जिन्नाह की मूंछ और खालिस्तान की पूँछ कैसे जुड़े हैं एक साथ?

क्या सिख समुदाय वास्तव में अलग राष्ट्र चाहता है या यह उन चंद अलगाववादी सोच और पाकिस्तान की मिलीभगत का नतीजा है जिसे किसान आंदोलन में भी देखा गया?

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खालिस्तान का झंडा Flag of Khalistan
पाकिस्तान की शह पर उठ रहे हैं खालिस्तान समर्थित आवाज़। (Wikimedia Commons)

भारत पाकिस्तान का बंटवारा अपने साथ कई बदलाव लेकर आया था। बंटवारे से पहले जिस लाहौर को सिखों का गढ़ माना जाता था वहीं से उनको भागने की नौबत आ गई थी। कुछ अपनी जमीन न छोड़ने की ज़िद में पाकिस्तान में रह गए, मगर अधिकांश सिखों को बंटवारे की मार झेलनी पड़ी। जिसकी आग अभी भी कुछ लोगों में बसी हुई है। अलग देश खालिस्तान की मांग सबसे पहले 1969 में जगजीत सिंह चौहान ने उठाई थी मगर वह आवाज़ अब तक बंद नहीं हुई। जिसका सबूत है किसान आंदोलन की वह झलकियां जिसमें कुछ आंदोलनकारी यह कहते सुने जा सकते हैं कि “जब इंदिरा को ठोक दिया तो मोदी क्या चीज़ है।” और यह बात सबकी चिंता बढ़ा सकती है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पहले ही इस आंदोलन में खालिस्तान का हाथ होने की बात कर रहे हैं और अब सुरक्षा एजेंसियों की अधिक चिंता बढ़ गई है जब उन्हें विदेशी चंदा आने की बात सूत्रों के हवाले से पता चली है। सोचने वाली बात है कि आखिर क्या है खालिस्तान की मानसिकता और अलग राष्ट्र की मांग के लिए क्यों उसे पाकिस्तान की शह मिल रही है?

पाकिस्तान का नाम लाना इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन खालिस्तान ज़िंदाबाद फ़ोर्स (केज़ेडएफ़) ने बीते साल सितंबर में पंजाब में ड्रोन मदद से हथियार गिराए थे। पुलिस ने यह भी दावा किया कि आठ ड्रोन से क़रीब 80 किलोग्राम हथियार गिराए गए। पंजाब के पुलिस प्रमुख दिनकर गुप्ता ने कहा था कि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई केज़ेडएफ़ का समर्थन कर रही है।

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इतिहास

खालिस्तान का मतलब है सिखों के लिए अलग राष्ट्र जिसके लिए जरनैल सिंह भिंडरवाला ने 1980 में एक युद्धस्तरीय आंदोलन को शुरू किया। किन्तु यह आंदोलन शांतिपूर्ण न हो कर लाशों का ढेर लगाने वाला साबित हुआ। बड़ी संख्या में लोग मारे गए जिसके बाद पंजाब लाशों का बाजार बन चुका था। और इसी वजह से देश के चर्चित सैन्य ऑपरेशन को चलाया गया, नाम था ऑपरेशन ब्लू स्टार। इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेना को आदेश दिया था। उनका उद्देश्य स्वर्ण मंदिर में छुपे जरनैल सिंह भिंडरवाला को पकड़ना था। यह ऑपरेशन 1 जुलाई से लेकर 8 जुलाई 1984 तक चला था। और इसी ऑपरेशन में जरनैल सिंह मारा गया। इस ऑपरेशन से स्वर्ण मंदिर को भी खासा नुकसान पहुंचा था।

इसी ऑपरेशन के ठीक बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई थी, नतीजतन देश में सिख विरोधी दंगे बढ़ गए। दंगों में 3000 सिख केवल दिल्ली में मारे गए और 8 से 17 हज़ार सिख अन्य शहरों में मृत्यु को प्राप्त हो गए।

क्या सिख चाहते हैं खालिस्तान?

खालिस्तान का मुद्दा इसलिए भी आज तक जिन्दा है क्योंकि आज भी कुछ अलगाववादी मानसिकता वाले लोग हैं जिन्हें भारत की अखंडता को देखने से चिढ़ होती है। इसी अलगाववाद का साथ पाकिस्तान जैसा देश सालों से देता आ रहा है। किन्तु सवाल यह है कि क्या भारत के सिख खालिस्तान चाहते हैं? तो उसका जवाब होगा नहीं, क्योंकि सिखों ने सदा भारत की आन-बान-शान के लिए अपने प्राणों को न्योछावर किया है। जब एक सिख “जो बोले सो निहाल” की दहाड़ देता है तब “सत श्री अकाल” कहने वाले सभी भारतीय होतें हैं, जिसमें सभी धर्म सम्मिलित हैं। भारत में युवाओं के आदर्श भगत सिंह भी सिख ही थे और उनके बलिदान को आज भी पूजा जाता है।

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