आज काँग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्वीटर पर, ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल, दी वायर का एक लेख साझा कर बेबुनियाद और हास्यस्पद दावे किए है। इस लेख को दी वायर के लेखक बद्रि रैना ने लिखा है। शशि थरूर ने, दी वायर के दावे को समर्थन देते हुए लिखा है की, बद्रि रैना ने बहुत ही दिलचस्प सवाल उठाए हैं। आगे जो शशि थरूर लिखते हैं, उसका सीधा अर्थ ये है की, मरने के बाद ज़मीन में दफन होने वाले मुसलमानों का हक़, मरने के बाद जल जाने वाले हिंदुओं से ज़्यादा है। इसके पीछे का तर्क ये दिया गया है की, मरने के बाद हिन्दू के अस्थियों को पानी में बहा दिया जाता है जो जा कर समुद्र में मिल जाता है, लेकिन मुसलमान व्यक्ति के मरने पर उसे इसी ‘मातृभूमि’ में दफना दिया जाता है, जिसके कारण उनका अधिकार इस भूमि पर हिंदुओं से ज़्यादा माना जाना चाहिए।
आपको बता दें कि ‘दी वायर’ हिन्दू घृणा से ग्रसित एक प्रोपगैंडा न्यूज़ पोर्टल है। यह न्यूज़ पोर्टल, समय दर समय अपने हिन्दू घृणा को खुले आम प्रदर्शित करता रहता है। कट्टर वामपंथी और मोदी विरोधी, ‘दी वायर’ ने हाल ही में हुए हिन्दू विरोधी दिल्ली दंगों का भी इल्ज़ाम हिन्दुओ पर डालने की कोशिश की थी, इसके बावजूद कि सबूत किसी और ओर इशारे कर रहे थे।
इस लेख में दी वायर के लेखक बद्रि रैना, एक मनगढ़ंत कहानी के एक ड्राइवर का हवाला देते हुए लिखते है की, जब 10 साल पहले वह किसी सेमिनार के लिए उत्तर प्रदेश गए थे तो वहाँ उनकी मुलाक़ात, अब्दुल राशिद नाम के एक ड्राइवर से हुई थी। बद्रि रैना के मुताबिक, उस ड्राइवर ने उनसे जो सवाल किए उससे उनकी सोच बदल गयी।
बद्रि रैना लिखते हैं कि अब्दुल रशीद ने उन्हे बताया की, उनका धर्म, अल्लाह के अलावा किसी और के सामने झुकने कि इजाज़त नहीं देता है। आगे अब्दुल राशिद ने सवाल करते हुए कहा की,
“क्या कभी आपने सोचा है कि जब आपकी मृत्यु होगी तो आपके शरीर को जलाने के बाद अस्थियों को गंगा या किसी नदी में प्रवाहित कर दिया जाएगा, और वह बह कर भारत के ज़मीन से दूर किसी समुद्र में चला जाएगा, लेकिन जब मैं मरुंगा, तो मैं इसी मातृभूमि में हमेशा के लिए दफन हो जाऊँगा। तो मैं पूछता हूँ कि, इस मातृभूमि पर ज़्यादा अधिकार किसका है?”
जिस पर बद्रि रैना लिखते हैं कि वह अब्दुल कि बात सुनते ही, सोच में पड़ गए कि वह मरने पर अब्दुल के विपरीत इस मातृभूमि का हिस्सा नहीं रह पाएंगे।
बद्रि रैना की यह लेख, हिन्दू घृणा से सनी मानसिक खोखलेपन का प्रमाण है, जिसमे हिंदुओं के रीति रिवाज़ों को, एक काल्पनिक मुस्लिम व्यक्ति के विचार को आधार बना कर नीचा दिखाया जा रहा है। बद्रि रैना के मुताबिक एक मुस्लिम व्यक्ति को दफ़नाने मात्र से उसका अधिकार इस भूमि पर बढ़ जाता है, लेकिन हिंदुओं द्वारा मृत शरीर को जलाए जाने से इस भूमि पर, उस हिन्दू व्यक्ति का अधिकार खत्म हो जाता है। मैंने ‘बद्रि रैना के मुताबिक’ इसीलिए लिखा है, क्यूंकी मेरा मानना है कि यह विचार किसी काल्पनिक कहानी के अब्दुल का नहीं बल्कि खुद हिन्दू घृणा से भरे बद्रि रैना का ही है। तो क्या बद्रि रैना ये बताएँगे कि इस भूमि पर यह अधिकार, दफनाये गए इस्लामिक आतंकवादी को भी मिलता है? और अगर मिलता है, तो क्या उसका अधिकार, सेना में शहीद हुए हिन्दू जवान से ज़्यादा होगा, जिसे धार्मिक परम्पराओं के अनुसार जलाया गया है? क्या अब भूमि पर अधिकार उसके कृत्य से नहीं बल्कि जलाने और दफ़नाने से तय किया जाएगा?
अगर बात ऐसी ही है, तो फिर दी वायर, शशि थरूर और बद्रि रैना जैसे हिन्दू घृणा से ग्रसित लोगों के अल्पज्ञान को बढ़ाते हुए मैं बताना चाहता हूँ की जब एक हिन्दू व्यक्ति को जलाया जाता है, तो उस जलते हुए चिता से निकले धुएँ का एक एक कण इसी हवा में प्रवाहित हो कर वायुमंडल में चक्कर लगाने लगते हैं। जब शरीर जल कर राख़ हो जाता है, तो वह राख़ इसी मातृभूमि के मिट्टी का हिस्सा बन जाता है। रिवाज़ों के तहत जब बची अस्थियों को गंगा या किसी पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है, तो अस्थियों के रूप में मौजूद उस मृत व्यक्ति के शरीर के कण, पानी के साथ बहते हुए देश के विभिन्न हिस्सों तक पहुँच जाते हैं। तो बात इतनी सी है, की कोई दफन होने मात्र से, 2 गज की ज़मीन पर अपने अधिकार का दावा करने लगता है, तो वहीं, कोई ज़मीन, नदी, हवा व ब्रह्माण्ड के हर अनु में मौजूद हो कर भी अपना असंगत दावा नहीं ठोकता। तो बताएं, इस ब्रह्माण्ड पर ज़्यादा अधिकार किसका?