2020 के सियासी आंगन में कैसे बदले मौसम?

साल 2020 राजनीति के लिए रोमांचक एवं चौंकाने वाला रहा क्योंकि सिंधिया भाजपा में शमिल होना, बिहार चुनाव का नतीजा और हैदराबाद नगर पालिका चुनाव में सरगर्मी देखने लायक था।

0
695
NewsGram Hindi न्यूज़ग्राम हिंदी राजनीति 2020 Politics 2020 बिहार चुनाव Bihar Election Hydrabad Election
साल 2020 राजनीतिक गलियारे में उथल-पुथल वाला रहा। पढ़िए कैसा रहा साल 2020!

हिंदुस्तान के सियासी गलियारे में यह साल काफी उठा-पटक वाला रहा। क्योंकि एक तरफ कोरोना की मार और ऊपर से सत्ता का बुखार, माहौल गर्म होना तो निश्चित था। कई मुद्दे विपक्ष से उठे तो कई सरकार ने उठाए मगर कुल-मिलाकर यह साल राजनीति के गलियारे में कोलाहल भरा ही साबित हुआ। मजदूर घर-वापसी, कोरोना के दर में वृद्धि, देश की अर्थव्यवस्था और लॉकडाउन ने सरकारों की चिंता बढ़ा रखी थी। भारत में कोरोना खतरे से पहले ही दिल्ली ने अपनी सरकार को चुन लिया था। 8 फरवरी 2020 को हुए मतदान में दिल्ली वाले फिर एक बार अरविन्द केजरीवाल की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गए। मगर नतीजा निकला दिल्ली हिंसा और कोरोना का अधिक आक्रामक होना।

arvind kejriwal corona hospital
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल।(Twitter)

यह तो स्वास्थ्य कर्मी ही हैं जो इतने कठिन परिस्थितयों में भी सहज और सजग ढंग से कोरोना से लड़ाई लड़ रहे हैं, नहीं तो दिल्ली सरकार ने कई अस्पतालों के कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दिया है। अरविन्द केजरीवाल और उसके पीछे छुपे कुछ ऐसे भी रहस्य हैं जिनको आम जनता नहीं जानती है। उन्ही रहस्यों का खुलासा करती है डॉ. मुनीश रायज़ादा द्वारा निर्मित एक वेब-सीरीज़ ‘ट्रांसपेरेंसी-पारदर्शिता’(लिंक नीचे मौजूद है)।

‘ट्रांसपेरेंसी-पारदर्शिता’ को मुफ्त में देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: https://www.mxplayer.in/show/watch-transparency-pardarshita-series-online

फिर सियासी गलियारे में आई दिल्ली हिंसा की खबर, और इसी के साथ शुरू हुआ आरोप-प्रत्यारोप का दौर। इस हिंसा में लगभग 53 लोग मारे गए जो कि सरकारी आंकड़ा है। लेकिन फ़ैलाने वाले का नाम और वह किस पार्टी से जुड़ा था उसका नाम सुनेंगे तो दंग रह जाएंगे। दिल्ली में हिंसा को फ़ैलाने वाले का नाम है आम आदमी पार्टी के निलंबित नेता तारिक हुसेन। जिन्होंने ख़ुफ़िया ब्यूरो के अंकित शर्मा को मारने का भी प्लान बनाया था। तब भी अरविन्द केजरीवाल सरकार ने सारा आरोप केंद्र पर मढ़ कर अपना पल्ला झाड़ लिया था।

delhi riots tahir hussain
दिल्ली दंगों के बाद की तस्वीर।(VOA)

और जब दिल्ली में हिंसा को भड़काया जा रहा था तब अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प दो-दिवसीय भारत दौरे पर थे।

