विश्वभर में सनातन धर्म का प्रचार कई वर्षों से किया जा रहा है। अधिकांश लोगों ने, जो अन्य धर्म से भी नाता रखते हैं उन्होंने हिन्दू धर्म को खुशी-खुशी अपनाया है। भारत, जिसे सनातन सभ्यता का केंद्र माना जाता है वहां से यह धर्म अफ्रीका पहुंचा और देखते ही देखते अपनी पकड़ को लोगों के बीच मजबूत बनाने लगा। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की पश्चिमी अफ्रीकी देश ‘घाना’ में हिन्दुओं की संख्या में साल दर साल बढ़ोतरी हुई है। यह दावा इसलिए सच है क्योंकि घाना में 2009 में हुई जनगणना में यह पाया गया था कि वहां केवल 12,500 हिन्दू ही रहते थे। जिसके बाद 2010 में हुई जनगणना में यह पाया गया कि यह संख्या बढ़कर 25,000 हो गई है। आज घाना में लगभग सवा लाख अफ्रीकी हिन्दू रहते हैं।
अफ्रीकी लोगों में हिन्दू धर्म के प्रति यह भाव कैसे जागृत हुआ?
हिन्दू धर्म घाना में एकाएक विकसित नहीं हुआ है। इसके पीछे एक ऐसा समूह है जिसने हिन्दू धर्म की विशेषताओं को लोगों तक पहुँचाया है। जिससे अफ्रीकी लोगों में हिंदुत्व के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई है। घाना में हिन्दू धर्म को स्थापित करने वाला वह सिंधी समूह था जो भारत से अंग्रेजों द्वारा किए विभाजन के बाद घाना में शरणार्थी के रूप में बसने आए थे। उसके बाद स्वामी घनानंद सरस्वती के नेतृत्व में घाना हिन्दू मठ द्वारा सनातन प्रचार-प्रसार को आगे बढ़ाया गया।
घाना देश में रह रहे हिन्दू वह सभी प्रथाओं का पालन करते हैं जो आम तौर पर सनातन धर्म में किया जाता है। वहां के हिन्दुओं में भी मांस का सेवन वर्जित है। यह नियम उन्होंने अपनी इच्छा से बनाया है क्योंकि किसी जीव को मारकर खाना सनातन धर्म में स्वीकार नहीं किया जाता है। यह बात इसलिए खास है क्योंकि घाना के मूल निवासी बिना मांस के रह नहीं सकते। उनमें भी गाय की प्रति उतना ही सम्मान है जितना भारत में हिन्दू धर्म में किया जाता है। यह बात भी इसलिए अलग है क्योंकि मूल घाना के परिवारों में दिन में एक बार गाय के मांस का सेवन जरूर किया जाता है।
घाना में यह बात भी खास है कि सभी ने अपने मूल पहचान को छोड़कर हिन्दू धर्म को अपनाया है। न ही उनपर धर्म-परिवर्तन के लिए किसी प्रकार का दबाव डाला गया और न ही ऐसे किसी मुहीम को शुरू किया गया। उन्होंने हिन्दू धर्म को अपनी इच्छा से चुना है और सनातन धर्म के सभी नियमों का पालन भी वह अपनी स्वेच्छा से कर रहे हैं।
स्वामी घनानंद कौन हैं?
स्वामी घनानंद बचपन से ही इच्छुक बालक थे जिन्हें ब्रह्माण्ड के रहस्यों को और धार्मिक लेखों में छुपे सभी तर्कों को खोजने के लिए आतुर थे। फिर वह इसी खोज में ऋषिकेश, उत्तराखंड आए जहाँ उनकी भेंट स्वामी कृष्णनंद से हुई। स्वामी कृष्णानंद ने उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया और शास्त्रों और वेदों के ज्ञान से अवगत कराया। जिसके बाद उन्होंने वर्ष 1975 घाना हिन्दू मठ की स्थापना की और वहीं से प्रारम्भ हुआ घाना में हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार।
स्वामी घनानंद सरस्वती ने घाना में 5 हिन्दू मंदिरों की स्थापना की जो अफ्रीकी हिंदू मठ की आधारशिला रहे हैं। साथ ही घाना में इस्कॉन के मंदिर भी अधिक हैं।
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आलोचनाओं का सामना
सनातन धर्म की विविधताओं को घाना हिन्दू मठ अखबार में प्रकाशित कराता रहता है। जिससे लोगों में सनातन धर्म को और जानने की इच्छा उत्पन्न होती है। इसी वजह से शुरुआत में कई केवल जिज्ञासा के लिए मठ में आते थे। किन्तु जब हिन्दू धर्म की विविधताओं के विषय में उन्हें ज्ञान हुआ तब उन्होंने इसे अपनाने का फैसला किया। किन्तु कट्टरपंथियों द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि यह धर्मपरिवर्तन जबरन हुआ है। जिसका खंडन स्वयं घाना के हिन्दू करते हैं। उन सभी ने अपनी इच्छा से हिन्दू धर्म को अपनाया है। एक और बात यह भी स्वयं स्वामी घनानंद सरस्वती घाना के मूल निवासी थे जिनके माता-पिता ने ईसाई धर्म अपनाया था, किन्तु इन सब को जानते हुए भी उन्होंने सनातन धर्म को चुना और इस धर्म की विविधताओं का प्रचार किया।
अन्य देशों में भी सनातन धर्म के अनुयायी
रूस में हिन्दू धर्म ने भी अपनी जगह बनाई है। रूस में 2012 में हुए जनगणना में 1 लाख 40 हजार हिन्दू हैं जो देश की पूरी जनसंख्या के 0.01% की आबादी रखते हैं। इसके बाद है आयरलैंड जहाँ हिन्दू जनसंख्या में लम्बा उछाल आया है। साथ ही अमेरिका में भी हिन्दू जनसंख्या में हालिया सालों में बढ़त देखने को मिली है। रूस, घाना अमेरिका, आयरलैंड के साथ-साथ विश्वभर में हिन्दू जनसंख्या के बढ़ने की रफ्तार में तेजी देखी गई है, जिसका श्रेय उन सभी संत एवं महात्माओं को जाता है जिन्होंने केवल और केवल अपनी वाणी से हिन्दू धर्म को जन-जन तक पहुँचाया और सनातन धर्म का प्रचार प्रसार किया है।