कारगिल विजय दिवस: शौर्य और बलिदान की गाथा

जब जब दुश्मन ने देश पर गलत निगाह रखी, तब तब हमारे देश के सैनिकों ने उनके नापाक मंसूबो को नेस्तनाबूद कर दिया।

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kargil war victory story
भारतीय सैनिक (Image: Wikimedia Commons)

21 साल पहले आज ही के दिन भारतीय सेना ने अपने पराक्रम का परिचय देते हुए करगिल युद्ध में पाकिस्तान को परास्त कर, ऑपरेशन विजय को अंजाम दिया था। आज 21वां कारगिल विजय दिवस है, वो विजय, जिसका मूल्य भारतीय वीर जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर चुकाया था। वो दिवस, जिसमे देश के हर नागरिक की आँखें, जीत की खुशी से अधिक हमारे सैनिकों की शहादत के सम्मान में नम होती है। 26 जुलाई की तारीख अपने साथ हमेशा भावनाओं का सैलाब लेकर आती है। 21 साल पहले कारगिल युद्ध में टाइगर हिल, तोलोलिंग, पिम्पल कॉम्प्लेक्स जैसी पहाड़ियों पर भारतीय वीर जवानों ने जीत का तिरंगा लहराया था।

आइये जानते है भारतीय सेना ने उन तीन जटिल पर्वतों पर कैसे फ़तह हासिल की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश…

द्रास सेक्टर के तोलोलिंग पर्वत पर कब्ज़ा

द्रास सेक्टर के तोलोलिंग पर्वत पर पाकिस्तानी सैनिकों ने कब्ज़ा जमा लिया था। यह स्थान, द्रास शहर और श्रीनगर-कारगिल-लेह राष्ट्रीय राज मार्ग से 5 किमी की दूरी पर स्थित है, जहां से घुसपैठिए आसानी से भारतीय सेना पर गोलाबारी कर रहे थे। तोलोलिंग और आसपास की चोटियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को जल्द भगाने को सैन्य अभियान में सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। हालांकि भारतीय सेना के शुरुआती प्रयास असफल रहे थे, लेकिन तोलोलिंग पर्वत पर तीन सप्ताह तक चली इस लड़ाई का असर पूरे युद्ध में देखने को मिला।

आइये जानते है, कैसे भारतीय सेना ने तोलोलिंग पर्वत पर जीत हासिल की

  • 2 राजपूताना राइफल ने 12 जून को आक्रमण प्रारम्भ किया। मेजर विवेक गुप्ता के नेतृत्व में ‘सी’ कंपनी और मेजर मोहित सक्सेना के नेतृत्व में ‘डी’ कंपनी आक्रमण के लिए निकल पड़ी।
  • अन्य दो कम्पनी ‘ए’ और ‘बी’, पर्वत की सतह से गोला दागति रहीं और इन्हें रिइन्फोर्समेंट के लिए रिज़र्व रखा गया।
  • ‘डी’ कम्पनी को पहली कामयाबी तब मिली जब कंपनी अपने पहले लक्ष्य बिंदु 4590 पर पहुंची।
  • ‘सी’ कंपनी ने आक्रमण करना शुरू किया। आमने सामने की लड़ाई में  विवेक गुप्ता, कम्पनी का नेतृत्व करते हुए गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, दुश्मन के अंतिम आदमी को खदेड़ने तक अपने सैनिकों को नेतृत्व प्रदान करते रहे।
  • इस गंभीर परिस्थिति में कैप्टन मृदुल कुमार सिंह ने कंपनी का नेतृत्व करने का फैसला किया, ताकि दुश्मन के दोबारा आक्रमण का मुकाबला किया जा सके। पाक सेना ने जब दोबारा आक्रमण किया तो इसे ‘सी’ कम्पनी ने विफल कर दिया।
  • तब 2 राजपूताना राइफल के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल एम.बी. रवींद्रनाथ ने मेजर पी. आचार्य के नेतृत्व में ‘ए’ कम्पनी को बिंदु 4590 के शेष भाग पर कब्ज़ा ज़माने के लिए आक्रमण करने को कहा।
  • तोलोलिंग चोटी पर हमारे भारतीय सैनिकों के नज़दीक होने के बावजूद इस लक्ष्य पर तोप से प्रभावशाली ढंग से गोलाबारी की गई। साथ ही ‘बी’ कम्पनी को तोलोलिंग के उत्तरी ढलान से दुश्मन को भगाने की ज़िम्मेदारी दी गई।
  • 13 जून को 2 राजपूताना रायफ़ल्स ने तोलोलिंग चोटी पर विजय प्राप्त कर ली  ।