अब आया मार्च का महीना, जिसमे मध्यप्रदेश में जिस तरह से उठा पटक का माहौल बना वह देखने लायक था। 11 मार्च को कांग्रेस को अलविदा कह ज्योतिरादित्य सिंधिया, 12 मार्च को भाजपा में शामिल हो गए। सिंधिया के साथ उनके खेमे के 22 और विधायकों ने भी अपना इस्तीफा दे दिया। जिसके उपरांत कमलनाथ सरकार गिरी और 23 मार्च को शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। खैर! सियासी संचार में कई बातें उठीं, किसी ने कहा कि यह राजनीति का हनन है, तो किसी ने भाजपा पर खरीद-परोख्त का आरोप लगाया। कई सिंधिया के समर्थन में यह कहते दिखे कि उन्हें कांग्रेस पार्टी का भविष्य धूमिल सा दिख रहा था इसलिए उन्होंने पार्टी को अलविदा कहा। लेकिन सौ बात की एक बात यह कि सरकार अब भाजपा की है। हालांकि, 10 नवम्बर को आए उप-चुनाव के नतीजों में भी भाजपा ही जीती, जिसमे भाजपा को 19 वहीं कांग्रेस को 9 सीटें मिली।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया।(Jyotiraditya Scindia, ट्विटर)

मार्च महीने में ही प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना महामारी की वजह से 22 मार्च को ‘जनता कर्फ्यू’ और फिर 21 दिन का लॉकडाउन घोषित कर दिया। जिसका असर 30 मई तक दिखा और उसके उपरांत देश में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई।

मई महीने में ही सिक्किम के नाथू-ला क्षत्र में भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने भिड़े थे। 150 से ज़्यादा सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। इसी झड़प के बाद ही लद्दाक क्षेत्र में भारत चीन के बीच तनाव बढ़ गया, जिसका असर आज भी दिख रहा है।

फिर जून में आए वह तीन कानून जिस पर आज भी कई राजनीतिक दल फायदे की रोटी सेक रहें हैं। जून 5 को ही भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीनों कृषि सुधार कानूनों की घोषणा की थी और 27 सितम्बर को इन तीनों विधेयकों को संसद में पारित कर दिया गया। किन्तु इन्ही तीनों विधेयकों को सरकार द्वारा वापस लेने के लिए किसान दिसम्बर महीने से ही दिल्ली की सीमाओं पर और दिल्ली में धरना दें रहें हैं। किन्तु यह किसान आंदोलन तब विवाद में बदल जाता है जब प्रधानमंत्री मोदी को मारने की धमकी सरेआम दी जाती है। पंजाब के मुख्यमंत्री पहले ही इस प्रदर्शन को देश के लिए खतरा बता चुकें हैं, क्योंकि कई जगहों और प्रदर्शनों में प्रतिबंधित संगठन ‘खालिस्तान’ समर्थित नारे एवं झंडे देखे हैं।

किसान आंदोलन Farmer Protest
किसान आंदोलन का फायदा कई राजनीतिक दल उठा रहे हैं।(फाइल फोटो)

जून में ही बॉलीवुड अभिनेता ‘सुशांत सिंह राजपूत’ की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद रिया चक्रबर्ती और उनके भाई शोभित चक्रबर्ती को ड्रग्स मामले में गिरफ्तार किया गया था। हालाँकि, सुशांत की मृत्यु के उपरांत राजनीति और गरमा गई। क्योंकि महाराष्ट्र सरकार की बिहार के साथ-साथ केंद्र से भी ठन सी गई थी। आलम यह था कि महाराष्ट्र पुलिस बिहार से आए टीम पर न तो ध्यान दे रही थी और न ही मदद। इस मामले को गहराता देख सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया। सीबीआई अभी भी इसकी जाँच कर रही है। किन्तु सुशांत के मृत्यु के बाद बॉलीवुड में चल रहे ड्रग जंजाल का बड़े पैमाने पर भंडाफोड़ हुआ है और नारकोटिक्स ब्यूरो ने कई अभिताओं से पूछताछ और गिरफ़्तारी भी की है।

