बिपिन चंद्र पाल पुण्यतिथि: एक मुखर वक्ता और नायक व्यक्तित्व, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का नया मार्ग दिखाया था

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी नेताओं में से एक बिपिन चंद्र पाल को आज यानि 20 मई के दिन, उनके पुण्यतिथि के लिए स्मरण किया जाता है।

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Bipin Chandra Pal Lala Lajpat Rai of Punjab, Bal Gangadhar Tilak of Maharashtra, and Bipin Chandra Pal (right) of Bengal, the triumvirate were popularly known as Lal Bal Pal indian freedom fighter
(NewsGram Hindi)

बिपिन चंद्र पाल, वह नेता थे जिन्होंने बंगाल विभाजन के समय स्वतंत्रता संग्राम को अपने मुखर विचारों से नई दिशा प्रदान की थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी नेताओं में से एक बिपिन चंद्र पाल को आज यानि 20 मई के दिन, उनके पुण्यतिथि हेतु स्मरण किया जाता है। बिपिन चंद्र पाल उस तिकड़ी का हिस्सा थे जिनके भाषणों और क्रांतिकारी आंदोलनों की मिसाल आज भी दी जाती है और वह तिकड़ी है “लाल-बाल-पाल” की। इस तिकड़ी में ‘लाल’ थे लाला लाजपत राय, ‘बाल’ थे बाल गंगाधर तिलक और पाल थे स्वयं बिपिन चंद्र पाल।

यह वही तिकड़ी थी जिन्होंने अंग्रेज सरकार से पूर्ण-स्वराज्य की मांग स्पष्ट रूप से उठाई थी। इनके क्रांतिकारी भाषणों की वजह से ही कई युवाओं ने देश की आजादी के लिए रणभूमि में उतरने का फैसला किया था। बिपिन चंद्र पाल ने कई समाचार पत्रों में अपने लेख के द्वारा भारतीय जनमानस तक अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचार के विषय में अवगत कराया था और साथ ही देश भर में पूर्ण-स्वराज की मांग हर एक राष्ट्र-भक्त के भीतर समाहित कर दिया था। देश में विदेशी सामान का बहिष्कार और स्वदेशी का उपयोग उनके लेख और भाषणों के कारण संभव हो पाया था।

अधिक से अधिक देश भक्तों तक उनकी आवाज और राष्ट्र-भक्ति की बातें पहुंचे उसके लिए उन्होंने पत्रकारिता का हाथ थामा। उन्होंने ‘डेमोक्रेसी’ तथा ‘स्वतंत्र’ जैसी अनेक पत्रिकाओं का संपादन किया। ‘न्यू इंडिया’, ‘वंदे मातरम’ और ‘स्वराज’ भी, उनकी महत्वपूर्ण पत्रिकाएं थीं। साथ ही ‘अमृत बाजार पत्रिका’ में भी उन्होंने अपना योगदान दिया। वर्ष 1906 में अंग्रेजों के विरुद्ध जनमत तैयार करने और स्वतंत्रता सेनानी अरविन्द घोष पर चल रहे राजद्रोह के मुकदमे में गवाही न देने पर पाल को छह मास का कारावास हुआ था। किन्तु, बेड़ियों से ज्यादा कलम में ताकत होती है यह बात बिपिन चंद्र पाल ने हमे सिखाया।

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लाल, बाल एवं पाल(Wikimedia Commons)

बिपिन चंद्र पाल गाँधी जी के विचारों से सहमत नहीं थे वह इसलिए क्योंकि गाँधी जी का अंग्रेजों के प्रति रवैया उन्हें स्वीकार नहीं आता था, जिसके लिए वह समय-समय पर गाँधी जी की आलोचना करने से भी नहीं चूकते थे। यह भाव पाल के स्पष्ट स्वभाव को दर्शाता है, और इसी स्पष्टता के लिए उनका नाम आज भी स्मरण किया जाता है।

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लाल, बाल एवं पाल इन तीनों की तिकड़ी ने स्वतंत्रता के लिए चल रहे संग्राम को नया मार्गदर्शन प्रदान किया था। उनके दल को ‘गरम दल’ बुलाया जाता था, वह इसलिए क्योंकि यह दल कथनी में नहीं करनी में विश्वास रखता था। साथ ही उनका यह मानना था कि ‘नरम दल’ (वह दल जिसने आजादी के बाद भारत पर राज किया और आजादी का सारा श्रेय स्वयं लिया) के उपायों से यह देश आजाद नहीं होगा। विनती और असहयोग से तो बिलकुल भी नहीं, जिस वजह से इस तिकड़ी को क्रांतिकारी आंदोलनों का जनक माना जाता है।

बिपिन चंद्र पाल ने कई पुस्तकों का भी लेखन किया है जिनमें से प्रमुख पुस्तकें हैं: नैशनैलिटी एंड एम्पायर, स्वराज एंड द प्रेसेंट सिचुएशन, द बेसिस ऑफ रिफॉर्म, इंडियन नैशनलिज्म, द सोल ऑफ इंडिया अदि।

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