‘ताज महल’ अतुल्नीय भारत का एक नायाब नमूना है। इतिहास के जानकारों एवं किताबों में बताया जाता है कि Taj Mahal का निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के द्वारा करवाया गया था। किन्तु कुछ आवाजें यह भी कहती सुनाई दे जातीं हैं कि इसका निर्माण प्राचीन भारत के हिन्दू राजा ने करवाया था। अब जो अंग्रेजी इतिहासकारों ने लिखा है उसी को आज तक हमे पढ़ाया जाता है या सुनाया जाता है।
किन्तु एडिसन बेग्ले एवं ज़ियाउद-दिन अहमद देसाई द्वारा लिखी किताब ‘TAJ MAHAL-THE ILLUMINED TOMB’ में कुछ रोचक तथ्य सामने निकल कर आए हैं, जिन पर प्रकाश Prof. Marvin Mills ने डाला है। Prof. Marvin Mills ने कुछ ऐसी बातें ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में प्रकाशित अपने लेख में बताईं जिनपर शायद ही किसी का उस समय तक ध्यान गया हो। Prof. Marvin Mills ने सबसे पहले शाहजहाँ और मुमताज़ की मृत्यु पर ध्यान केंद्रित किया। जिसमे वह बताते हैं कि राजा जय सिंह से सौदा किए गए जमीन के दस्तावेजों और इतिहास के अनुसार मुमताज़ की मृत्यु हुई जून 1631 बुरहानपुर में, दो साल बाद जनवरी 1632 में मुमताज़ की कब्र को दुबारा ताज के जमीन के समीप पुनः दफनाया गया। यूरोपीय यात्री पीटर मुंडी 11 जून, 1632 को शाहजहाँ की आगरा वापसी के गवाही बने।
पहला फ़रमान 20 सितंबर, 1632 को जारी किया गया था जिसमें बादशाह ने राजा जय सिंह से मक़बरे की आंतरिक दीवारों, यानी ताज की मुख्य इमारत के आंतरिक दीवारों के सामने संगमरमर की लदान में तेजी लाने का आग्रह किया था। खैर इससे यह साफ दिख रहा है कि शाहजहाँ Taj Mahal के निर्माण में कितना घिरा हुआ है। किन्तु ध्यान देने वाली यह बात है कि मुमताज़ की बहुत काम उम्र में मृत्यु हुई और वह भी अचानक। मुमताज़ एवं शाहजहाँ के 13 बच्चों पर से माँ का साया उठ गया था। तो क्या इतने बड़े सदमे में जमीन की खरीद के काम में तेज़ी की बात कभी कैसे आ सकती है?
प्रोफेसर लिखते हैं कि उसे(शाहजहाँ) इतने बड़े सदमे के बीच विश्व स्तर के मकबरे और अपनी प्यार की निशानी पर ध्यान लगाना था। एक वास्तुकार का चयन करना(जो अभी भी किसी को नहीं पता), उसके साथ बनावट पर योजना बनाना, सभी ठेकेदारों और हजारों श्रमिकों को व्यवस्थित करना, और एक जटिल निर्माण कार्यक्रम तैयार करना। रहस्यमय रूप से, इस पुरे जटिल प्रक्रिया से संबंधित कोई भी दस्तावेज, चार फरमानों के अलावा नहीं बचा है या शायद है ही नहीं।
खैर, Prof. Marvin Mills के अनुसार शाहजहाँ ने अपने प्रिय मुमताज़ की मृत्यु के बाद इस परियोजना पर काम करना शुरू किया होगा, किन्तु एक वास्तुकार के नजरिए से इसे देखा जाए तो ऐसे किसी परियोजना पर योजना और साधन एकत्र करते-करते लगभग एक साल लग जाते हैं। जिसका मतलब कि जून 1631 में मुमताज़ की मृत्यु तो लगभग जून 1932 में काम का प्रारम्भ होना, लेकिन इतिहास में तो निर्माण कार्य जनवरी 1932 से ही शुरू दिखाया गया है।
