By: Shantanoo Mishra
भारत उन वीर मतवालों का देश रहा है जहाँ एक अल्पायु बालक में भी स्वतंत्रता की लौ जग पड़ी थी और इसी वीर के मृत्यु के पश्चात ही देश भर में क्रांति की ज्वाला धधक उठी थी। वह वीर थे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव। 23 मार्च 1931, वह रात ‘वन्देमातरम’ के नारों से गूंज रही थी। यह वह समय था जब इन तीनों सपूतों को फांसी के लिए ले जाया जा रहा था। वैसे तो जेल में अक्सर ही क्रांतिकारियों द्वारा ‘भारत माता की जय’ और ‘वन्देमातरम’ के जयघोष किया जाता था। किन्तु उस रात उन सब में से 3 स्वर शहीदी के पन्नों पर वीरता की कहानी लिखकर, करोड़ों जुबान पर ‘वन्देमातरम’ का जयघोष देकर जाने वाले थे।
इन तीन सपूतों ने अंग्रेजी हुकूमत को इस तरह थर्रा दिया था कि 24 मार्च 1931 को दी जाने वाली फांसी को 23 मार्च की रात को अंजाम देना पड़ा। क्योंकि उन्हें यह भय था इन तीनों सपूतों की मृत्यु, अंग्रेजी हुकूमत की गले का फंदा बन जाएगी और हुआ भी यही। कहते हैं की मृत्यु के बाद शरीर निर्जीव हो जाता है, मगर 23 मार्च के बाद हर एक युवा में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने जन्म लिया था। क्या बच्चा क्या जावन हर कोई आजादी के लिए अपनी आवाज़ उठा रहा था। अंग्रेजी हुकूमत यदि दस क्रांतिकारियों को जेल डालती थी तब हज़ारों सर ‘वन्देमातरम’ और आजादी का उद्घोष कर सड़कों पर उतर आते।
एक वह समय था, एक आज का समय है, जहाँ नेता मंच पर ‘भारत माता की जय’ तो कहते है मगर मंच से उतरते ही प्रपंच और भ्रष्टाचार का घिनौना खेल-खेलते हैं। जहाँ विपक्ष उन युवाओं को नेता बनाती है जिसने भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचे थे, भारत के टुकड़े-टुकड़े और आजादी की मांग कर रहे थे। देश का एक बुद्धिजीवी तबका ऐसा भी सक्रीय है जिसे हिन्दू के मरने पर असहिष्णुता नहीं दिखता मगर एक मुस्लिम को पीटे जाने पर हाहाकार मचा देता है। वह तबका भी सक्रीय है जो आरक्षण के नाम पर अपनों में ही फूट डलवाने के प्रयास से पीछे नहीं रहता। एक ऐसा तबका भी सक्रीय है जो किसानों और सरकार के बीच इस लिए नहीं सुलह होने देना चाहता क्योंकि उसकी राजनीति पर असर पड़ेगा। करोड़ों रुपयों के चंदे, जो किसान नेता पांच सितारा होटलों में रुक-रुक कर उड़ा रहे हैं उस पर असर पड़ेगा। और एक तबका ऐसा भी सक्रिय है जो देश को दुनिया के सामने बदनाम करने के लिए ‘टूलकिट’ का सहारा ले रहा है और इस पूरे षड्यंत्र की रचना कर रहा है।
आज युवा यह पूछ रहा है कि 14% जनसंख्या रखने वाले मुस्लिमों को आखिर आरक्षण कब तक मिलता रहेगा? जय श्री राम का नारा लगने पर और कितने रिंकू शर्मा जैसे युवाओं को मारा दिया जाएगा? लव जिहाद के खिलाफ लड़ने पर आखिर कितनी बेटियां बीच सड़क पर गोलियों से भून दी जाएंगी? और आखिर कब तक सरकार मस्जिद गिरिजाघरों के इलावा मंदिरों को हथिया कर रखेगी? कश्मीरी पंडितों की घर वापसी कब? मंदिरों पर हमला कब तक? यह सभी, कुछ ऐसे सवाल हैं जिन्हे आज का युवा, बड़ा और बुजुर्ग वर्ग अलग-अलग माध्यमों से पूछ रहा है और इन सवालों के जवाब का इंतजार कर रहा है।
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शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने एक ऐसे भारत की कल्पना की थी जो किसी आम सोच से बेहद अलग थी। यह देश हर दिशा में नया कीर्तिमान बनाए और ऐसा ही हमारे के देश के खिलाड़ी और वैज्ञानिक एवं ज्ञानी लोग कर भी रहे हैं। किन्तु यह बात तब निराशा की ओर मुड़ जाती है, जब देश को बाँटने वाले ही राजनीति की सीढ़ियों पर बेरोक-टोक चढ़ रहे हैं।जिसका जल्द से जल्द हल निकालना होगा अन्यथा ‘टूलकिट’ ही इस देश के प्रणाली को अपने अंदर समेट लेगी।