इस महत्वपूर्ण युद्ध में सूबेदार भंवरलाल, कम्पनी हवालदार मेजर यशवीर सिंह,हवलदार सुल्तान सिंह नरवारिया और नायक दिगेंद्र कुमार ने प्रेरणादायक वीरता का प्रदर्शन किया।

टाइगर हिल

  • टाइगर हिल, आस पास की सभी चोटियों में से सबसे अधिक ऊंची चोटी है, श्रीनगर-कारगिल-लेह राजमार्ग के 10 किमी उत्तर में स्थित होने पर भी यहां के दुश्मन ठिकानों से इस राजमार्ग पर नजर रखी जा सकती थी।
  • 192 माउंटेन ब्रिगेड के कमांडर, ब्रिगेडियर एम.पी.एस बाजवा ने टाइगर हिल पर कब्ज़ा ज़माने की ज़िम्मेदारी, 18 ग्रेनेडियर्स और 8 सिख बटालियन को सौंपी।
  • 41 फ़ील्ड रेजिमेंट के कमाण्डिंग अफसर ने तोप से गोले दागने की विस्तृत योजना बनायी। हर एक लक्ष्य पर गोला दागने के लिए अलग अलग रेंज के तोप तैनात किये गए। सीधे गोला दागने के लिए, फिर एक बार  बोफोर्स तोप का इस्तेमाल किया गया।
  • टाइगर हिल पश्चिम से पूरब 2200 मी.तथा उत्तर से दक्षिण 1000 मी. मैं फैला हुआ है। इसका मुख्य विस्तार पश्चिम दिशा में है। इनमें पहला, टाइगर हिल से 500 मी. पश्चिम में है, इसका नाम ‘इंडिया गेट’ रखा गया और दूसरे का नाम ‘हेलमेट’ (यह और 300 मी. की दूरी पर स्थित है) । इस भू-भाग पर 12 लाइट पाकिस्तान की एक कंपनी तैनात थी।
  • 3 जुलाई को 18 ग्रेनेडियर ने अपना अभियान प्रारम्भ किया, वहीं ‘ए’ कंपनी ने 4 जुलाई की रात ‘जीभ’ कहे जाने वाले पॉइन्ट पर कब्ज़ा कर लिया।
  • टाइगर हिल पहुँचने वाले दक्षिणी पश्चिम रास्ते पर आगे नहीं बढ़ा जा सका क्योंकि इंडिया गेट, ह्ल्मेट और चोटी से दुश्मन सटीक गोलाबारी कर रहे थे।
  • कैप्टन सचिन निम्बालकर ‘डी’ कंपनी को लेकर आगे बढ़ रहे थे। अंधेरा और प्रतिकूल मौसम के बावजूद पर्वतारोहण उपकरण का उपयोग करते हुए उनकी कंपनी को खड़े कगार से होकर गुजरना था। कुछ देर की मुठभेड़ के बाद ‘डी’ कंपनी, एरिया कालर के पूर्वी भाग पर कब्ज़ा करने में सफल हो गई , यह भाग टाइगर हिल की चोटी के सौ मीटर के अंदर था।
  • दूसरे मोर्चे पर लेफ्टिनेंट बलवान सिंह के नेतृत्व में ‘सी’ कंपनी ने दुश्मन पर अचानक हमला कर दिया। इस बार वे उत्तर पूर्वी दुर्गम रास्ते से आगे बढ़ रहे थे। उन्होंने चोटी से ठीक 30 मीटर नीचे अपना ठिकाना ले लिया था।
  • 4 जुलाई के चार बजे, सुनियोजित ढंग से सावधानीपूर्वक, तोप का गोला दागने के बाद एक खड़े चट्टान पर चढ़कर सचिन निम्बालकर और बलवान सिंह, अपने सैनिकों के साथ टाइगर हिल पर कब्ज़ा ज़माने में सफल हुए।
  • टाइगर हिल का पश्चिमी हिस्सा, 1.5 किमी तक फैला हुआ था जहाँ 8 सिख बटालियन तैनात था। वहां से पश्चिमी हिस्से तक पहुँचने के बीच में खड़े चट्टान थे। मेजर रवींद्र सिंह और लेफ्टिनेंट आर .के. सहरावत के नेतृत्व में घमासान लड़ाई के बाद इंडिया गेट पर कब्ज़ा जमा लिया गया। लेफ्टिनेंट आर .के. सहरावत के साथ 8 सिख का एक दल ने कम रोशनी की स्थिति में इस चट्टान पर चढ़ युद्ध को अंजाम दिया था।
  • काफी संख्या में सैनिकों के हताहत होने के बावजूद, 8 सिख बटालियन को हेल्मेट पर सफलता मिली। 
  • 8 जुलाई को टाइगर हिल पर पूरी तरह से कब्ज़ा ज़माने और परिस्थिति नियंत्रित होने के बाद 18 ग्रेनेडियर्स ने टाइगर हिल पर भारतीय तिरंगा फहराया।

