यह आर्टिक्ल मारिया वर्थ के ब्लॉग पर छपे अंग्रेज़ी लेख के मुख्य अंशों का हिन्दी अनुवाद है।
यूरोपीय देशों द्वारा मानवाधिकारों को कुचले जाने का इतिहास बहुत ही पुराना रहा है। उदाहरण के तौर पर आप जर्मनी का नरसंहार याद कर सकते हैं। नरसंहार के मामले मे जर्मनी के अलावा, ब्रिटेन, फ़्रांस, पुर्तगाल,अरब, तुर्क और मंगोलियाई शासकों का इतिहास भी बेहद ही खतरनाक रहा है। आंकलन के आधार पर, उनकी क्रूरता के कारण मारे जाने वाले लोगों की संख्या लाखों में है।
मारिया वर्थ लिखती हैं की इतिहास में रहे मुस्लिम आक्रमांकारी आज के समय के इस्लामिक आतंकी संगठन, आईएसआईएस जितने खतरनाक हुआ करते थे। अन्य धर्म के लोगों को प्रताड़ित करने के अलावा उनके सर को धड़ से अलग कर देने के काम बहुत ही बड़ी संख्या में किया जाता था।
मुग़ल शासक अकबर, जिसे ‘अकबर: दी ग्रेट’ के नाम से भी जाना जाता हैं, उनके बारे मे मारिया वर्थ लिखती है की, उनके राज मे भी भारी संख्या में हिंदुओं का नरसंहार देखा गया गया था। उनके मुताबिक ऐसा कहा जाता है की अकबर द्वारा कत्ल किए गए ब्राह्मणों के ‘जनेऊ’ का इकट्ठा करने पर वजन, लगभग 200 किलो के बराबर था।
इस्लामिक शासनों में हिंदुओं के हजारों मंदिरों को तोड़ने के अलावा, हिन्दू महिलाओं को सेक्स स्लेव(गुलाम) के रूप में भी बेचा जाता था। मुस्लिम घुड़सवारों द्वारा हिंदुओं के मुंह में थूक फेंके जाने तक का चलन था, जिसे हिंदुओं को निर्विरोध स्वीकार करना पड़ता था। एंड्रयू बोस्टन द्वारा लिखे गए ‘लेगेसी ऑफ जिहाद’ का हवाला देते हुए मारिया वर्थ ये भी लिखती हैं की कई इस्लामिक शासनों मे गाय काटने को ‘महान काम’ का दर्जा दिया गया था। ऐसा इसीलिए किया जाता था ताकि हिंदुओं को तकलीफ़ देने के साथ उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाया जा सके।
मारिया वर्थ, गुरु ग्रंथ साहब का हवाला देते हुए उन बातों को भी याद करती हैं जब गुरु नानक ने इस्लामिक शासकों को निशाने पर लेते हुए कहा था की “हे ईश्वर, इन कुत्तों ने हीरे के समान भारत को बर्बाद कर दिया है”।
इस्लामिक शासकों के मुक़ाबले अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर की गयी बर्बरता भी कुछ कम नहीं थी।
इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने अपने बयान में साफ कहा था की वो भारतीयों से नफरत करता है। यहाँ तक की उसने भारतीयों को जानवर के समान बताया था, वहीं चार्ल्स डिकिन्स का कहना था की सारे भारतीयों को खत्म कर देना चाहिए। जबकि मैक्स मूलर सभी भारतीयों का ईसाई धर्म मे परिवर्तित कर देने चाहता था।
एक समय में दुनिया के सबसे अमीर देशों में शामिल भारत को, अंग्रेज़ों ने लूट कर गरीब देश में तब्दील कर दिया। आंकड़ें के मुताबिक ब्रिटिश शासन में तकरीबन 2.5 करोड़ लोगों के भूखे मारे जाने का अनुमान है। मारिया वर्थ लिखती है की कर्नाटक स्थित मदिकेरी नामक शहर के क्लब हाउस में 1950 तक एक बोर्ड लगा हुआ था जिस पर लिखा होता था की “कुत्ते और भारतीय के अंदर जाने पर प्रतिबंध है”
