भारत बनने की कहानी का ऐतिहासिक दस्तावेज है Sandeep Bamzai की किताब ‘Princestan’

By – अरविंद मालगुड़ी भारत की आजादी के बाद भारत बनने की कहानी पर कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। इनमें से कुछ पुस्तकें पठनीय साबित हुई है जिनमें संदीप बामजई (Sandeep Bamzai) की पुस्तक ‘प्रिंसिस्तान’ (Princestan) का नाम भी जुड़ गया है। ‘प्रिंसिस्तान’ (Princestan) को अगर 247 पृष्ठों का ऐतिहासिक दस्तावेज कहा जाये, तो गलत

By – अरविंद मालगुड़ी

भारत की आजादी के बाद भारत बनने की कहानी पर कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। इनमें से कुछ पुस्तकें पठनीय साबित हुई है जिनमें संदीप बामजई (Sandeep Bamzai) की पुस्तक ‘प्रिंसिस्तान’ (Princestan) का नाम भी जुड़ गया है। ‘प्रिंसिस्तान’ (Princestan) को अगर 247 पृष्ठों का ऐतिहासिक दस्तावेज कहा जाये, तो गलत नहीं होगा। दरअसल, इस किताब में बताया गया है कि कैसे 565 रियासतों जिन्हें ”प्रिंसिस्तान’ (Princestan) का नाम दिया गया, को दो स्वतंत्र राज्यों भारत और पाकिस्तान के दायरे से बाहर रखने की साजिश को जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और लॉर्ड माउंटबेटन ने नाकाम किया।

लेखक के अनुसार शहजादे कभी भी स्वतंत्रता नहीं चाहते थे। शहजादों का एक चैंबर था और चैंबर ऑफ प्रिसेंस के चांसलर भोपाल के नवाब हमीद़ल्लाह खान थे। शहजादों ने काफी हद तक खुद को हिंदुस्तान और पाकिस्तान के झमेले से लंबे समय तक बाहर रहने में कामयाबी भी हासिल कर ली थी। परन्तु पंडित नेहरू, सरदार पटेल और लॉर्ड माउंटबेंटन ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। भारत को अस्थिर और कमजोर करने के मिशन में इन रियासतों का साथ अली जिन्ना, लॉर्ड वेवेल और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भरपूर साथ दिया।

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भारत बनने की कहानी का ऐतिहासिक दस्तावेज है Sandeep Bamzai की किताब ‘Princestan’
लेखक संदीप बामजई।

565 टुकड़ों को एक सूत्र में पिरोने की ये कहानी राजनीतिक पुस्तक की तरह एक खास वर्ग के लिए नहीं लिखी गई है। यह एक कहानी की तरह पाठक को 1947 के उस काल खण्ड में ले जाती है जहां यह सब घटित हो रहा था। नेहरू के सम्राज्यवाद विरोधी स्वभाव, पटेल की चतुराई के और गांधीजी एक आकार रहित भारत का विश्वास जिसमें वह चाहते थे कि लोग सह-अस्तित्व में रहें। भारत को एक करने का अभूतपूर्व कार्य जिसमें हर नीति का प्रयोग किया गया यह इस पुस्तक में दर्ज है जिसे पढ़ते हुए आपको अच्छा लगता है। बकौल किताब रियासतों के एकीकरण में एक और व्यक्ति वीपी मेनन जो ऐसे नौकरशाह थे, जिन्होंने पहले माउंटबेटन के साथ काम किया था और जिन्होंने भारत की अंतहीन यात्रा की, उनका भी बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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मेनन ने इन रियासतदारों को साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर अपनी ओर मिलाया। इस नये बिन्दु पर भारतीय पाठक और इतिहास में रुचि रखने वाले वर्ग को संदीप बामजई (Sandeep Bamzai) द्वारा एक अच्छी और ताजा किताब ‘प्रिंसिस्तान’ (Princestan) पढ़ने को मिलेगी। (आईएएनएस)

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