इस्लामिक देश सऊदी अरब में इस्लामिक मामलों के मंत्रालय ने एक सर्कुलर जारी कर मस्जिदों को आदेश दिया है कि वह अपने बाहर लगे स्पीकरों पर रोक लगाएं। सऊदी के इस्लामिक मामलों के मंत्री शेख डॉ अब्दुल्लातिफ बिन द्वारा जारी सर्कुलर में मस्जिदों को केवल अजान और इकामत (सामूहिक प्रार्थना) के समय ही लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत दी गई है।
इस सर्कुलर के तहत इन लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल केवल नमाज के दौरान ही एक-तिहाई आवाज पर कर सकते हैं। यदि मस्जिद यह मापदंड नहीं मानते हैं तो उन पर कानूनी करवाई करने की चेतावनी भी दी गई है। सर्कुलर के अनुसार, नया फैसला पैगंबर मोहम्मद (PBUH) की हदीस पर आधारित है जिसमें उन्होंने कहा: “लो! तुम में से हर एक चुपचाप अपने रब को पुकार रहा है। नमाज पढ़ते समय या इबादत करते समय आवाज को दूसरों की आवाज से ऊँचा नहीं करनी चाहिए।”
मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि नमाज के दौरान आवाज को मस्जिद के अंदर तक ही सीमित रखना है, इसे उन लोगों तक पहुँचाने की कोई आवश्यकता नहीं है जो इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। सर्कुलर में कहा गया है कि बाहरी स्पीकरों पर कुरान पढ़ना अपमानजनक है वह भी तब जब कोई इसकी आयतों को न सुन रहा हो और न ही इस पर विचार कर रहा हो।
किन्तु, क्या ऐसे ही कानून की आवश्यकता भारत में नहीं है? जब देश में कई बार इन लाउडस्पीकरों पर आपत्ति जताई गई है। कई बड़े अभिनेताओं और हस्तियों ने इसके लिए आवाज उठाई है। लेकिन उनके खिलाफ केवल आपत्ति और भगवान का तौहीन बता कर निंदा किया गया। इसमें पहला नाम है सोनू निगम का जिनके एक ट्वीट से हंगामा खड़ा हो गया था। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा था कि “भगवान सब पर कृपा करे। मैं मुसलमान नहीं हूँ किन्तु फिर भी मुझे सुबह अज़ान से जागना पड़ता है। भारत में यह जबरन धार्मिकता कब खत्म होगी।”
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जिसके बाद देश में नया विवाद पैदा हुआ था,किन्तु यह आपत्ति नई नहीं है इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति संगीता श्रीवास्तव ने भी मस्जिद के लाउडस्पीकर पर आपत्ति जताई थी, किन्तु उनके खिलाफ भीकट्टरपंथियों और लिबरलधारियों द्वारा एक प्रोपगैंडा के तहत निंदा की बौछार की गई। पिछले वर्ष ही शिवसेना ने केंद्र सरकार से मांग किया था कि ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए मस्जिदों पर लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए।
किन्तु इनके लिए किसी भी प्रकार का कदम नहीं उठाया गया है। सऊदी अरब के इस सर्कुलर से यह तो साफ है कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि देश में इस्लामिक जानकारों ने भी इसका कोई विरोध नहीं किया और लाउडस्पीकरों का सदैव ही खुलकर समर्थन दिया है।