Taj Mahal किसने बनवाया? लेखक कहते हैं कि यह शाहजहाँ के मुख्य वास्तुकार अहमद उस्ताद लाहौरी थे। इस बात पर इतना विश्वास लाहौरी के बेटे लुफ्त अल्लाह के बयान पर से किया गया है, जो कि सबूत के तौर पर काफी कमजोर है। एक और बात कि शाही इतिहासकारों ने अपने बादशाह के बखान में कई खिस्से गढ़े, कि कैसे शाहजहाँ ने व्यक्तिगत तौर पर ताज के निर्माण में भूमिका निभाई। किन्तु, यूरोपीय यात्रियों ने शाहजहाँ के चरित्र को कुछ और बताया है। उन्होंने बताया कि वह वासना और भोग के उलझन में एक कार्य पर ध्यान लगाने से असमर्थ था। प्रोफ. मिल बताते हैं कि “यह मानना है कि शाहजहाँ के कथित महान वास्तु कौशल के सहारे इस रिश्ते से बाहर आया, कई मानते हैं कि वो दुनिया के सबसे खूबसूरत इमारत है, यह सरासर रोमांटिक बकवास है।”
यह भी पढ़ें: टीपू सुल्तान का मंदिर उपहार देने के पीछे का ‘छुपाया गया’ सच
Prof. Marvin Mills ने एडिसन बेग्ले एवं ज़ियाउद-दिन अहमद देसाई द्वारा लिखी किताब को ध्यान में रखकर अपने लेख में कुछ ऐसे मुद्दे उठाए थे जिन्हे जानना हमारे लिए भी जरूरी है। वह 6 मुद्दे थे कि:
- Taj Mahal के मुख्य भवन के दोनों ओर दो भवनों की अपनी-अपनी अलग पहचान है। एक मस्जिद दूसरा अतिथि निवास, अगर इन दोनों भवनों के अलग-अलग कार्य हेतु निर्माण हुआ था तो उसका ढांचा भी अलग होना चाहिए था जो कि नहीं है।
- क्यों ताज के बाहरी दीवारों पर मध्यकालीन लोपख़ाना है जबकि उन तोपों का उपयोग भारत के मुगल आक्रमणों में पहले से ही था?[पहली तो यह कि एक मकबरे को एक सुरक्षात्मक दीवार की आवश्यकता क्यों है? एक महल के लिए यह समझ में भी आता है।]
- यमुना नदी के सामने Taj Mahal के उत्तर की ओर छत के स्तर के नीचे कुछ बीस कमरे क्यों हैं? एक मकबरे में इन कमरों की क्या आवश्यकता है? एक महल उन्हें अच्छे उपयोग में ला सकता था। दोनों लेखक(बेग्ले एवं देसाई) भी उसके अस्तित्व का उल्लेख नहीं कर रहे हैं।
- बीस कमरों के विपरीत लंबे गलियारे के दक्षिण में सील किए गए कमरों में क्या है? किसने उस द्वार पर इमारत खड़ी की? और क्यों विद्वानों और इतिहासकारों को उस कमरे में रखे वस्तुओं और अन्य सामानो की जाँच या उन्हें दर्ज करने की अनुमति नहीं दी गई?
- मक्का की दिशा में न होने की बजाय मस्जिद पश्चिमी दिशा में क्यों है? निश्चित रूप से, सत्रहवीं शताब्दी तक एक इमारत को ठीक दिशा बनाने में कोई समस्या नहीं थी!
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने ताज के कार्बन-14(Carbon-14) या थर्मो-ल्यूमिनेसेंस(Thermo-luminescence) के डेटिंग करने पर क्यों अंकुश लगा दिया है? जबकि इससे Taj Mahal को किस सदी में बनाया गया था, इस पर किसी भी विवाद को आसानी से सुलझाया जा सकता है।[एक दरवाजे से ली गई लकड़ी के टुकड़े की रेडियोकार्बन डेटिंग ने संभावित तिथि 13 वीं शताब्दी बताई गई। लेकिन इसमें अधिक तथ्य की जरूरत है।]
यह सभी तथ्य Prof. Marvin Mills ने एक वास्तुकार के नजरिए से बताया है। किन्तु उनके दिए तथ्य में कुछ ऐसे रोचक विषय भी जरूर हैं जिनपर हमें ध्यान केंद्रित करने कि आवश्यकता है। आखिर इस अनसुलझे सच से पर्दा उठना चाहिए, क्योंकि अगर इतिहास से छेड़छाड़ की गई है तो उस गलती को सुधारा जा सकता। लेकिन शायद आज बताए जाने वाली वह गलत इतिहास ‘कल’ पर हावी न हो जाए।