भारत और खासकर हिन्दू समुदाय को छोड़कर विश्व के बाकी हिस्सों में 31 दिसम्बर को नव वर्ष मनाया जाता है, किन्तु जब पिघली हुई बर्फ मिट्टी को नम बना देती है, हरित घास पृथ्वी को ढक लेती है, बागों में पेड़ खुद को जब पत्तियों, फूलों और फलों से सजा लेतें हैं तब हिन्दू समुदाय इसे एक उत्सव के रूप में भक्तिमय वातावरण का शुभारम्भ करता है। यह जीवन का उत्सव है, नई सुबह का उमंग है।
भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (हिंदू कैलेंडर के चैत्र महीने का पहले दिन) को नए साल के रूप में मनाते हैं। देश के उत्तर जिसमे बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा जैसे राज्य इस पर्व को चैत्र नवरात्री के रूप में मनाते हैं। मराठी समुदाय इस पर्व को गुड़ी पड़वा पर्व के रूप में मनाता है, कनाड़ा और तेलगु समुदाय इसे उगादी के रूप में मनाते हैं, सिंधी समुदाय इसे चेटीचंड के रूप में मनाते हैं। इस त्योहार को मनाने का हर समुदाय का अपना अनूठा तरीका है, लेकिन सभी के लिए यह नई शुरुआत का दिन है; यह वह दिन है जिस दिन भगवान ब्रह्मा ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया था।
किन्तु आपको यह जानकर आश्चर्यजनक होगा कि ब्रह्माण्ड के निर्माता ब्रह्मा की पूजा नहीं की जाती है। पौराणिक कथाओं में, ब्रह्मा को या तो कभी भी पूजा नहीं जाने का श्राप दिया गया है, या यदि ऐसा हुआ तो मस्तक धड़ से अलग हो जाने की कथा कही गई है। इस बार 13 अप्रैल 2021 को विक्रम संवत 2078 को हिंदू नववर्ष मनाया जाएगा। संवत्सर की शुरुआत राजा विक्रमादित्य के द्वारा की गई थी, इसलिए इसे विक्रम संवत कहा जाता है। यह अंग्रेजी कैलेंडर से 57 वर्ष आगे है।
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ज्योतिष शास्त्र क्या कहता है?
इस वर्ष दुर्घटना, संक्रामक रोग और प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ने की संभावना है। इस संवत्सर के अशुभ प्रभाव होने के साथ ही शुभ प्रभाव भी होंगे। संवत्सर प्रतिपदा तिथि और मेष संक्राति का एक दिन पड़ने का संयोग भी 90 वर्षों के बाद बन रहा है।
हिन्दू पंचाग
57 ईसा पूर्व में, हिंदू कैलेंडर की शुरुआत हुई थी। चंद्र चरणों के मासिक चक्रों पर आधारित तिथियों की गणना की एक प्रणाली को पंचांग कहा जाता है। इसलिए, हिंदू नव वर्ष का सही दिन हर साल पंचांग में गणना के अनुसार बदलता है। हालांकि, यह उत्सव भारत के प्रत्येक राज्य में अद्वितीय हैं, और सभी राज्यों में इस पर्व अपने रीति-रिवाजों का पालन कर के मनाया जाता है।