Sushant Singh Rajput
दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत। (Wikimedia Commons)

जुलाई‘ में राजस्थान का पारा राजनीति में भी गरम दिखा, क्योंकि सचिन पायलट ने बागी होने का मन लगभग बना ही लिया था। जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हुए अटकलें यही लगाई जा रही थी कि पायलट भी अपना रास्ता बदलेंगे। किन्तु अंत तक राहुल गांधी और कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी ने समझाने-बुझाने का प्रयास किया। क्योंकि वह एक और राज्य से अलविदा नहीं कहना चाहती थी। वहीं दूसरी ओर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत खुल-कर पायलट पर अपनी भड़ास निकाल रहे थे। मीडिया के सामने और कई अन्य मंचों से पायलट को बिका हुआ बताया गया। किन्तु राजनीति में बेइज़ती भी पब्लिसिटी होती है। और अंत में गहलोत और पायलट ने हाथ मिलाकर कांग्रेस को राजस्थान की सत्ता में आसीन रखा।

यह भी पढ़ें: क्या राजनीति सच में मैली है या इसे राजनेताओं ने मैला कर दिया है?

जुलाई में ही कुख्यात गैंस्टर विकास दूबे को मार गिराया गया। अब क्योंकि यह योगी सरकार ने किया तो सवाल उठना लाज़मी था। इसलिए उस इनकाउंटर को मनगढ़ंत बताने की और सरकार खुद को बचा रही है ऐसा कहने का दौर शुरू हो गया। किन्तु जब उसी कुख्यात अपराधी ने 8 पुलिसकर्मियों को बेरहमी से मारा तब सबने संवेदना व्यक्त करने सिवा कुछ नहीं कहा क्योंकि उन्हीं के सरकारों के समय यह गैंगस्टर फल-फूल रहा था। और इस घटना के बाद यूपी एवं मध्यप्रदेश में न जाने कितने अपराधियों के संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया है।

vikas dubey encounter
आत्मसमर्पण से पहले उज्जैन मंदिर में खड़ा कुख्यात अपराधी विकास दुबे (Twitter)

अगस्त‘ सभी भारतीयों के लिए एक ऐतिहासिक माह रहा, क्योंकि जिस दिन की प्रतीक्षा पूरे देश ने बेसब्री से की थी उसका समापन 5 अगस्त को हुआ। क्योंकि उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा श्री राम जन्मभूमि का शिलान्यास किया गया था। जिसका फैसला 9 नवम्बर 2019 को सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय के बाद लिया गया। अब इस शुभारम्भ में भी विवाद की जड़ बने एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन औवेसी, जिन्होंने यह कहा कि बाबरी मस्जिद था, है और रहेगा। जिसके बाद उनकी फजीहत होना तय था क्योंकि बाबरी मस्जिद के पक्षकारों ने सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय को स्वीकार कर लिया था। कुछ समय बाद भी इस फैसले पर पुनर्विचार की अर्ज़ी सर्वोच्च न्यायलय में दर्ज कराई गई थी जिसे ख़ारिज कर दिया गया।

NewsGram Hindi न्यूज़ग्राम hindi अयोध्या राम मंदिर भूमि पूजन Ram Mandir Ayodhya
अयोध्या राम मंदिर का भूमि पूजन करते प्रधानमंत्री मोदी।(PIB)

अगस्त महीने में ही बैंगलोर शहर में एक खास समुदाय ने दंगे को जन्म दिया था जिसमे 3 लोगों की मृत्यु हो गई और कई निजी एवं सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया। बवाल इस बात पर मचा जब कोंग्रेसी नेता अखंड श्रीनिवास मूर्ति के भतीजे ने पैगम्बर मोहम्मद पर फेसबुक पर आपत्ति जनक टिप्पणी की थी। जिसके बाद 200 से अधिक लोगों ने पेट्रोल बम और पत्थरों से नेता के घर पर हमला कर दिया। राहत की बात यह रही कि नेताजी सपरिवार घर पर नहीं थे। जिसके बाद भीड़ और पुलिस में झड़प हुई। भीड़ की आक्रामकता और उपद्रव को देख कर पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए गोलियाँ चलाई जिस भगदड़ में 3 प्रदर्शनकारी मारे गए। इस दंगे के लिए 100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।