इतिहास में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों की कोई सीमा नहीं थी। जिसकी वजह से उनमें इन अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाने की क्षमता खत्म हो गयी थी। यहाँ तक की आज़ाद भारत में, आज भी हिंदुओं पर होने वाले अत्याचारों पर सवाल नहीं उठाया जाता है। मारिया वर्थ लिखती है, उन्हे बहुत दुख होता है जब वो हिंदुओं पर हुए अत्याचार को लेकर लोगों को ये कहते हुए सुनती है की , “ये खबर बनने लायक नहीं है, क्यूंकी पीड़ित व्यक्ति मात्र एक हिन्दू है”।
अरब और यूरोपीय शासक, मानव जाती पर पर इतनी क्रूरता कैसे कर सकते हैं? मारिया वर्थ इसके पीछे का कारण बताते हुए लिखती हैं की, वो ऐसा इसीलिए करते हैं क्यूंकी वो अपने आप को बाकियों से ऊपर और शक्तिशाली समझते हैं। इनके इस सोच के पीछे इनके धर्म का बहुत बड़ा हाथ है। ईसाई और इस्लाम धर्म अपने लोगों को यही सिखाता है की उनका धर्म ही एक मात्र ‘सच्चा’ धर्म है। और उनके इस ‘सच्चे’ धर्म को ना मानने वालों को उनका ईश्वर सज़ा देगा।
इस्लाम मे ऐसे लोगों को काफिर बताया गया है।
उनके ईश्वर द्वारा ही जब ऐसे लोगों को सज़ा दिये जाने का प्रावधान है, तो वो मानते हैं की उसी पथ पर चलने में उन्हे भी पीछे नहीं हटना चाहिए। मारिया वर्थ आगे सवाल करते हुए लिखती हैं, की आखिर किस आधार पर वो अपने धर्म को ही एक मात्र ‘सच्चा’ धर्म मानते हैं? उनके धर्म संस्थापकों द्वारा ऐसा दावा किए जाने के अलावा ऐसा कोई भी साक्ष्य मौजूद नहीं है जिससे ये साबित किया जा सके की उनका धर्म ही एक मात्र ‘सच्चा’ धर्म है।
मारिया वर्थ लिखती हैं की, इतिहास में क्रिश्चियन और इस्लाम धर्म मानने वालों ने दूसरे धर्म या समुदाय के लोगों को सबसे ज़्यादा प्रताड़ित किया है।
एक गंभीर सवाल उठाते हुए मारिया लिखती हैं की, श्वेत क्रिश्चियन, या मुसलमानों को उनके पूर्वजों द्वारा किए गए ज़ुल्म, बर्बरता या अपराध को कभी भी याद नहीं दिलाया जाता। इसके पीछे की दलील ये होती है की “आज की पीढ़ी को उनके पूर्वजों द्वारा किए गए पापों को लेकर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है”। लेकिन यही बात हिन्दू ब्राह्मणों पर लागू नहीं होती है। मीडिया द्वारा हिन्दू ब्राह्मणों को इस तरह निशाना बनाया जाता है जैसे इतिहास में ब्राह्मणों ने ही मानव जाति पर सबसे ज़्यादा अत्याचार किया हो। हिंदुओं के जातीय व्यवस्था को इस इल्ज़ाम का आधार बनाया जाता है।
हालांकि हिन्दू धर्म के इतिहास में ‘जाति’ की जगह ‘वर्ण’ व्यवस्था का प्रावधान रहा है। जिसमे कर्म के आधार पर लोगों को बाँटा गया था। उदाहरण के तौर पर धर्म का ज्ञान रखने वाले वेदों के जानकार को ‘ब्राह्मण’ बताया गया था। तो वहीं,समाज की रक्षा करने वाले लोग ‘क्षत्रिय’ कहलाते थे। ज़रूरत के सामानों की आपूर्ति का ज़िम्मा उठाने वाले लोगों को ‘वैश्य’ के श्रेणी मे रखा गया था, जबकि साफ सफाई के कामों की ज़िम्मेदारी संभाला हुआ व्यक्ति ‘शूद्र’ कहलाता था। हिन्दू धर्म ग्रन्थों मे कहीं भी लोगों को जन्म क आधार पर नहीं बल्कि उनके कर्म के आधार पर बाँटा गया है।
