एक तरफ कोविड, दूसरी तरफ कृषि कानून पर राजनीति, किसका खतरा अधिक?

हाल ही में पंजाब की एक घटना सामने आ रही है। जहां मास्क की जगह काले झंडे का प्रचलन बढ़ गया है। लोग मास्क की जगह काले झंडे को वरीयता ज्यादा दे रहे हैं।

Farmer Protest

हम सभी जानते हैं कि, हमारे देश में कोरोना वायरस (Corona Virus) को लेकर कुछ महीनों से स्थिति काफी गंभीर और भयावह हो चुकी है। टीकाकरण शुरू किए जाने के बावजूद संक्रमण की दूसरी लहर पहले से भी घातक साबित हो रही है। मौत के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं। रोजाना हजारों की संख्या में लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग हमारे देश मे ऐसे भी हैं, जिन्होंने इस गंभीर स्थिति को मजाक बनाकर रखा है। इस भयावह स्थिति में भी सियासत करने से बाज नहीं आ रहे हैं। 

हाल ही में पंजाब (Punjab) की एक घटना सामने आ रही है। जहां मास्क की जगह काले झंडे का प्रचलन बढ़ गया है। लोग मास्क की जगह काले झंडे को वरीयता ज्यादा दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि, 26 मई को दिल्ली की सीमाओं पर, किसान संघ संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा तीन कृषि कानून के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। 26 मई को कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर उस दिन को “काला दिवस” (Black Day) के रूप में मनाया जाएगा और इसके लिए महिला प्रदर्शनकारियों द्वारा काले झंडे को सिला जा रहा है। 

महिला प्रदर्शनकारियों का कहना है कि, कोरोना वायरस उनके लिए खतरा नहीं है, इसलिए उन्हें मास्क की जरूरत नहीं है। असली खतरा केंद्र के तीन कृषि कानून (Farms Law) से है, क्योंकि वे कॉरपोरेट हितों के पक्ष में हैं और किसानों की आजीविका को नष्ट कर देंगे। 

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महिला प्रदर्शनकारियों का कहना है कि, कोरोना वायरस उनके लिए खतरा नहीं है, इसलिए उन्हें मास्क की जरूरत नहीं है। (Wikimedia Commons)

एक महिला प्रदर्शनकारी, ऑक्टोजेरियन निर्मल कौर ने कहा “हम पिछले 10 महीनों से तीन कृषि काले कानूनों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने यहां बैठे हैं “मैंने नहीं सुना कि हम में से कोई भी कोविड – 19 से संक्रमित हुआ हो।” भारतीय किसान संघ ने भी कहा कि, हमें न केवल महामारी से लड़ना है, बल्कि सरकार से भी लड़ना है। किसान अपनी जान जोखिम में डालकर भविष्य बचा और न्याय का इंतजार कर रहे हैं। 

यह किस तरह की मानसिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है? किस तरीके का न्याय मांगा जा रहा है? सबको दृष्टव्य है कि, कोरोना महामारी के चलते अब तक कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन फिर भी किसान समुदाय रैली को बढ़ावा दे रहे हैं। कृषि कानून के खिलाफ मोर्चा निकाल रहे हैं। क्या ये मोर्चा सच में कानून के खिलाफ निकाला जा रहा? क्या इसके पीछे का मकसद कुछ और नहीं? 

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हरियाणा राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर (Manohar Lal Khattar) ने किसानों को कहा है कि, यह समय कोरोना के खिलाफ लड़ाई में एक साथ खड़े होने का है। सरकार के खिलाफ उनका संघर्ष वायरस खत्म होने के बाद जारी रह सकता है। लेकिन क्या किसान परिस्थिती की गंभीरता को समझ अपने मोर्चे को टालेंगे? 

क्योंकि यह समझने वाली बात है, अगर मोर्चा निकाला गया तो बड़ी संख्या में संक्रमण फैलने की संभावना है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) ने भी बीकेयू से अपने प्रस्तावित धरना प्रदर्शन को आगे नहीं बढ़ाने का आग्रह किया है, जो संक्रमण के सुपर स्प्रेडर में बदल सकता है। (स्त्रोत/आईएएनएस-SM)

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