पर्यावरणविद् : पृथ्वी पर जीवन दुनिया के जंगलों की बहाली पर टिका है

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस को चिन्हित करते हुए पर्यावरणविदों (Environmentalists) का कहना है कि, जंगलों (Forests) की बहाली पर ज़ोर देना बहुत जरूरी है। वनों की बहाली की जाए और उनको जीवन प्रदान करने वाली जैव विविधता प्रणाली को अपनाया जाए। उनका कहना है कि, जंगलों पर बढ़ता अवैध शोषण सम्पूर्ण विश्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। 

वन हमारे पृथ्वी (Earth) के फेफड़े हैं। जो बड़े स्तर पर पूरे संसार को हवा प्रदान करते हैं। आज जो हम सांस ले रहे हैं वो उन्हीं हवा की बदौलत ले रहे हैं। इसके अतिरिक्त वन हमें स्वच्छ पानी प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। संयुक्त राष्ट्र (United nation) की रिपोर्ट के मुताबिक करीबन एक अरब से भी अधिक लोग वन खाद्य पदार्थों पर निर्भर हैं और लगभग 2.4 अरब लोग अपने दैनिक जीवन में भोजन पकाने के लिए ईंधन की लकड़ी (fuel wood) और चारकोल का उपयोग करतें हैं। और यह सब उन्हें वनों से प्राप्त होता है। जिसकी आज बड़े पैमाने पर कटाई कर दी जाती है।

संयुक्त राष्ट्र ने अपने रिपोर्ट में बताया कि, दुनिया का स्वास्थ्य काफी हद तक वनों के तथाकथित ग्रीन फार्मेसी पर निर्भर करता है। विकसित देशों में 25 प्रतिशत औषधीय दवाइयां, पौधों‌ पर आधारित है। इसके अलावा विकासशील देशों में 80 प्रतिशत औषधीय दवाइयां, पौधों‌ पर आधारित है।

फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की वानिकी निर्देशक मेटे विल्की(Mette Wilkie) ने कहा कि, वनों और जैव विविधताओं को आज बड़े स्तर पर खतरा है। क्यूंकि वनों की कटाई (deforestation) कर भूमि को कृषि उपयोग में लाया जाता है, और अन्य शोषणकारी उपयोग भी किए जाते हैं। हर साल, दुनिया में 10 मिलियन हैक्टेयर से भी अधिक जंगल खोते जा रहे हैं। जंगलों का समय के साथ निरंतर यूं लुप्त होना, आने वाली पीढ़ियों के लिए सबसे ज्यादा चिंता का विषय है। आज बड़े पैमाने पर जलवायु , जैव विविधता और लोगों पर इसके नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं। 

जंगलों पर बढ़ता अवैध शोषण सम्पूर्ण विश्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। (VOA)

हम यह जानते है कि , वनों की कटाई और भूमि संरक्षण से दुनिया भर में कम से कम 3.2 बिलियन लोगों की जीवन शैली प्रभावित हो रही है। लोगों के रहने के लिए घर व उनसे जुड़ी कई महत्वपूर्ण चीज़ों का निर्माण भी किया जा रहा है। इसके अलावा खोई हुई पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में वार्षिक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 10 प्रतिशत से अधिक खर्च किया जा रहा है।

विल्की ने कहा कि, उभरते संक्रामक रोगों के तीन प्रकोपों में से एक सीधा जंगलों की कटाई और विखंडन जैसे भूमि उपयोग परिवर्तन से जुड़ा हुआ है। यह हमारे लिए सबसे बड़ी चेतावनी के तौर पर है की, इसी तरह अपने कारोबार के लिए जंगलों की कटाई जारी रही तो आने वाले समय में और महामारियों का खतरा बढ़ेगा। 

एक बड़ा कारण यह भी है कि, हम वन्यजीव प्रजातियों के निवास स्थान से छेड़खानी कर रहे हैं। जंगलों की कटाई कर हम उनसे उनका निवास स्थान छीन रहे हैं। इससे खतरा बेघर हुए वन्य जीवों के साथ – साथ लोगों और घरेलू जानवरों पर भी पड़ेगा। आवास की तलाश में यह जंगली जानवर गांवो की तरफ प्रस्थान करते हैं। जिससे खतरा आम लोगो कि जिंदगी पर काफी बढ़ जाता है। इसलिए जंगल की प्रवृति में बदलाव कर और उनके आवासों को कम कर हम जोखिम को और अधिक बढ़ा रहे हैं। 

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विल्की ने कहा कि, इस स्तिथि को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि , वनों की कटाई के स्तर को कम करके और जंगलों के स्वास्थ्य को बहाल करने के लिए आवश्यक धन का निवेश करके इस स्तिथि को बदला जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि, इस तरह के कदम कोविड-19 चरण में सुधार कर सकते हैं और सभी देशों को जलवायु परिवर्तन(climate change) के प्रभावों को कम करने और जलवायु की अनुकूल स्तिथि बनाए रखने में भी काफी मदद कर सकता है।(VOA) 

(हिंदी अनुवाद : स्वाती मिश्रा)

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