जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है। इस बीच यह सामने आया है कि अंटार्कटिक की बर्फ का एक तिहाई से अधिक हिस्सा समुद्र में गिरने का खतरा हो सकता है और यह वैश्विक समुद्र-स्तर बढ़ने का कारण बन सकता है। एक हालिया शोध में यह दावा किया गया है। इंग्लैंड में यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के एक शोधकर्ता के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में पाया गया कि अगर विश्व का तापमान औद्योगिक क्रांति शुरू होने से पहले के स्तर से चार डिग्री अधिक पर पहुंचता है तो अंटार्कटिक में बर्फ की परत के एक तिहाई हिस्से के टूटकर समुद्र में बहने की आशंका है।
अध्ययन में पाया गया है कि अंटार्कटिक में कुल बर्फ की परत के 34 प्रतिशत (करीब 5 लाख वर्ग किलोमीटर) हिस्से के ढहने का खतरा है। अंटार्कटिक प्रायद्वीप (Antarctica Peninsula) पर बर्फ के शेल्फ क्षेत्र का 67 प्रतिशत हिस्से को भी अस्थिरता का खतरा पैदा हो सकता है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर बची बर्फ की सबसे बड़ी परत लार्सन सी, शेकेल्टन, पाइन द्वीप और विल्किंस बर्फ की उन चार परतों में शुमार है, जिसके जलवायु परिवर्तन की चपेट में आने का सबसे अधिक खतरा है। इन्हीं क्षेत्रों में बर्फ की परत गिरने की संभावना जताई गई है।
जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया है कि पेरिस जलवायु समझौते के तहत संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनिवार्य तापमान में वृद्धि को अगर 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर दिया जाता है तो इससे जोखिम कम हो जाएगा और यह समुद्री स्तर में वृद्धि से बचाएगा।
मौसम विज्ञान विभाग में शोध वैज्ञानिक इला गिलबर्ट ने एक बयान में कहा, “अगर आने वाले दशकों में तापमान में वृद्धि जारी रहती है, तो हम आने वाले दशकों में अधिक अंटार्कटिक बर्फ की परतों को खो सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि महज वामिर्ंग को सीमित करना ही अंटार्कटिका के लिए अच्छा नहीं होगा, बल्कि बर्फ की परतों को संरक्षित करने का मतलब है वैश्विक समुद्र का स्तर कम रहेगा, जो कि हम सभी के लिए अच्छा है।
जब बर्फ पिघलकर इन परतों की सतह पर एकत्रित होती है, उससे इन परतों में दरार आ जाती है और फिर ये टूट जाती हैं
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गिलबर्ट ने कहा कि बर्फ की परतें जमीन पर ग्लेशियरों के बहकर समुद्र में गिरने और समुद्र स्तर बढ़ाने से रोकने के लिए महत्वपूर्ण अवरोधक है।
उन्होंने कहा कि जब ये ढहती हैं तो ऐसा लगता है जैसे किसी बोतल से बड़ा ढक्कन हटाया गया हो। ऐसा होने पर ग्लेशियरों का काफी पानी समुद्र में बह जाता है।
उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि जब बर्फ पिघलकर इन परतों की सतह पर एकत्र हो जाती है तो उससे इन परतों में दरार आ जाती है और फिर ये टूट जाती हैं| (आईएएनएस-SM)