जी-4 के साथ भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों पर दिया अल्टीमेटम

भारत ने अल्टीमेटम दिया है कि अगर बदलाव का विरोध करने वालों द्वारा सुधार के लिए यूएन इंटरगर्वनमेंटल नेगोसिएशन को रोका या बाधित किया जाता है तो वे इसे आगे बढ़ाने के लिए अन्य तरीकों की तलाश करने के लिए बाध्य होंगे।

India and G-4 countries gave Ultimatum to UN
यूनाइटेड नेशन मुख्यालय में UNSC के एक बैठक के दौरान ली गई तस्वीर (फ़ाइल फोटो, VOA)

By: अरुल लुईस

ब्राजील, जर्मनी और जापान के साथ मिलकर भारत ने सुरक्षा परिषद में सुधार के समर्थकों को एक अल्टीमेटम दिया है कि अगर बदलाव का विरोध करने वालों द्वारा सुधार के लिए यूएन इंटरगर्वनमेंटल नेगोसिएशन (आईजीएन) को रोका या बाधित किया जाता है तो वे (सुरक्षा परिषद सुधार के समर्थक) इसे आगे बढ़ाने के लिए अन्य तरीकों की तलाश करने के लिए बाध्य होंगे।

इस महीने के अंत में शुरू होने वाले अगले सत्र के लिए महासभा ने सोमवार को बाधित आईजीएन प्रक्रिया शुरू की, तब भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि नागराज नायडू ने जी-4 की ओर से लिखे गए पत्र को एसेंबली अध्यक्ष तिजानी मुहम्मद-बंदे को जारी किया। सुधार परिषद में स्थायी रूप से सीट के लिए इन चार देशों का समूह एक दूसरे का समर्थन करते हैं।

India gives ultimatum to UN
एसेंबली अध्यक्ष तिजानी मुहम्मद-बंदे (Tijjani Muhammad-Bande, Twitter)

उन्होंने लिखा, “यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि जो सुरक्षा परिषद में सुधार लाने की इच्छा नहीं रखते हैं उनके द्वारा आईजीएन प्रक्रिया को प्रक्रियात्मक और पर्याप्त रूप से बाधित नहीं किया जाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “यदि ऐसा होता है और संकेत मिले हैं कि यह पहले से ही हो रहा है, तो जो सुधार की मांग कर रहे हैं उन्हें अंतत: आईजीएन प्रक्रिया के बाहर प्रगति करने के लिए अन्य तरीकों की तलाश करने के लिए मजबूर किया जाएगा।”

पत्र में प्रक्रिया को रोकने वाले उन देशों की पहचान उजागर नहीं की गई, जो आईजीएन की प्रक्रियाओं के ‘स्मोकस्क्रीन’ के पीछे छिपे हैं।

वे 12 देशों का एक समूह है, जो इटली के नेतृत्व में खुद को यूनाइटिंग फॉर कंसेन्सस (यूएफसी) कहते हैं और इसमें पाकिस्तान भी शामिल है। समूह का एजेंडा परिषद में नए स्थायी सदस्यों को जोड़ने से रोकना है।

एक दशक से अधिक समय तक समूह ने एक नेगोशिएटिंग टेक्स्ट को अपनाने पर रोक लगा दी है, जिस पर चर्चा करके यह आधार बनाया जाए कि टेक्स्ट को अपनाने से पहले सुधारों पर सर्वसम्मति होनी चाहिए। परिणामस्वरूप, आईजीएन प्रक्रिया को लेकर अर्थपूर्ण चर्चा नहीं हो पाई है।

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नागराज ने लिखा, “पिछले एक दशक में आईजीएन बैठकों में (2009 के बाद से) व्यावहारिक रूप से कोई प्रगति नहीं हुई है, वह भी इस धारणा के कारण कि प्रक्रिया के नियम कथित तौर पर चर्चा के अनौपचारिक प्रकृति के कारण लागू नहीं होने चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा, “नेगोशिएशन के लिए एक भी संयुक्त टेक्स्ट में चचार्ओं को शुरू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है, जबकि यह संयुक्त राष्ट्र के किसी भी वार्ताकार के किसी भी सुविधा से अधिक आवश्यक कार्य होना चाहिए।”

