बिरसा मुंडा: स्वतंत्रता संग्राम के अमित छवि!

स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी भूमिका निभाने वाले आदिवासी जनजाति के भगवान बिरसा मुंडा सदा के लिए स्वतंत्रता के अमिट चिन्ह बन गए थे।

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Birsa munda history punyatithi
(NewsGram Hindi, साभार: Wikimedia Commons)

बिरसा मुंडा के शौर्य एवं देश-प्रेम से देश का हर एक नागरिक चिर-परिचित होगा। 9 जून को देश भर में बिरसा मुंडा के शहादत को याद किया जाता है। आदिवासी समुदाय के लिए बिरसा मुंडा, भगवान का दर्जा प्राप्त करते हैं। महज 24 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कहने वाले इस स्वतंत्रता सेनानी ने अंग्रेजों और मिशनरियों के खिलाफ एक बड़े मुहीम का नेतृत्व किया था।

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान झारखंड) के उलिहातु में सुगना मुंडा और कर्मी हातू के घर हुआ था। उनका जन्म गुरुवार को हुआ था, इसलिए मुंडा जनजाति के रीति-रिवाजों के अनुसार, उनका नाम दिन के नाम पर रखा गया था। मिशनरियों द्वारा चलाए मुहीम की वजह से उन्हें जबरन ईसाई धर्म को अपनाना पड़ा, किन्तु कुछ समय बाद ही बिरसा मुंडा ने नए धर्म बिरसाइत की स्थापना की। यह धर्म एक ईश्वर में विश्वास करता है और उन्हें अपने मूल धार्मिक विश्वासों पर लौटने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके उपरांत बिरसा मुंडा की लोकप्रियता और अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। जो लोग बिरसा के पास अपनी समस्या लेकर आते थे उन्हें वह ‘धरती अब्बा’ के नाम से पुकारते थे।

बिरसा मुंडा द्वारा दिए आजादी के नारे को आज भी स्मरण किया जाता है और वह उद्घोष है ‘अबुआ राज सेतेर जाना, महारानी राज टुंडू जाना’ जिसका अर्थ है ‘रानी का राज्य समाप्त हो जाए और हमारा राज्य स्थापित हो जाए’। इसी उद्घोष के साथ बिरसा मुंडा ने अंग्रेज शासन से लड़ने के के लिए गुरिल्ला सेना तैयार की।

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बिरसा मुंडा।(Wikimedia Commons)

अंग्रेज सरकार पर बिरसा मुंडा द्वारा कई हमले किए गए। उनका केवल एक लक्ष्य था अंग्रेज साम्राज्य का विनाश। उनके इस आंदोलन से अंग्रेज इस तरह भयभीत हो गए थे कि, बिरसा मुंडा पर उस समय 500 रुपए का इनाम रखा गया था। साथ ही उन्हें पकड़ने के लिए 150 लुगों की सेना को भेजा गया था। बिरसा उस समय किसी न किसी तरह बचने में सफल रहे, किन्तु उन्हें कुछ समय बाद पकड़ लिया गया। पकड़े जाने के बाद उन्हें रांची के जेल में भेज दिया गया था।

वर्ष 1900 दिनांक 9 जून की सुबह खबर मिली की बिरसा मुंडा का संदिघ्ध परिस्थितियों में निधन हो गया। अंग्रेजों द्वारा कहा गया कि उनकी मृत्यु बीमारी के कारण हुई किन्तु यह आशंका जताई गई है कि आंदोलन पर लगाम लगाने के लिए बिरसा को जहर देकर मार दिया गया। इस तरह स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी भूमिका निभाने वाले आदिवासी जनजाति के भगवान बिरसा मुंडा सदा के लिए स्वतंत्रता के अमिट चिन्ह बन गए। आज भी बिरसा मुंडा को उसी श्रद्धा एवं सम्मान से स्मरण किया जाता है जिस तरह उनके अनुयायी बिरसा के जीवित रहते करते थे।

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