प्रत्येक वर्ष 21 जून को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (International Yoga Day 2021) मनाया जाता है। बड़ी संख्या में इस दिन देश – विदेश में लोग योग करते हैं, मुख्य रूप से सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar) करते हैं, ध्यान लगाते हैं। भारत, नई दिल्ली में राजपथ पर बड़ी संख्या में लोग एक जुट हो एक साथ योग करते हैं। जिसे पहली बार 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
हम सभी जानते हैं, योग एक प्राचीन अभ्यास है। पहले लोग मस्तिष्क और श्वास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए योग किया करते थे। योग की इस प्रथा की उत्पत्ति 5000 वर्ष पूर्व उत्तर भारत में हुई थी। योग शब्द का सबसे पहले प्रयोग प्राचीन ग्रंथ “ऋग्वेद” में किया गया है। योग की उत्पत्ति भले ही प्राचीन भारत में हुई हो लेकिन आज इसे अन्य देशों द्वारा भी अपनाया गया है। लेकिन यह अन्य पश्चिमी देशों तक पहुंचा कैसे?
क्योंकि योग की उत्पत्ति ही भारत में हुई थी तो अधिकांश पश्चिमी देश इससे अनसुने थे। कई लोगों ने बहुत बाद में जाकर योग के महत्व को समझा उसे अपनाया। संयुक्त राज्य अमेरिका में राल्फ वाल्डो इमर्सन और हेनरी डेविड जैसे दार्शनिक थे जिन्होंने पहली बार 1830 में योग के दर्शन के साथ काम किया था।
लेकिन पश्चिमी देशों में सनातन धर्म के साथ – साथ योग की महत्ता को भी समझाने का श्रेय वेदांत के विख्यात एवं प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद को जाता है। उन्होंने 1893 में अमेरिका स्थित शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। और इसी सम्मेलन के दौरान उनके द्वारा दिए गए संदेश ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई थी। जिसके बाद से उन्होंने कई वर्षों तक अमेरिका देश का भ्रमण किया। बड़ी संख्या में लोगों को योग सिखाया उसके महत्व से परिचित कराया।
स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने अमेरिकी दर्शकों के लिए जो योग प्रस्तुत किया था, वह उन संस्करणों से भी भिन्न था, जिनसे आज अधिकांश लोग परिचित हैं। विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर योग के बारे में दर्शन, मनोविज्ञान और आत्मसुधार के विषय पर बात की लोगों को अवगत कराया। हालांकि आज भी योग को रहस्मय, प्राचीन परंपरा के रूप में देखा जाता है लेकिन अब इसका स्वरूप बदल गया है। योग के अभ्यास का मुख्य उद्देश्य बदल गया है। बदलते समय के साथ योग के अभ्यास में गहन बदलाव देखने को मिले हैं। आइए जानते हैं उन बदलावों के बारे में।
स्वामी विवेकानंद ने एक प्राचीन भारतीय ऋषि “पतंजलि” की परंपरा को पुनर्जिवित किया था। जिसे लगभग सभी ने भुला सा दिया था। महर्षि “पतंजलि” संभवतः पहली शताब्दी ईसा पूर्व के बीच भारत में रहा करते थे। महर्षि पतंजलि (Maharishi Patanjali) के अनुसार ‘दुखों को दूर करने के लिए मनुष्यों को सुख, सुविधाओं का त्याग करने की आवश्यकता थी।’
एक पत्रकार “मिशेल गोल्डबर्ग” The Goddess Pose के लेखक कहते हैं कि पतंजलि का योग “आत्म साक्षात्कार” के बजाय “आत्म विस्मरण” का एक उपकरण है। लेकिन आज योग को अपने अस्तित्व को त्यागने के तरीके के रूप में देखा ही नहीं जाता है। अधिकांश लोग दैनिक जीवन में सुख, स्वास्थ्य और करुणा पाने के लिए योग की ओर आकर्षित होते हैं।
अधिकांश लोग आज योग को शारीरिक व्यायाम (Exercise) और आसन के साथ जोड़ते हैं। लेकिन योग केवल व्यायाम करने का माध्यम नहीं है। योग में भक्ति चिंतन और ध्यान मुख्य रूप से शामिल है। महर्षि पतंजलि और स्वामी विवेकानंद ने भी योग के माध्यम से मानसिक व्यायाम को प्राथमिकता दी थी। लेकिन आज यह केवल शारीरिक होता जा रहा है।
महर्षि पतंजलि ने शरीर को कारागार बताया है और उसका तिरस्कार करने पर जोर दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा है कि हमारे शरीर से हमारा कोई भी लगाव योग के लिए बाधा है। विवेकानंद ने भी इन्हीं के विचारों को प्रतिध्वनित करते हुए कहा है कि, हमें आसनों का तिरस्कार करना चाहिए। विवेकानंद ने तर्क दिया है कि शरीर पर एक जुनूनी ध्यान योग के सच्चे अभ्यास से विचलित कर देता है और योग का तो अलसी अभ्यास ही “ध्यान” है।
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साथ ही योग का एक केंद्रीय अभ्यास जिसे संस्कृति में “स्वाध्याय” के रूप में जाना जाता है। और महर्षि पतंजलि के शब्दों में उसका अर्थ होता है “पवित्र शास्त्रों का पठन” लेकिन आज स्वाध्याय का अर्थ बदलकर ‘स्वयं का अध्यन्न’ हो गया है। लोग अक्सर खुश रहने के लिए, कम तनावग्रस्त जीवन जीने के लिए योग का अभ्यास करते हैं। स्वाध्याय तो एक स्वस्थ योग अभ्यास के केंद्र में है। यह योगियों को दूसरों और आसपास की दुनिया को समझने में मदद करते हैं। लेकिन आज ‘परस्पर निर्भरता’ योग का केंद्र बन गए हैं।
योग, प्राचीन काल में गुरू की नैतिकता को भी बढ़ावा देते थे। प्राचीन प्रथा में योगी अपने गुरु के घर उनके पास रहकर वर्षों तक प्रशिक्षण लेते थे। लेकिन आज योगी स्टूडियो, पार्क, या घर पर ही योग का अभ्यास करते हैं।
हमनें जाना की पारंपरिक योग और समकालीन योग की प्रथाएं अब बिल्कुल समान नहीं हैं। आज भले ही योग रोजमर्रा की जिंदगी में पुख्ता हो गई है। लेकिन हमें योग के अतीत और उनके असली महत्व पर विचार करना जरूरी है। योग प्राचीन जरूर है लेकिन कालातीत नहीं।