हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को ‘हनुमान जयंती’ मनाई जाती है। पवन-पुत्र हनुमान को कई नामों से जाना जाता है। कोई उन्हें मारुति कहता है, कोई बजरंगबली के नाम से पुकारता है, तो कई अंजनीपुत्र के नाम से भी सम्बोधित करते हैं। भगवान हनुमान के कई नाम और रूप दिखाई देते हैं। कभी संत के रूप में, एक ब्रह्मचारी के रूप में, कभी मित्र के रूप में, तो कभी पुत्र के रूप में, किन्तु जिस रूप में और नाम से वह विश्वभर में जाने जाते हैं वह है रामभक्त के रूप में।
भक्ति और पूजा दोनों ही अलग प्रकार के आराधना के रूप हैं। यदि भक्त किसी को अपना आराध्य मान ले तब वह अंतिम स्वांस तक उस नाम को जपता रहेगा। केसरी-नंदन को श्री राम के प्रति ऐसा ही भक्ति प्रेम है। आज भी उन्हें हनुमान के बाद रामभक्त ही पुकारा जाता है।
यदि राम नहीं तो हनुमान नहीं ऐसा कई पौराणिक कथाओं में सुना और देखा गया है। भगवान हनुमान को बल का ज्ञान तभी हुआ था जब वह माता जानकी को खोजने निकले थे। रामदूत हनुमान की वजह से माता जानकी किस हाल में हैं और कहाँ इस बात का ज्ञान हुआ था। लंकापति रावण के अहंकार को चूर करने के लिए ही चिरंजीवी ने अशोक वाटिका को नष्ट किया और साथ ही लंका में आग लगाकर रावण पर गहरा चोट किया था। भगवान हनुमान वह भक्त हैं जिन्हे अपने स्वामी की पल-पल चिंता रहती है।
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संत तुलसीदास द्वारा लिखित हनुमान चालीसा को भक्तों द्वारा पवनपुत्र को प्रसन्न करने के लिए पढ़ा जाता है। उनमे भी भगवान हनुमान को श्री राम का दूत, लक्ष्मण के प्राण-दाता, श्री राम-जानकी के अनंत भक्त के रूप में दर्शाया गया है। हनुमान जैसा भक्त आज के कलयुग में ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा। स्वयं के पास असीम शक्ति और पराक्रम होते हुए कई भक्त उन्हें संत भी कहते हैं। क्योंकि “जो राम जपे कण-कण में, हनुमान मिले हैं संग में।।”