दुनिया में कई महान वैज्ञानिक और शोधकर्ता हुए जिनके सिद्धांतों को आज भी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है और उन्ही के सिद्धांतों द्वारा ही कठिन से कठिन प्रश्न भी मिनटों में हल हो जाता है। मगर क्या ऐसा हो सकता कि इन सभी सिंद्धान्तों को खोजने के पीछे भारत के ऋषि-मुनियों और विद्वानों का हाथ रहा हो? ऐसा इसलिए क्योंकि जिन बुद्धिजवियों ने भारत में की विद्या पर प्रश्न उठाए थे उन्हें हमारे वेदों और शास्त्रों ने चुप करा दिया है। ॐ का अर्थ और उसके फायदे पहले ही हमारे शास्त्र बताते आए हैं जिसे विदेशी वैज्ञानिकों ने भी माना है। ऐसे कई खोज थे जिन्हें भारतीय विद्वानों द्वारा खोजा गया था। यदि हम कहें कि गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के को भी भारत में ही खोजा गया था, तो आप यह सुनकर चौंक जाएंगे।
यह आधुनिक दुनिया के लिए जाना जाता है कि आइज़ैक न्यूटन(Isaac Newton) ने 16 वीं शताब्दी में सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण की खोज की थी, वह भी तब जब उन्होंने एक पेड़ से सेब गिरने पर विचार-विमर्श किया। लेकिन प्रसन्नोपनिषद (6000 ईसा पूर्व) ने उस बल का वर्णन किया है जो वस्तुओं को नीचे खींचता है और हमें बिना तैरते हुए धरती पर रखता है। यह हम नहीं ऋषि व दार्शनिक विद्वान कणाद ने दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में वैशिका विद्यालय से वेदों और उपनिषदों पर आधारित यह बात कही थी।
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के नए शोध के अनुसार आइजैक न्यूटन(Isaac Newton) से सैकड़ों वर्ष पहले दक्षिण भारत के आधुनिक गणित के विद्वानों ने गुरुत्वाकर्षण के एक मुख्य सिद्धांत की खोज की थी। कई लोग यह भी विश्वास नहीं करेंगे कि 15 वीं शताब्दी में ईसाई मिशनरियों ने इस सूचना को ब्रिटेन तक पहुंचाने में मदद की थी।
द यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के डॉ. जॉर्ज वर्घेज जोसेफ का कहना है कि ‘केरल विद्यालय’ ने ‘अनंत श्रृंखला'(Infinite Series) की पहचान की थी, जो कि कैलकुलस के मूल घटकों में से एक है वह भी वर्ष 1350 में। इस खोज को गलत तरीके से आइजैक न्यूटन(Isaac Newton) और गॉटफ्रीड लीबनिट्ज(Gottfried Wilhelm Leibniz) द्वारा अपने पुस्तकों में लिखा गया था।
मैनचेस्टर और एक्सेटर के विश्वविद्यालयों से आई टीम ने केरल स्कूल से यह भी पता लगाया कि पाई श्रृंखला(Pi Series) के लिए क्या राशि है और इसका उपयोग उन्होंने पाई को 9, 10 और बाद में 17 दशमलव स्थानों की गणना के लिए किया।
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इस बात के पुख्ता साक्ष्य हैं कि भारतीय अपनी खोजों पर गणितीय रूप से जानकार जेसुइट मिशनरियों(Jesuit missionaries) के पास गए जो पंद्रहवीं शताब्दी के दौरान भारत आए थे। और अंततः न्यूटन(Isaac Newton) को भी उन मिशनरियों ने यह बात बताई होगी।
डॉ. जॉर्ज कहते हैं: – “कुछ असाध्य कारणों से, पूर्व से पश्चिम तक ज्ञान के संचरण के लिए आवश्यक साक्ष्य का मानक पश्चिम से पूर्व के ज्ञान के लिए आवश्यक साक्ष्य के मानक से अधिक है।
निश्चित रूप से यह कल्पना करना कठिन है कि पश्चिम, भारत से ज्ञान और किताबें आयात करने की 500 साल पुरानी परंपरा को छोड़ देगा। लेकिन हमें ऐसे साक्ष्य मिले हैं जो इससे बहुत आगे निकलते हैं: उदाहरण के लिए, जानकारी इकट्ठा करने का भरपूर अवसर था क्योंकि उस समय यूरोपीय जेसुइट(Jesuit) क्षेत्र में मौजूद थे।