सितम्बर‘ महीने उन तीन कृषि कानूनों को जिन्हे संसद में 6 जुलाई को पेश किया गया था उन्हें पारित कर दिया गया। किन्तु किसान खासकर पंजाब और हरियाणा के किसान संगठन इन कानूनों के खिलाफ कई दिन से प्रदर्शन पर बैठे हुए हैं। और इस प्रदर्शन का फायदा हर विपक्षी पार्टी अपने-अपने तरीके से उठा रही है। अब खालिस्तानी और विदेशी फंडिंग की भी जाँच सुरक्षा एजेंसियां कर रहीं हैं। हाल ही में एक किसान आंदोलन के जुलूस की तस्वीरें वायरल हुई जिसमे किसान झूठे आरोपों में गिरफ्तार किसानों की तस्वीर हाथों में लिए उनकी रिहाई की मांग कर रहे थे। किन्तु चौंकाने वाली बात यह रही की उसमे देशद्रोह के आरोपित छात्रसंघ के नेता उम्र खालिद और भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार राजनीतिक कार्यकर्ता और कवि वरवरा राव की तस्वीर भी शामिल थी। जिनका किसान आंदोलन से दूर-दूर तक नाता नहीं था। खैर, अब भारत के सर्वोच्च अदालत ने केंद्र और किसानों को मिलकर कमिटी बनाने और इसका समाधान निकालने का आदेश दिया है।

farmers-protest किसान संगठनों की हुंकार
किसान आंदोलन अभी भी जारी। (फाइल फोटो)

सितम्बर में ही भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के संग 32 नेताओं को बाबरी विध्वंस मामले में सर्वोच्च न्यायलय द्वारा बरी कर दिया गया। लालकृष्ण आडवाणी के साथ मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार जैसे नेता शामिल थे। जिन्हे यह कह कर बरी किया कि यह पूर्व नियोजित हमला नहीं था और इसका कोई सबूत या तथ्य भी नही है।

बिहार के महा चुनाव को महीना बचा हुआ था किन्तु 4 अक्टूबर 2020 को दिवंगत नेता रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी ने एनडीए से अलग हो कर चुनाव लड़ने का फैसला किया। जिसका परिणाम आपको पता है। किन्तु यह अलग लड़ने का फैसला एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान का था क्योंकि उस समय रामविलास पासवान अस्वस्थ थे और अस्पताल में इलाज करावा रहे थे। और इलाज के दौरान ही 8 अक्टूबर 2020 को उनका निधन हो गया। एलजेपी न तो जीतने के लिए चुनाव में उतरी थी और न ही भाजपा से उनका मतभेद था, उनका लक्ष्य था केवल और केवल जनता दल यूनाइटेड को पीछे धकेलना। जिसमे वह सफल भी रहे।

यह भी पढ़ें: “आज मुझे भड़काना बहुत आसान है”

बिहार चुनाव से कुछ ऐसे चेहरे भी नदारद दिखे जिनसे कभी चुनाव के रौनक रहती थी। उन्ही में से एक हैं लालू यादव जो कि स्वास्थ्य कारणों से बिहार राजनीति से दूर रहे। एलजेपी के पूर्व अध्यक्ष रामविलास पासवान भी नहीं रहे, जिसकी कमी एलजेपी को अधिक खली। और यह भी माना जा रहा था कि अगर रामविलास पासवान जीवित और स्वस्थ होते तो यह अलगाव न होता।

