नए कृषि कानून को अपने-अपने चश्मे से देख रहे पक्ष और विपक्ष

नए कृषि कानूनों को लेकर पूरे देश में रार मची है। किसान आंदोलित हैं। विपक्ष इसे हवा दे रहा है तो सरकार इन कानूनों को मील का पत्थर बता रही है।

किसान आंदोलन दिल्ली Farmers protest in delhi
किसान आंदोलन के लिए झुटे हुए किसान संघठन। (फाइल फोटो)

By: विवेक त्रिपाठी

नए कृषि कानूनों को लेकर पूरे देश में रार मची है। किसान आंदोलित हैं। विपक्ष इसे हवा दे रहा है तो सरकार इन कानूनों को मील का पत्थर बता रही है। राजनेताओं की तरह विशेषज्ञ भी इसे लेकर दो फाड़ हैं। इस कानून को पक्ष और विपक्ष इसे अपने-अपने चश्मे से देख रहा है।

बाहर के कई देशो में काम कर चुके कृषि विशेषज्ञ डॉ. आर.सी. चौधरी ने बताया कि एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) को पूर्णतया लागू होना चाहिए। उन्होंने बताया कि अमेरिका में भी एमएसपी है, लेकिन उस पर जितना भी मार्केटेबल सरप्लस है वह सरकार खरीद लेती है। वहां किसान जिस कीमत पर बेचना चाहता है उसे सरकार खरीद कर स्टोर कर लेती है, भले ही वो बाहर घाटे में बेचे। वहां एमएसपी का फायदा किसान को मिलता है। पंजाब, हरियाणा ने पिछले साल में 70 से 80 प्रतिशत एमएसपी की रेट पर खरीद हुई है। लेकिन यूपी में 10 फीसद और बिहार में 8 प्रतिशत एमएसपी पर खरीद हुई। एमएसपी से कम पर खरीद नहीं होनी चाहिए। सरकार के दोनों नियम बहुत अच्छे हैं। कॉन्ट्रेक्ट खेत का नहीं किसान होता है। यह कानून लागू हो जाए, किसानों के लिए हितकारी होगा। बस इसमें एमएसपी की गारन्टी लिखित रूप से मिलनी चाहिए। इससे मंडियों को बढ़ावा मिलेगा। विपक्षी दल सरकार को भड़काकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं।

पद्मश्री सम्मान प्राप्त बाराबंकी के प्रगतिशील किसान रामसरन वर्मा ने कहा कि नए कानून लागू होने से किसानों को लाभ होगा। किसानों को खुले बजार मिलेंगे। एमएसपी भी मिलेगी। अपनी फसल का मनचाहा रेट भी मिलेगा। कुछ दिन इसे देखा जाना चाहिए। एमएसपी पर खरीद हो रही है या नहीं। किसानों के लिए दो रास्ते खुल गये हैं। मंडी के साथ अपनी प्रोडक्ट को बाहर भी बेच सकते हैं।

यह भी पढ़ें: पिछले साल से 20 फीसदी ज्यादा हुई धान की सरकारी खरीद

योजना आयोग के पूर्व सदस्य सुधीर पवांर नए कृषि कानूनों को किसानों के लिए नुकसानदायक मान रहे हैं। उन्होंने कहा किसानों का सबसे बड़ा सर्पोट एमएसपी है। दूसरा उसका मलिकाना हक है जमीनों पर। इससे किसानों को बहुत दिक्कतें आने वाली हैं। पारदर्शी व्यवस्था एक व्यक्ति के हाथ में जाएगी। जमीन को ठेके में जाने से किसान गुलाम हो जाएगा। किसान अपने खेत में मजदूरी करेगा। सरकार बहुत पहले से चाहती है प्राइवेट सेक्टर खेती में इन्वेस्ट करे। इससे फायदा होने वाला नहीं है। मंडी में कीमत तय करने का पारदर्शी तरीका होता है। ऐसी कई सारी दिक्कते हैं।

भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष हरनाम सिंह वर्मा ने बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का गांरटी कानून बने। अगर एमएसपी के नीचे खरीददारी हो तो इसे अपराध के दायरे में लाया जाना चाहिए। ठेका प्रथा खेती में अगर किसान किसी कारणबस इस एग्रीमेंट को तोड़ देता है, उसे 10 साल की सजा है। इसे खत्म किया जाना चाहिए। भंडारण क्षमता को बंधक बनाया जाए। उसकी सीमा तय होनी चाहिए। इस कानून से पूर्णतया नुकसान होगा। सरकार द्वारा बड़े बिचौलिये तैयार किये जा रहे हैं। किसानों को नुकसान से बचाने के लिए यह आन्दोलन हो रहा है। किसी राजनीतिक दल से समर्थन नहीं मांग रहे हैं।

कृषि के जानकार गिरीश पांडेय कहते हैं कि विरोध करने वालों में से अधिकांश इस कानून के बारे में नहीं जानते। प्रगतिशील किसानों के लिए यह कानून वरदान है। तीनों कानून सही ढंग से संचालित होने पर किसानों का भविष्य सुनहरा होगा। किसानों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिबद्घता में कोई संदेह नहीं है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान से लेकर कई योजनाएं इसका सबूत हैं।

उत्तर प्रदेष के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि कृषि सुधार कानून केवल किसानों के हित में है। ये सुधार किसानों की तस्वीर और तकदीर बदलने वाले हैं। विपक्षी दलों के राजनीति का जहाज डूब रहा है, इसलिए किसानों को भ्रमित करके अपना हित साधने में जुटे हुये हैं।(आईएएनएस)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here