लेकिन अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान ‘वर्ण’ की परिभाषा बदल कर नयी जातीय परिभाषा की रचना की थी, जिसमे हिंदुओं को जन्म के आधार बांटने का चलन शुरू हुआ।
आज भी ‘जातीय व्यवस्था’ के नाम पर पूरे हिन्दू समुदाय को बदनाम किया जाता है।
ये बात सत्य है की भारत के इतिहास में एक दौर वो भी था जब साफ सफाई का काम करने वाले लोगों को कई लोग छूने से कतराते थे। इस बात को लेकर भी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हिंदुओं को बदनाम किया जाता है। मारिया वर्थ मानती हैं की, मरे जानवरों को उठाना, नाले या गंदगी साफ करने वाले व्यक्ति से दूरी बनाने का काम दुनिया के सभी देश और समाजों मे होता आया है, और इससे सिर्फ हिन्दू धर्म को नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
हालांकि आज़ादी के बाद, ‘छुआछूत’ को लेकर भारत सरकार ने इसके खिलाफ कानून बना दिया था। अब ऐसा करना एक अपराध माना जाता है। छुआछूत जैसी प्रथा को बढ़ावा देने वाले लोगों को कानून में जमानत तक नहीं दिये जाने का प्रावधान है। लेकिन इसके बाद भी पूरी दुनिया में हिन्दुओ को अपनी जातीय/वर्ण व्यवस्था के लिए बदनाम करने की कोशिश की जाती है। मारिया वर्थ लिखती हैं की, ऐसा इसीलिए किया जाता है क्यूंकी उनके पास हिंदुओं द्वारा इतिहास में की गयी बर्बरता का एक भी प्रमाण मौजूद नहीं है, जिसकी वजह से उन्होने हिंदुओं के वर्ण व्यवस्था को ही बढ़ा चढ़ा कर दुनिया के सामने पेश किया ताकि हिंदुओं को बदनाम किया जा सके।
एक मनगढ़ंत कहानी के आधार पर हिंदुओं को अत्याचारी बताने का प्रयास किया जाता रहा है, जबकि हर शताब्दी में मुस्लिम और क्रिश्चियन शासकों द्वारा हिंदुओं पर ही लगातार अत्याचार किया गया, जिसे बड़ी आसानी से भुला दिया जाता है।
मारिया वर्थ लिखती हैं की, ऐसा करने वाले बहुत दिनों तक बचे रहे क्यूंकी हिंदुओं ने इन अत्याचारों और इल्जामों पर चुप्पी साधि रही। लेकिन अब हिन्दू धर्म के कई लोग इस पर मुखर हो कर बोलने लग गए है, क्यूंकी उन्हे ये बात समझ आ गया है की धर्म निरपेक्षता के नाम पर हिन्दुओ को सालों से बेवकूफ़ बनाया गया है, क्यूंकी मुस्लिम और क्रिश्चियन कभी भी धर्म निरपेक्ष हो ही नहीं सकते। मुस्लिम और क्रिश्चियन स्वभाव से ही सांप्रदायिक होते हैं, जिनका मकसद अपने धर्म का पूरी दुनिया में विस्तार करना है।
मारिया वर्थ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को नसीहत देती हुई लिखती हैं की, मोदी सरकार पर, हिन्दू राष्ट्र को लेकर तंज़ कसने की जगह उन्हे अपने देश और अपने विचारधारा की चिंता करनी चाहिए। क्यूंकी आज़ाद और समावेशी हिन्दू राष्ट्र, किसी भी हाल में कट्टर, और अपने आप को सबसे शक्तिशाली समझने वाले इस्लाम या क्रिश्चियन धर्म के विचारधारा से कही ज़्यादा बेहतर है।