कभी नवदिन या शिवदीन सुना है? कभी नहीं! और ना ही सुनेंगे, ऐसा इस लिए कि रात्रि इन सब में अहम भूमिका निभाती है। नवरात्र, शिवरात्रि, दीपावली यह सब वह पर्व हैं जिन्हे रात्रि में ही पूजा जाता है या धूम-धाम से मनाया जाता है। ऐसा इस लिए कि ‘रात्रि’ शब्द का अर्थ सिद्धि को भी माना गया है एवं कई ऋषि मुनियों ने दिन में अपेक्षा में रात्रि को ज़्यादा महत्व दिया है। खास बात यह है कि शैव और शक्ति से जुड़े धर्म में रात्रि को अहम माना गया है और वैष्णव धर्म में दिन को।
रात्रि के महत्वों को अगर हम ठीक ढंग से पहचाने तब हमें समझ आएगा कि रात्रि हमारे जीवन में कई बदलाव ला सकती है और अनजाने में लाती भी है। एक छोटा मगर फलदायक महत्व यह है कि रात्रि में शांति का आभास होता है, और एक साधक के लिए रात्रि से बढ़कर और कुछ नहीं। दिन की भागति और झुंझलाती दौड़ से यह रात्रि ही है जो आपको खुद से मिलने का अवसर देती है। मौका देती है आपको आपके और अपनों के बारे में सोचने के लिए।
अगर रात्रि की बात शुरू ही हुई है तो बता दूँ कि नवरात्र का फल भी रात्रि साधना से ही मिलेगा। नवरात्रे साधना, ध्यान, व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, तंत्र, त्राटक, योग इन सब का मेल है और व्यक्ति इन सब पर विजय पा लेता है उन्हें हम सिद्ध पुरुष कहते हैं। यही कारण है की जो लोग सिद्धि पाने का प्रयास करते हैं या मोह-माया को खुद से दूर करना चाहते हैं वह रात्रि में ही ध्यानमग्न रहते हैं या बीज मंत्रों का जाप करते हैं।
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नवरात्र उस माह में आती है जिस में ऋतू में बदलाव आना शुरू होता है या हम नए मौसम में प्रवेश कर रहे होते हैं जिस कारण इस पर्व का नाम नव जिसका मतलब ‘नया’ से आरम्भ होता है। अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह वही महीना है है जिस में रोग हम पर आक्रमण करते हैं किन्तु इन नवरात्री नियमों का पालन कर के हम रोग मुक्त भी रह सकते हैं।
एक तथ्य यह भी है कि रात्रि में रेडियो तरंगो का आना-जाना दिन के मुकाबले काफी सरल रहता है, जिसका सबसे मजबूत उदाहरण है रेडियो फ्रीक्वेंसी। इसलिए हम रात्रि में जब भी मंत्र का उच्चारण करते हैं वह तरंगो का रूप ले कर ईश्वर के पास जाती हैं और हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। रात्रि में आवाज़ दिन के मुकाबले बहुत दूर तक जाती है, यह भी रात्रि का महत्वपूर्ण होने का कारण हो सकता है।