कोरोना से जंग तो पूरी दुनिया लड़ रही है। लेकिन इस लड़ाई में जीत तभी हासिल होगी जब लोग अपनी जात और मजहब को किनारे कर इस बड़ी आपदा से एकजुट को कर लड़ेंगे। यह कहने में बेहद आसान है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है।
पाकिस्तान से हर दिन कोई न कोई खबर आ रही है जिससे पता चलता है की इस आपदा की स्तिथि में भी पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों को किस तरह लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। कहीं मजहब पूछ कर खाना दिया गया तो कहीं कलमा पढ़ने पर ही राहत सामग्री दिए जाने की शर्त रखी गई।
‘दी डिप्लोमेट’ में छपी जफर अब्बास मिर्ज़ा की एक रिपोर्ट के आधार पर हम आपको छह ऐसी घटनाओं के बारे में बताएंगे जब आपदा के वक़्त भी जात और धर्म के आधार पर पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों को निशाना बनाये जाने के साथ साथ राहत सामग्री से भी वंचित रखने की कोशिश की गयी।
छह ऐसी घटना जब धर्म के आधार पर किया गया भेद भाव:
1. एक घटना की जानकारी कराची के कोरांगी इलाके से आई जब फेसबुक पर अदनान नाम के व्यक्ति का एक वीडियो वायरल हो गया। वीडियो में अदनान बता रहा होता है की उसके इलाके में ईसाइयों को राशन दिए जाने की अनुमति नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार कोरांगी इलाके में सायलनी वेलफेयर ट्रस्ट का काम संभालने वाले आबिद क़ादरी द्वारा संघठन के कार्यकर्ताओं को ये निर्देश जारी किया गया था की राशन सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही दिया जाए।
2.धार्मिक तौर पर भेदभाव और घृणा झेलने वालों में शिया मुसलमानों का एक जातीय समूह, ‘हज़ारा’ भी इसका शिकार बना। जिसका असर सरकारी स्तर पर देखा गया। बलोचिस्तान के पुलिस आई.जी ने एक आधिकारिक आदेश जारी कर हज़ारा समूह से आने वाले कर्मचारियों की छुट्टी कर दी। ऐसा ही एक आदेश 13 मार्च को पेयजल और स्वच्छता विभाग ने भी अपने हज़ारा समुदाय के कर्मचारियों के लिए जारी किया।
उसके साथ साथ हज़ारा टाउन और मारियाबाद से आने वाले हज़ारा समुदाय को ये भी आदेश दिए गए की वो जहां है वहीं रहें। हज़ारा टाउन और मारियाबाद शिया हज़ारा समुदाय बहुल इलाका है।25 मार्च को बलोचिस्तान के मुख्य सचिव द्वारा एक आदेश जारी कर हज़ारा बहुल क्षेत्रों को सील करने के साथ साथ उन क्षेत्रों का बाकी के क्वेटा शहर से संपर्क तोड़ दिया गया।
प्रशासन का कहना था की ईरान (शिया बहुल देश) कोरोना हॉटस्पॉट बना हुआ है, और इस वजह से क्वेटा के भी शिया हज़ारा समुदाय के लोगों को अलग रखने के ज़रूरत है।जो की बिल्कुल बेतुका है। जब की आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में शिया हज़ारा समुदाय के मरीजों की संख्या कूल मरीजों के मुकाबले बेहद कम है ।
ये जातीय कार्यवाही पूरे देश में इस समुदाय के प्रति नफरत में तब्दील हो गयी। शिया समुदाय से आने वाले पाकिस्तान के मंत्री ज़ुल्फ़िकार बुखारी और अली ज़ैदी को भी कोरोना फैलाने का ज़िम्मेदार बताया गया। ट्विटर पर एक कैंपेन तक चलाई गयी जिसमे कोरोना वायरस की जगह इसे ‘शिया वायरस’ बताते हुए एक समुदाय के प्रति घृणा फैलाने की कोशिश की गई।
3. 28 मार्च को कराची स्तिथ ल्यारी नामक इलाके में हिन्दू समुदाय के लोगों को राशन देने से मना कर दिया गया। जफर अब्बास मिर्ज़ा की ‘दी डिप्लोमेट’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार उस इलाके में सायलनी वेलफेयर ट्रस्ट के कार्यकर्ता राहत सामग्री देने से पहले पहचान पत्र की मांग कर रहे थे, और किसी के भी हिन्दू पाए जाने पर उनको राशन देने से इनकार कर दिया जा रहा था। उनका कहना था की ये राशन हिंदुओं के लिए नहीं है। इसकी जानकारी पाकिस्तान के हिन्दू युथ कौंसिल के संस्थापक विशाल आनंद ने ‘दी डिप्लोमैट’ के साथ साझा किया।
हालांकि ज़फर अब्बास मिर्ज़ा लिखते हैं की सायलनी वेलफेयर ट्रस्ट, बिना भेदभाव के सेवा धर्म निभाने के लिए जाना जाता है, जिसका अर्थ ये है की इलाके में ट्रस्ट के लिए काम कर रहे कार्यकर्ता के निजी घृणा के कारण इस भेदभाव की घटना को अंजाम दिया गया होगा।
4. एक वीडियो तो ऐसा भी आया जिसमे एक महिला द्वारा ये भी दावा किया गया की राशन के बदले उस महिला के सामने पहले कलमा पढ़ने की शर्त रखी गयी।
5. रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित कसुर ज़िले के सन्धा गाँव में करीबन 100 ईसाई परिवार को उसके धर्म की वजह से राशन देने से इनकार कर दिया गया। हालांकि बाद में एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा ही उन्हें मदद मुहैया कराए जाने की भी बात लिखी गयी है।
6. लाहौर के एक राहत कैम्प में पोस्टर तक लगा दिए गए थे जिस पर गैर मुस्लिमों को अंदर ना आने के आदेश थे। रिपोर्ट के अनुसार इसे बाद में हटा लिया गया। ऐसा दावा करने वाले व्यक्ति ने दलील दी है की वहां भीड़ की वजह से वो उस पोस्टर की तस्वीर नहीं निकाल पाया था।
पाकिस्तान में गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक तो दूर, मुस्लिमों (शिया) की भी हालात है ख़राब
पाकिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किये जाने वाली खबर नई नहीं है। हिन्दू अल्पसंख्यक से लेकर सिख, जैन और ईसाइयों को उनके धर्म के नाम पर आये दिन प्रताड़ित किया जाता है। हिन्दू बेटियों के बालात्कार से लेकर जबरन धर्म परिवर्त्तन कराने की खबर आम हो गयी गई। भारत की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाया गया नागरिकता कानून में बदलाव ऐसे ही हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, और ईसाई धर्म को मानने वाले अल्पसंख्यक प्रताड़ित लोगों के लिये था। हालांकि विपक्ष ने इसका जम कर विरोध किया था।
पाकिस्तान के वज़ीर ए आज़म इमरान खान, भारत में रह रहे दूसरी बहुसंख्यक (अल्पसंख्यक) मुस्लिम आबादी को लेकर चिंता जताते हुए मोदी सरकार का अक्सर विरोध करते हुए नज़र आते हैं, जबकि उनके खुद के देश में गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक तो दूर, मुस्लिमों (शिया) की भी हालात बद से बद्तर होती जा रही है।