एरिया थ्री पिम्पल्स

थ्री पिम्पल्स धारदार ऊँची चोटियों का समूह है। यह क्षेत्र तोलोलिंग नाला के पश्चिम में मर्पोल पर्वत क्षेत्र में पोइन्ट 5100 के नज़दीक स्थित है। थ्री पिम्पल्स में तीन प्रमुख चोटियाँ है – नाल, सोन हिल और थ्री पिम्पल्स। यहाँ से राष्ट्रीय राजमार्ग, द्रास गांव और सांडो नाला पर सीधे नजर बनाई जा सकती थी। यहाँ से दुश्मन सैनिकों और सैन्य साज समान की हरकत पर नजर रखा जा सकता था।

  • थ्री पिम्पल्स पर कब्ज़ा जमाने का काम 2 राजपूताना रायफ़ल्स को सौंपा गया। 
  • आक्रमण से दो घंटे पहले बीस तोप फायर इकाइयों ने लगभग 120 तोप, मोर्टार और रॉकेट लांचर व उच्च तकनीकी विस्फोटकों से लक्ष्य पर प्रहार किया।
  • मेजर मोहित सक्सेना के नेतृत्व में ‘ए’ कंपनी आगे बढ़ी। लक्ष्य पर चलते हुए कम्पनी को काफी जटिल रास्तों का सामना भी करना पड़ा जिसका फायदा दुश्मन को मिलता रहा। अंततः ‘ए’ कम्पनी की अग्रणी पंक्ति के कई सैनिकों के हताहत होने के बावजूद यह कंपनी आगे बढ़ती रही और मध्य रात्रि तक नाल पर कब्ज़ा जमा लिया।
  • कम्पनी कमांडर मेजर आचार्य और कैप्टन विजयन थापर ने व्यक्तिगत रूप से आक्रमण का नेतृत्व किया। ये दोनों वीर अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए किंतु अपने यूनिट का नेतृत्व करते रहे। उन्हें सफलता तो मिली लेकिन उनके बलिदान के मूल्य पर।
  • आगे की कार्यवाही कम्पनी ‘बी’ और ‘ए’ संयुक्त हो कर करने लगे। अब थ्री पिम्पल्स को नज़दीक से देखा जा सकता था। इससे दुश्मन का ठिकाना, तोप के निशाने पर था।
  • लोन हिल की चोटी काफी ऊँची थी। चांदनी रात होने के कारण कम्पनी का आगे बढ़ना मुश्किल हो गया था। मोहित सक्सेना जिन्होंने तोलोलिंग युद्ध में अत्यंत उत्कृष्ट वीरता का परिचय दिया था, वह एक बार फिर कम्पनी को नेतृत्व प्रदान करने में कामयाब हुए। वह गुप्त रास्ते से अपने सैनिकों को लेकर आगे बढे, जिसकी भनक दुश्मन को नहीं लग पाई। अपने काम को अंजाम देने के लिए उन्हें 200 फुट ऊँचे खड़े चट्टान पर चढ़ना पड़ा। उनके साहसी नेतृत्व के कारण उनके सैनिक लोन हिल पर कब्ज़ा जमा सके।
  • अपने खाई बंद ठिकानों और हथियार राशन के भरी जखीरों को छोड़ दुश्मन 9 जून को थ्री पिम्पल्स से भाग खड़े हुए।

जब जब  दुश्मन ने देश पर गलत निगाह रखी, तब तब हमारे देश के सैनिकों ने उनके नापाक मंसूबो को नेस्तनाबूद कर दिया। इसी तरह पाकिस्तान ने सन 1999 में जब हमारी ज़मीन हथियाने के लिए हमला किया तो कारगिल युद्ध में हमारे वीर जवानों ने उन्हें करारा जवाब दिया। इस दौरान भारतीय सेना ने, पाकिस्तान द्वारा हथियाई गईं सभी महत्वपूर्ण चौकियों को वापस अपने कब्ज़े में ले लिया था। दुश्मन के पहाड़ पर बैठे होने की वजह से हर एक चौकी को फतह करने में देश के कई वीर जवानों ने अपनी शहादत दी थी। लेकिन वीर जवानों के हौसले ने आखिरकार भारत की जीत का परचम लहराया था। 

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