By – सुमित कुमार सिंह
चीन ने सात सीमावर्ती जिलों में फैले कई स्थानों पर नेपाल की जमीन पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है। इसके साथ ही भारतीय खुफिया एजेंसियों ने नई दिल्ली में अलर्ट जारी किया है।
एक आंतरिक खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है, “वास्तविक परिप्रेक्ष्य और खराब हो सकता है, क्योंकि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के विस्तारवादी एजेंडे को ढाल देने की कोशिश कर रही है।”
रिपोर्ट में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के सामने भूमि हड़पने के चीन के प्रयासों को हरी झंडी दिखाने वाले नेपाल के सर्वेक्षण विभाग के बारे में भी बात की गई है। इसमें कहा गया है कि चीन की नेपाल के जिन जिलों की जमीन हड़पने की योजना है, उनमें दोलखा, गोरखा, दारचुला, हुमला, सिंधुपालचौक, संखुवासभा और रसुवा शामिल हैं।
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चीन नेपाल की ओर अंतर्राष्ट्रीय सीमा के अंदर दोलखा में 1,500 मीटर तक आगे बढ़ गया है, जिसमें दोलखा के कोरलंग क्षेत्र में सीमा स्तंभ (बाउंडरी पिलर) संख्या 57 को धकेलना भी शामिल है, जो पहले कोरलंग के शीर्ष पर स्थित था।
दोलखा के समान, चीन ने गोरखा जिले में सीमा स्तंभ संख्या 35, 37 और 38 के साथ ही सोलुखुम्बु के नम्पा भंज्यांग में सीमा स्तंभ संख्या 62 में भी यथास्थिति बदलने का प्रयास किया है। पहले तीन स्तंभ रुई गांव और टॉम नदी के क्षेत्रों में स्थित थे।
हालांकि नेपाल का आधिकारिक मानचित्र गांव को नेपाली क्षेत्र के हिस्से के रूप में दिखाता है और गांव के नागरिक नेपाल सरकार को कर देते रहे हैं, मगर चीन ने इस क्षेत्र पर कब्जा करके 2017 में इसे तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र चीन के साथ मिला दिया था। कई घर जो कभी नेपाल का हिस्सा हुआ करते थे, अब चीन ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया है और अब ये चीनी क्षेत्र में आ चुके हैं।
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नेपाल का कृषि मंत्रालय भी हाल ही में एक रिपोर्ट लेकर आया है, जिसमें चीन द्वारा जमीन हड़पने के कई मामलों को उजागर किया गया है। मंत्रालय ने चार नेपाली जिलों के तहत आने वाले कम से कम 11 स्थानों पर नेपाली भूमि पर चीन के कब्जे के बारे में सूचना दी है।
इन जिलों में व्याप्त अधिकांश क्षेत्र नदियों के क्षेत्र हैं, जिनमें हुमला, कर्णली नदी, संजेन नदी, रसुवा में लेमडे नदी, भुर्जुग नदी, खारेन नदी और सिंधुपालचौक में जंबू नदी, संखुवासभा में भोटेकोशी नदी एवं समजुग नदी और कामखोला नदी तथा अरुण नदी शामिल हैं।
खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के अनुसार, दिलचस्प बात यह है कि नेपाल ने 2005 से ही चीन के साथ सीमा वार्ता को आगे बढ़ाने से परहेज किया है, क्योंकि नेपाली सरकार चीन को अपनी जमीन वापस लेने से रोकना ही नहीं चाहती है। (आईएएनएस)