पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनावों ने सियासत जगत में फिर एक बार गरमा – गर्मी पैदा कर दी है । जहां अभी से ही चुनावी संग्राम शुरू हो गए हैं। सभी पार्टियां अपनी पूरी ताकत से चुनावी दौड़ को जीतने के भरसक प्रयास में जुटी है । राजनीति के इस खेल के फ़िर से वही नियम और वही खिलाड़ी । जहां सत्ता में केवल कुर्सी हासिल करना ही इनका लक्ष्य है । इसी रण में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में चुनावी संग्राम अपनी चरम सीमा पर है। दोनों ही पार्टियां एक दूसरे को कमज़ोर दिखाने का कोई रास्ता नहीं छोड़ती । पांच साल में बेहतर नतीजों के वादों के साथ , सभी पार्टियां जनता का भरोसा फिर एक बार हासिल करने में लगी है ।
इसी बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जी ने हाल ही में बंगाल दौरा किया। वहां उन्होंने एक रैली में कॉलेज ग्राउंड से बंगाल को संबोधित करते हुए कहा की यहां “अर्धसैनिक बलों” की एक नई “नारायणी सेना बटालियन” बनाई जाएगी । साथ ही उन्होंने कहा , ट्रेंनिग सेंटर का नाम वीर “चीला राय” के नाम पर रखा जाएगा।
वीर “चीला राय” शायद आज कोई – कोई ही इनके नाम से, इनकी वीरता से परिचित होगा । भारतीय इतिहास में चीला राय के नाम से विख्यात “शुक्लाध्वज” एक पराकर्मी सेनापती थे। इनका संबंध कामतपुर के कोच शाही राजवंश से था। कहा जाता है की ये अपने भाई राजा नारा नारायण के कमांडर इन चीफ थे , और उनके साम्राज्य के विस्तार में शुक्लाध्वज ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह हमारा दुर्भाग्य ही है की भारतीय इतिहासकारों ने इनकी वीरता को नजरंदाज कर दिया । महाराज विश्वा सिंह के पुत्र चीला राय का जन्म 1510 में हुआ था । इन्होंने ही कोच राजवंश की स्थापना की थी। चीला राय प्रारंभ से ही एक अद्भुत पराक्रमी वे सभी कौशल में निपुर्ण थे। इनकी वीरता व नारा नारायण की अध्यक्षता में इन्होंने अपने राजवंश का फैलाव चारो तरफ कर दिया था ।
नारा नारायण के कमांडर इन चीफ के रूप में चिला राय ने कभी ना हारने वाली एक श्रृंखला खड़ी कर ली थी। युद्ध के मैदान में जो उनका कौशल था वो आज भी असम में प्रसिद्ध है और उनके सैन्य हमलों की तेज़ी ने ही उन्हें चीला राय की उपाधि प्रदान की , जिसका अर्थ होता है “जो चील के समान तेज़ और दुश्मनों को पकड़ने में पतंग हो।
सैन्य रणनीतिकार में उस्ताद चीला राय ने कई युद्ध लड़े । और अपनी बुद्धि और कौशल से जीत भी हासिल की भूटिया, कचहरी जैसे राज्यों व अहोमों पर अपना वर्चस्व सुनिश्चित किया। 1562 में नारा नारायण व चीला राय ने अहोम साम्राज्य पर हमला किया और अपने सैनिकों के साथ मिलकर वहां के राजा पर जीत हासिल की। अहोम पर निर्णायक जीत के बाद चीला राय अपनी सेना के साथ कचहरी सम्राज्य पर हमला किया और यहां भी वह विजयी रहे । इसी तरह उन्होंने कई युद्ध लड़े , साम्राज्य पर कब्जे किए । प्रत्येक जीत ने कामात साम्राज्य को और अधिक शक्तिशाली बना दिया था। कहा जाता है की , चीला राय का नौसेना विभाग मुगल साम्राज्य के भी नौसेना विभाग से कई ज्यादा शक्तिशाली था।
चीला राय की जीत का सिलसिला युद्ध के मैदान पर नहीं बल्कि एक अभियान के दौरान खत्म हुआ। उनकी मृत्यु गंगा नदी किनारे 1571 में हुई थी। यहां से वीर चीला राय की जीत की श्रृंखला तो रुक गई थी लेकिन उनकी वीरता एवम् शौर्य ने इतिहास के पन्नों में एक सम्मानित जगह हासिल कर ली थी ।
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आज भी पराकर्मी कमांडर इन चीफ “चीला राय” की वीरता को उनकी जयंती के रूप में , खूब धूम धाम से मनाया जाता है। असम सरकार के सर्वोच्च बहादुरी पुरस्कार का नाम भी वीर “चीला राय” के नाम पर रखा गया है।
लेकिन, आज बड़ी मात्रा में लोग वीर चीला राय की कहानी से अनभिज्ञ है। चीला राय की वीरता की कहानी को उजागर करना बेहद आवश्यक है। ताकि इस समाज का बच्चा – बच्चा उनके पराकर्म से परिचित हो सके और एक नई सीख हासिल कर सके।