बिहार चुनाव 2020
बिहार चुनाव 2020 (फाइल फोटो)

राजनीतिक गलियारे में वह घड़ी भी आ गई जिसका सभी को इंतज़ार था। 28 अक्टूबर से 7 नवम्बर तक 248 सीटों पर तीन चरणों में 57.05 मतदाताओं ने मतदान किया। कोरोना काल में यह पहला सबसे बड़ा चुनाव था। जिसके लिए सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली थी। सभी साम-दाम-दंड-भेद की रणनीति पर अपनी-अपनी पार्टी का प्रचार कर रहे थे। किसी ने कोरोना टीका मुफ्त देने का वादा किया तो कहीं 10 लाख रोज़गार का वादा किया। किसी ने जंगल राज की याद दिलाई तो किसी ने मजदूरों पर सरकार से जवाब माँगा। लेकिन चौकाने वाली बात इस चुनाव में 7 नवम्बर से 10 नवम्बर के बीच हुई। जिसमे सभी एग्ज़िट पोलों में राजद और कांग्रेस को आगे या बहुमत के पार दिखाया गया। 10 नवम्बर यानि मतगणना के दिन सुबह से ही रुझानों में भाजपा को आगे दिखाया जा रहा था और रात होते-होते स्थिति साफ होती चली गई। रुझान अनुसार एनडीए ही पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में सफल रही, किन्तु राजद ने भी कड़ी टक्कर दी और 75 सीटें जीतते हुए राजद सबसे बड़ी पार्टी बन गई, उसके साथ भाजपा 74 सीटों पर कब्ज़ा करने में सफल रही और जदयू 43 सीट जीतकर तीसरे नम्बर पर रही। कांग्रेस ज़्यादा कमाल नहीं दिखा पाई और 19 सीटें ही समेट पाई। कुल मिलाकर एनडीए ने जीते 125 सीटें और महागठबंधन ने जीते 110 सीटें। एनडीए को इतनी सीटें जिताने का श्रेय बिहार की महिलाओं को दिया गया जिन्होंने ज़्यादा न बोलते हुए भी कमल को सहयोग किया। इधर लोजपा भी अपनी रणनीति में सफल रही और वोटकटवा बनकर सामने आई जिस वजह से जदयू ने कम सीटें जीतीं। बिहार चुनाव में एआईएमआईएम भी 5 सीटें जीतने में सफल रही और बिहार विधानसभा में प्रवेश किया।

Yogi Adityanath
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। (VOA)

बिहार चुनाव की गहमा-गहमी के बाद एक और चुनाव ने दस्तक दे दी, किन्तु इस चुनाव की लहर तेज़ हुई नवम्बर में और ख़त्म हुई दिसम्बर में। यह चुनाव था ‘ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव 2020(GHMC)’ का जिसके लिए भाजपा के लगभग सभी मुख्य चेहरे मैदान में उतर गए थे। अमित शाह, जेपी नड्डा और तो और योगी आदित्यनाथ भी इस चुनाव में मुख्य भूमिका में नज़र आए। इस चुनाव में भाजपा ने हैदराबाद के हिन्दू वोटरों को बहुत हद तक लुभा लिया। पहले योगी आदित्यनाथ का ‘भाग्यनगर’ का सुझाव और दूसरा भाग्यलक्ष्मी मंदिर में अमित शाह की पूजा-अर्चना। और इसी की वजह से जिस भाजपा ने 2016 में केवल 4 सीट जीती थीं उसी भाजपा ने 2020 में 48 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं सत्तारूढ़ पार्टी टीआरएस ने 55 सीट और एआईएमआईएम को 44 सीटों पर जीत मिली।

साल 2020 के राजनीतिक गलियारे में कोरोना का कहर तो दिखा ही साथ ही साथ राजनीतिक हेर-फेर का कारनामा देखने भी को मिला। कुल-मिलाकर 2020 रोमांचक रहा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here