग के धागे से बुनाई की जाती है ।
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आखिर पिंक बॉल ही क्यों
जब पिंक बॉल का परीक्षण चल रहा था तो और दुसरे रंग की गेंदों का भी इस्तेमाल किया गया था लेकिन कैमरामैन को बॉल को दिखाने में कई तकलीफों का सामना करना पड़ रहा था और फिर बड़ी सोच विचार के साथ पिंक बॉल को ही अपनाया गया था , क्योंकि टेस्ट मैच में सफेद जर्सी के सामने पिंक बॉल का रंग ज्यादा अच्छे से उभर कर आ रहा था इसलिए पिंक बॉल का चयन डे -नाइट टेस्ट मैच के लिए किया गया और कैमरामैन को भी इससे कोई दिक्कत नहीं हुई ।
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कप्तान कोहली को कैसी लगी गुलाबी गेंद
भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली ने कहा है कि गुलाबी गेंद से टेस्ट मैच खेलना आम तौर पर लाल गेंद से खेले जाने वाले टेस्ट मैच से एकदम उल्टा है और गुलाबी गेंद से खेलने की तैयारी करना काफी मुश्किल है, क्योंकि इसके कई सारे पहलू होते हैं। कप्तान ने कहा कि उन्हें एडिलेड ओवल मैदान की स्थिति के हिसाब से ही खेलना होगा। “मुझे नहीं लगता कि आप टेस्ट क्रिकेट में चीजों को प्लान कर सकते हैं। टेस्ट क्रिकेट हमेशा से इसी तरह से होता कि आपको आपके सामने आई स्थिति के हिसाब से खेलना होता है और अपनी सर्वश्रेष्ठ काबिलियत का इस्तेमाल करना होता है। आपको समझना होता है कि आपको कब आक्रमण करना है, कब डिफेंड करना है, कब विकेट पर टिकना है। गुलाबी गेंद का टेस्ट मैच अपने साथ कई सारी चीजें लेकर आता है, जैसे कि शाम का समय, जब बल्लेबाजी करना काफी मुश्किल होता है। पहले सत्र में गेंदबाजी करना मुश्किल होता है और रात में फिर गेंदबाजों को मदद मिलती है।”