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By – एम.शोएब
कोरोना वायरस के मद्देनजर लागू हुए लॉकडाउन से हर किसी की जीविका पर खासा असर पड़ा। ऐसे में बच्चों और बड़ों की मुस्कुराहट बनने वाले देशभर के सर्कसों के भविष्य पर एक पूर्णविराम लगने का डर बना हुआ है।
महामारी से सर्कस के मालिक, प्रस्तुति देने वाले कलाकार और सर्कस के जानवरों के जीवन बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। हालत ये हो चुकी है कि कई सर्कस संचालकों के पास फोन में रिचार्ज कराने तक के पैसे नहीं हैं।
चहरे पर रंग-बिरंगी मुस्कान के साथ हंसाने वाला जोकर, रिंग मास्टर के साथ आग से खेलते शेर, बाघ और हाथी जैसे जानवर, मौत के कुएं में दौड़ती मोटरसाइकिल, एक छोर से दूसरे छोर पर रस्सी से लटकतीं सुंदर लड़कियां शायद अब उतना देखने को न मिले। मौजूदा हालत को नजर में रखते हुए ये कहना मुश्किल नहीं होगा कि नई पीढ़ी के लिए सर्कस अब इतिहास बनने जा रहा है।
एशियाड सर्कस के मैनेजर अनिल कुमार ने आईएएनएस को बताया, “13 मार्च से हमारा सर्कस बंद पड़ा हुआ है। कलाकर अपने घर चले गए हैं, वहीं कुछ अभी भी सर्कस कैंप में ही रह रहे हैं, लेकिन वे दहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं। काम से वापस आने के बाद सर्कस के तंबू में ही आकर सो जाते हैं।”
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उन्होंने बताया, “हालात तो हम लोगों की पहले ही बुरी थी, लेकिन महामारी ने सब कुछ खत्म कर दिया। पहले बस हम दो वक्त की रोटी के लिए ही कमा पाते थे, लेकिन अब तो फोन में रिचार्ज कराने तक के पैसे नहीं हैं। जिसकी वजह से फोन भी बंद हो गए हैं।”
पहले देश में करीब 150-200 सर्कस हुआ करते थे, लेकिन सरकारी पाबंदियों के चलते बचे हुए सर्कस भी बंद होने के कगार पर हैं। अब सर्कस चलाने में खास आमदनी नहीं रह गई है। कुछ सर्कस महंगाई की भेंट चढ़ गए तो कुछ सरकार की ओर से लगाई गई विभिन्न पाबंदियों के चलते दम तोड़ रहे हैं।
हालांकि इन सभी सर्कसों की एक एसोसिएशन भी है जो कि दिल्ली में मौजूद है, लेकिन मेंबर्स न होने की वजह से यह एसोसिएशन भी सक्रिय नहीं है।
सर्कस व्यवसायियों की मानें तो कोरोना महामारी के दौरान करीब 10 से 15 सर्कस कंपनी बंद हो गए, वहीं बची हुई अन्य सर्कस कंपनियां भी तंगी से जूझ रही हैं। उनके मुताबिक, सर्कस का बाजार ही अब सिकुड़ गया है। अब सर्कस करना कोई फायदे का व्यापार नहीं रहा। यदि सरकार ने ध्यान न दिया तो जल्द ही सर्कस का नाम किताबों के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगा।
हालांकि, मल्टीमीडिया के जोर पकड़ने से भी इन सर्कसों को काफी नुकसान हुआ है, क्योंकि मनोरंजन के तमाम साधन उपलब्ध होने की वजह से बच्चे और बढ़े दोनों ही फोन पर समय देने लगे हैं। इस वजह से सर्कसों को देखने के प्रति लोगों की रुचि खत्म होती नजर आ रही है। विडियो, म्यूजिक, गेम, चैटिंग आदि ने लोगों का ध्यान सर्कस से भटका दिया। बच्चे भी ऑनलाइन ही सर्कस देखने में रुचि लेते हैं।
भारत के सबसे लोकप्रिय और पुराने सर्कस में से एक रेम्बो सर्कस कोविड-19 महामारी के चलते काफी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इस सर्कस शो के सदस्यों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए शो को डिजिटली आयोजित करना शुरू कर दिया है।
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बरोदा निवासी राजेश शाह एक कंसल्टिंग कंपनी चलाते हैं और सर्कस कंपनियों की मदद करते हैं। उन्होंने आईएएनएस से कहा, “आज सिर्फ 10 बड़े सर्कस है। देश भर के करीब 20 बड़े सर्कसों में से फिलहाल यही 10 सर्कस बचे हुएं हैं। कोरोना की वजह से सभी कलाकार अपने अपने घर वापस चले गए हैं।”
“भविष्य में बहुत मुश्किल होगा इन कलाकारो को वापस सर्कस में बुलाना, क्योंकि ये सभी लोग बहुत मेहनती होते है और कुछ न कुछ नया ढूंढ लेंगे”
वर्ष 1920 में मुंबई से शुरू हुए दी ग्रेट बॉम्बे सर्कस ने बुलंदियों का दौर भी देखा। इसी वर्ष इसने 100 वर्ष का सफर पूरा किया है। लेकिन मौजूदा समय में उसकी हालत खराब है। इस सर्कस को दो भाई पार्टनरशिप में चलाते हैं।
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इस सर्कस के मालिक संजीव ने आईएएनएस को बताया, “बीते साथ महीनों में कुछ न होने की वजह से 150 स्टाफ छोड़ कर चले गए हैं। हर दिन 1 लाख रुपये का खर्चा है। बीते 2 सालों में कई सर्कस बंद हो चुके हैं। आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से रिश्तेदारों से भी पैसा उधार लिया है।”
उन्होंने कहा, “इंडियन सर्कस फेडरेशन हम लोगों की एसोसिएशन है, लेकिन वो एक्टिव नहीं है, क्योंकि उसमें मेंबर नहीं हैं। भविष्य में और सर्कस भी बंद होने के कगार पर है।”
संजीव ने आगे कहा, “सरकार को हमारी इंडस्ट्री की आर्थिक मदद करनी होगी। किसी ने नहीं सोचा था कि ये बीमारी इतने लंबे वक्त तक परेशान करेगी। वहीं ऑनलाइन सर्कस दिखाना लंबे वक्त के लिए ठीक नहीं है, क्योंकि एक ऑनलाइन टिकट में एक साथ पूरा परिवार देख लेगा, जिससे भविष्य में हम लोगों की ही भारी नुकसान होगा।” (आईएएनएस)