बंगाल में सियासी घमासान के बीच उठ रहे हैं कई नए मुद्दे

भाजपा के बड़े नेताओं द्वारा बंगाल में जन सभाएं तेज हो गई हैं वहीं बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस से कई नेता किनारा कर रहे हैं।

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बंगाल में किसकी सरकार।(NewsGram Hindi)

बंगाल चुनाव के तारिखों का ऐलान अभी तक हुआ भी नहीं है मगर दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप के बाण 2020 से बरसने शुरू हो गए थे। मगर यह तो साफ़ है कि हर बार की तरह इस बार भी बंगाल चुनाव पर फतह करना आसान काम नहीं होगा। जहाँ एक तरफ भाजपा के बड़े नेताओं द्वारा बंगाल में जन सभाएं तेज हो गई हैं वहीं बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस से कई नेता किनारा कर या तो निर्दलीय लड़ रहे हैं या भाजपा में शामिल हो चुके हैं। कवायद यह लगाई जा रही है कि इस बार भाजपा का पलड़ा भारी है। किन्तु चुनाव नतीजों से पहले कुछ भी कहना असंभव है।

कल केंद्रीय मंत्री अमित शाह दो दिवसीय बंगाल दौरे पर पहुंचे थे। किन्तु चौकाने वाली बात यह रही कि जिस जगह अमित शाह जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे उस से कुछ दूर पर ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी जनसभा को सम्बोधित कर रहीं थीं। ऐसा पहली बार हो रहा था कि दो बड़े नेताओं की रैली आमने-सामने है। एक तरफ अमित शाह तृणमूल पर आरोप लगा रहे थे वहीँ ममता बनर्जी उसका जवाब दे रही थीं।

जिस रफ़्तार से तृणमूल के पूर्व नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं उस पर अमित शाह ने कुछ दिन पहले चुटकी लेते हुए कहा था कि “पश्चिम बंगाल में जिस तरह एक के बाद एक तृणमूल कांग्रेस के नेता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि राज्य में विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी में ममता बनर्जी के अलावा कोई भी नहीं बचेगा।”

तृणमूल कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक सुवेन्दु अधिकारी अपने संग 5 और विधायकों को भाजपा में लाने में सफल रहे। जिससे माना यह गया कि तृणमूल कांग्रेस कमजोर हो रही है। किन्तु इस मुद्दे पर चुटकी लेते हुए TMC ने यह बयान जारी कि ” जो विधायक भाजपा में गए हैं, उनका अपना कोई जनाधार नहीं हैं और वे अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सके। उनके जाने से तृणमूल कांग्रेस की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लालच में नेताओं के साथ छोड़ने से तृणमूल कांग्रेस में कचरे की सफाई हुई है। पार्टी का साथ छोड़ने वालों की जगह नए चेहरों को मौका मिलेगा।”

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अमित शाह और ममता बनर्जी आमने-सामने।(फाइल फोटो)

बंगाल के सियासी गलियारे  इस साल भगवान श्री राम भी खूब सुर्ख़ियों में रहे हैं और शायद आगे भी रहेंगे, क्योंकि इसी साल जब प्रधानमंत्री मोदी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के उपलक्ष में होने वाले कार्यक्रम पर पश्चिम बंगाल पहुंचे थे तब उनके समर्थकों ने जय श्री राम का नारा बुलंद किया था जिस पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भड़क गईं थीं और इस वाकये को अपने अपमान से जोड़ दिया था। जिसके बाद ममता जी को कई राम भक्तों ने सोशल मीडिया के माध्यम से आड़े हाथ लिया था।

इसी मुद्दे पर अपना बचाव करते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि हम ‘जय श्री राम’ नहीं ‘जय सिया राम’ का प्रयोग करते हैं। खैर सियासी माहौल में हर बात पर सफाई देना और आरोप लगाना, लगा रहता है।

अब बात करते हैं उस पार्टी की जिसे हर राज्य में चुनाव लड़ने के लिए किसी न किसी का सहारा लेना पड़ता है। जी हाँ! कांग्रेस वामपंथी गुट के संग मिलकर बंगाल की सत्ता पर पहुँच बनाने की पहल करेगी। किन्तु जिस समय सुवेन्दु अधिकारी भाजपा में आए थे उसी बीच कांग्रेस के भी चार विधायक भी भाजपा खेमे में शामिल हो गए। माना यह जा रहा है कि उन्होंने बहती गंगा में हाथ धोई है।

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बहरहाल, बंगाल में धर्म विशेष की राजनीति भी चरम पर है एक तरफ भाजपा, हिन्दुओं को अपने साथ लाने की कवायद में है। वहीं तृणमूल और लेफ्ट मुस्लिमों को अपने-अपने गुट में लाने की जुगाड़ ढूंढ रहे हैं। इसी बीच खबर यह भी है कि एआईएमआईएम पार्टी के प्रमुख असदुद्दीन औवेसी भी बंगाल सियासत में अपने कदम रखेंगे। जिस पर चुटकी लेते हुए भाजपा नेता साक्षी महाराज ने कहा था कि “ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की मदद की थी।”  इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि “पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों में भी ओवैसी हमारी मदद करेंगे।”

कौन किसकी और कितनी मदद करेगा, वह तो समय और बंगाल की जनता ही बताएगी। किन्तु अभी का माहौल ऐसा है कि “हर तरफ शोर है मेरा मेरे का, वो हमारी सुने या हम उनकी सुने।”

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