सनातन वेदों में कहा गया है कि गुरु ब्रह्म हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु महेश भी हैं। जीवन में गुरु नामक आभूषण की आवश्यकता सदैव से रही है, चाहे वह महाभारत में द्रोणाचार्य हों या सृष्टि को राजनीति के गुणों से अवगत कराने वाले महान चाणक्य हों। आज गुरु पूर्णिमा दिवस है, सनातन धर्म में आदिकाल से आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। वैसे तो हमें नितदिन हमारे गुरु एवं शिक्षकों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए, किन्तु गुरु पूर्णिमा पर्व का अपना ही महत्व है।
गुरु वह दीप हैं जो जीवन की हर कठिनाई रूपी अंधकार में हमें उजाला दिखाने का कार्य करते हैं। यदि हम किसी से सकारात्मक कार्य सीखते हैं तो वह व्यक्ति भी अप्रत्यक्ष रूप से हमारा गुरु है। बचपन में हमारे गुरु हमारे माता-पिता होते हैं जो वास्तव में हमें यह सिखाते हैं कि परमात्मा हैं कौन! संत कबीर का दोहा इस विषय पर सटीक बैठता है- ” गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।“
सृष्टि के सर्वप्रतम गुरु एवं शिष्य
परमात्मा ब्रह्म द्वारा सृष्टि-सृजन से पहले परमात्मा शिव ने अपने बाएं भाग से एक बालक को उत्पन्न किया और उन्होंने उस बालक को ‘ॐ’ महामंत्र के उच्चारण की आज्ञा दी। तत्पश्चात वह बालक वर्षों तक इस महामंत्र का जाप का रहा और परिणाम स्वरूप, उस बालक का शरीर विकराल रूप लेता गया। श्री शिव ने प्रसन्न होकर उस बालक का नामकरण किया, और उनका नाम हुआ ‘परमात्मा विष्णु’। तो इस कारण से श्री शिव एवं श्री विष्णु सृष्टि के सर्वप्रथम गुरु, शिष्य माने जाते हैं।
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इसी तरह हमारे जीवन में भी पहला गुरु हमारी माँ को कहा जाता, तत्पश्चात पिता, हमारे शिक्षक और अंत में समस्त समाज हमारे लिए गुरु रूप धारण करता है। आज के आधुनिक समय में हमनें हमारे ग्रंथ एवं वेदों को किनारा कर दिया है, किन्तु ये वह गुरु हैं जो हमारे साथ अंत तक रहेंगे और हमें हर कठिनाई से उबारने में हमारी सहायता करेंगे। गीता में कहा गया है कि “तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन:।।” अर्थात उस- (तत्त्वज्ञान-) को तत्त्वदर्शी ज्ञानी महापुरुषों के पास जाकर समझो। उनको साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वह तत्त्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष तुम्हें उस तत्त्वज्ञान का उपदेश देंगे।
इसलिए सदैव गुरु के सानिध्य में रहकर उन्नति का स्वप्न साकार करें और अपने गुरुजनों से सदा आशीर्वाद लेते रहें। क्योंकि इनका आशीर्वाद एवं उपदेश बाधाओं को पार करने की शक्ति देगा।