हिंदू कैलेंडर के मुताबिक हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी की जयंती मनाई जाती है। इस साल उनकी जयंती 30 नवंबर को है। उनकी जयंती के अवसर पर मैं आप लोगों को उनसे जुड़ी एक कहानी के बारे में बताना चाहूंगा। यह उस समय की बात है जब…
गुरु नानक देव जी अलग अलग जगहों की यात्रा कर लोगों को मानवता की सीख दे रहे थे। ऐसे ही एक दिन, उन्होंने अपना रास्ता हरिद्वार की ओर किया। हरिद्वार; जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है, जहाँ के लोगों पर निराकारी शिव, परम सत्य विष्णु और परम पिता ब्रह्मा की असीम कृपा है।
सुबह का समय था। सूर्य उदय हो रहा था। हर दिशा, मंत्रों और प्राथनाओं के सामंजस्य से पावन हो रही थी। ब्राह्मणों का एक गुट, गंगा मईया में उतर कर उगते सूरज को अर्घ्य दे रहा था। गुरु नानक जी भी नदी में जाकर अर्घ्य देने लगे। मगर बाकियों के अर्घ्य देने के तरीके और इनके तरीके में एक असमानता थी।
हर ब्राह्मण, सूर्य की दिशा में जल अर्पित कर रहा था। पर गुरु नानक उसकी उल्टी दिशा में पानी को हथेली में लेकर, आगे की ओर बहा दे रहे थे। जब वहां खड़े पुजारियों ने यह देखा तो उनसे रहा ना गया। पुजारियों की भीड़ ने गुरु नानक को घेर लिया। उनमें से एक ब्राह्मण क्रोधित होते हुए बोला – “अगर तुम हिन्दू नहीं हो, तो यहाँ हिन्दुओं की जगह पर क्या कर रहे हो?” – “हाँ” – दूसरे ने सिर हिलाया और कहा – “अरे मुर्ख! किसने तुम्हें यह सब सिखाया है?”, तीसरे ने उसके तुरंत बाद बोला – “भगवान के नाते रुक जा पापी, यह उल्टी दिशा में बहना बंद कर।”
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गुरु नानक ने उस ब्राह्मण की तरफ देखा और पूछा – “आप सूर्य को जल अर्पित क्यों करते हैं?”, पुजारी ने गर्व से कहा – “हम अपने पूर्वजों का सम्मान करने के लिए सूर्य को जल चढ़ाते हैं, इससे उन्हें सुख, आशीर्वाद और समृद्धि मिलती है।” – “आपके पूर्वज यहाँ से कितनी दूर हैं?” – गुरु नानक ने पूछा। तीसरे ब्राह्मण को लगा कि यह इंसान उनके ज्ञान की परीक्षा लेना चाह रहा है। इसलिए उसने कहा – “हमारे पूर्वज करोड़ों मील दूर रहते हैं।”
यह सुन कर गुरु नानक जी ने और तेजी के साथ उस उलटी दिशा में पानी फेंकना शुरू कर दिया। पंडितों का क्रोध बढ़ने लगा। उन्हें यह अपना अपमान लग रहा था। भीड़ एक साथ गुरु नानक जी पर चिल्लाने लगी – “रुक जा मुर्ख, अब बस कर” – “रुक जा…”, थोड़ी देर बाद गुरु नानक ने कहा – “देखिये पंजाब में मेरे पास एक खेत है, इसी दिशा में है जिस दिशा में मैं पानी दे रहा हूँ। मेरे खेतों को सच में पानी की बहुत ज़रूरत है, खासकर साल के इस समय। अगर देर हुई, तो मेरी फसल खराब हो जाएगी।”
ब्राह्मणों को लगा कि उनका सामना किसी सनकी आदमी से हो गया है। भीड़ में से एक पंडित तो यह बात सुनते ही वहां से प्रस्थान कर गया। बाकी जो बचे वो सभी गुरु नानक जी को घूरने लगे। एक ने कहा – “समझाने का प्रयास करें, यह पानी आपके खेतों तक कैसे जा रहा है?” – “जैसे यह पानी आपके पूर्वजों तक जा रहा है…,आपके पूर्वज तो मीलों दूर हैं, मेरा खेत यहाँ से इतनी दूर नहीं!”
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ब्राह्मणों को यह बात समझ नहीं आई। हर कोई एक दुसरे को देखने लगा। तभी गुरु नानक ने एक पंडित की ओर इशारा करते हुए कहा – “पंडित जी आप अभी यहां आने वाले भक्तों द्वारा होने वाली अपनी कमाई के बारे में सोच रहे हैं, है ना?” – “और आप महाराज, घर जाकर अपनी बकरियों को चराने ले जाना होगा, इस विषय में सोच रहे हैं।” दोनों की आँखें बड़ी हो गई। यह सच था। यह दोनों इसी विषय में सोच रहे थे। उन्हें लगा कि, गुरु नानक जी कोई महान आत्मा हैं जो लोगों का मन पढ़ सकते हैं। दोनों ने हाथ जोड़ लिए – “आप कौन हैं? और आपको कैसे ज्ञात हुआ कि हम क्या सोच रहे थे?”
गुरु नानक जी ने उनके हाथों को पकड़ा और कहा – “आवश्यक यह जानना नहीं कि मुझे कैसे ज्ञात हुआ, ज़रूरी यह है कि आप कितने सच्चे मन से ईश्वर की सेवा में खुद को प्रस्तुत करते हैं। मन में पैसा, लोभ,अन्य चिंताओं के होते हुए ईश्वर में ध्यान कैसे लग सकता है?”
ब्राह्मण स्तब्ध खड़े थे। किसी के पास कहने को कुछ ना था। गुरु नानक देव ने जाते हुए कहा – “लोगों की सेवा में उपस्थित रहें, ईश्वर आपका भला करेगा”, गुरु नानक देव को जाता देख ब्राह्मणों की आँखों में आसूं आ गए।