सोमवार को वार्ता को रोल ओवर करने का औपचारिक निर्णय मतदान की साइंलेंस प्रक्रिया का उपयोग करते हुए अपनाया गया था, जिसके तहत अगर सभा अध्यक्ष की घोषणा के बाद समयसीमा के अंदर कोई विरोध नहीं करता है, तो संकल्प और निर्णय सभा द्वारा अनुमोदित किए जाते हैं।

इस प्रक्रिया का पालन इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण सभा की बैठकों को रोका गया है, जिसमें पारंपरिक तरीके से मतदान किया जाता है।

COVID-19 pendemic
कोविड-19 महामारी के कारण संयुक्त राष्ट्र बैठकों को रोका गया। (Pixabay)

जी-4 की ओर से जारी पत्र और भारत द्वारा इसी विषय को लेकर लिखे गए एक अलग पत्र को चुप्पी तोड़ने के अंतर्गत नहीं लिया जाएगा। चुप्पी तोड़ने को निर्णय के खिलाफ माना जाता है।

आईजीएन को दरकिनार करने के रास्ते में से अपने एक अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त राष्ट्र चार्टर में संशोधन करने के लिए प्रक्रिया शुरू कर रहा है, जिसमें स्थायी परिषद के सभी सदस्यों सहित संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता है।

हालांकि यह दो-तिहाई बहुमत को जुटाना संभव हो सकता है, लेकिन बाधा यह है कि इसके लिए सभी स्थायी सदस्यों को सहमत होना होगा।

अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते हैं, जबकि रूस इसके समर्थन में उदासीन रहा है और चीन इसके खिलाफ है।

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वहीं स्थायी सदस्यता के लिए संभवत: अमेरिका द्वारा अफ्रीकी राष्ट्रों का विरोध करने की संभावना है।

आईजीएन प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने के लिए स्थापित की गई थी कि परिषद में सुधार के लिए चार्टर संशोधन के साथ आने के लिए सर्वसम्मति या एकमत के पास होगा, जो यह भी निर्धारित करेगा कि कितने अतिरिक्त गैर-स्थायी सदस्यों को जोड़ा जाए और वीटो शक्तियों का प्रयोग किया जाए।

वर्तमान सत्र में आईजीएन प्रक्रिया की शुरुआत देर से हुई थी, जिसमें दिसंबर में ही आईजीएन को-चेयर्स, संयुक्त अरब अमीरात के लाना नुसेबे और पोलैंड के जोआना रोनक्का की नियुक्ति हुई थी।

इसने मई में घोषित को-चेयर्स के साथ दो बैठकें कीं, जिसमें कहा गया कि कोविड-19 के कारण संयुक्त राष्ट्र बंद होने के कारण आगे कोई सत्र संभव नहीं है।

जी -4 पत्र ने यह भी कहा कि रोलओवर निर्णय एक क्षेत्र में हुई प्रगति को प्रतिबिंबित नहीं करता है जो अफ्रीकी राष्ट्रों द्वारा सुधारों की मांग के लिए व्यापक समर्थन से संबंधित है।

नायडू ने भारत की ओर से अपने पत्र में सुधारों पर ‘आम अफ्रीकी स्थिति के लिए सदस्यों से समर्थन के बढ़ते कोरस’ का हवाला दिया।

नायडू ने लिखा, “जी -4 और अफ्रीकी समूह के अलावा गैर गठबंधन अभियान (नॉन-एलाइन्ड मूवमेंट) और एल. 69 देशों के समूह सुधार के लिए दबाव डाल रहा है। वहीं अफ्रीकी स्थिति के लिए एक मजबूत केस बनाया गया है, जो कि रोलओवर निर्णय में दिखाई नहीं दे रहा है।”

नायडू ने लिखा, “यह सिर्फ इस लिहाज से सही है कि इस साल की शुरुआत में आईजीएन की दो बैठकों में कॉमन अफ्रीकन पोजीशन के लिए व्यक्त समर्थन बढ़ रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “अन्यथा हम इस साल के काम के एक गलत प्रोसपेक्टिव का समर्थन करने के खतरे में होंगे और यह संदेश देंगे कि कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है।”

भारत की ओर से अपने पत्र में नायडू ने महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को उद्धृत करते हुए लिखा, “सात दशक से अधिक समय से शीर्ष पर रहने वाले राष्ट्रों ने अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में शक्ति संबंधों को बदलने के लिए आवश्यक सुधारों पर विचार करने से इनकार कर दिया है।”(आईएएनएस)

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