‘अटल बिहारी वाजपेयी’, खुद में एक कहानी!

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं प्रखर वक्ता, दिवंगत नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी कलम से देश और युवाओं को जोश और ऊर्जा से भरा है। आइए उन्ही की कविताओं से आज को समझते हैं।

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भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी।(Wikimedia Commons )

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं प्रखर वक्ता, दिवंगत नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी कलम से देश और युवाओं को जोश और ऊर्जा से भरा है। उनकी कविताएं और भाषणों में देश की खुशहाली और बदहाली दोनों का स्वरूप दिखाई दे जाता है। अटल जी ने अपने जीवन में कई कविताओं की रचना की जिन्हें आज भी कई प्रतियोगिताओं एवं सार्वजनिक मंचों पर दोहराया जाता है। 25 दिसम्बर 1924, ग्वालियर में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे। 1996 में 13 दिन के लिए, फिर 1998 से 1999 के बीच 13 महीने के लिए और 1999 में पूरे 5 साल के कार्यकाल के लिए। 14 साल की आयु में ही राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ में स्वयंसेवक के रूप में हिस्सा बने और 16 साल की आयु में संघ के सक्रीय सदस्य भी बन गए। जिसके उपरांत उन्होंने राजनीतिक गलियारे में कदम रखा। आज उनके जन्मदिवस पर उनके कलम से पिरोई कुछ रचनाओं के अंशों को आपके समक्ष रखता हूँ, जिस से आपको यह बोध हो जाएगा कि भारत को बाँटने वालों को अटल जी किस तरह जवाब देते थे।

१. कदम मिलाकर चलना होगा!

उजियारे में, अंधकार में,

कल कहार में, बीच धार में,

घोर घृणा में, पूत प्यार में,

क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,

जीवन के शत-शत आकर्षक,

अरमानों को ढलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।

२. पंद्रह अगस्त की पुकार!

दिन दूर नहीं खंडित भारत को

पुन: अखंड बनाएँगे।

गिलगित से गारो पर्वत तक

आज़ादी पर्व मनाएँगे॥

उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से

कमर कसें बलिदान करें।

जो पाया उसमें खो न जाएँ,

जो खोया उसका ध्यान करें॥

३. मैं न चुप हूँ न गाता हूँ!

सवेरा है मगर पूरब दिशा में

घिर रहे बादल

रूई से धुंधलके में

मील के पत्थर पड़े घायल

ठिठके पाँव

ओझल गाँव

जड़ता है न गतिमयता

स्वयं को दूसरों की दृष्टि से

मैं देख पाता हूं

न मैं चुप हूँ न गाता हूँ

‘अटल बिहारी वाजपेयी’ (Pinterest)

४. झुक नहीं सकते!

दीप निष्ठा का लिये निष्कंप

वज्र टूटे या उठे भूकंप

यह बराबर का नहीं है युद्ध

हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध

हर तरह के शस्त्र से है सज्ज

और पशुबल हो उठा निर्लज्ज

किन्तु फिर भी जूझने का प्रण

अंगद ने बढ़ाया चरण

प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार

समर्पण की माँग अस्वीकार

दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते

टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते

५. मैं अखिल विश्व का गुरू महान!

मैं अखिल विश्व का गुरू महान,

देता विद्या का अमर दान,

मैंने दिखलाया मुक्ति मार्ग

मैंने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान।

मेरे वेदों का ज्ञान अमर,

मेरे वेदों की ज्योति प्रखर

मानव के मन का अंधकार

क्या कभी सामने सका ठहर?

मेरा स्वर नभ में घहर-घहर,

सागर के जल में छहर-छहर

इस कोने से उस कोने तक

कर सकता जगती सौरभ भय।

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अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं एवं रचनाओं को आज हमें समझने और प्रयास में लाने की जरूरत है, नहीं तो बाँटने वाले मुस्काते रहेंगे और हम ताली पीटते रह जाएंगे।

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