विशाखापत्तनम के कंक्रीट जंगल के बीच शख्स ने उगाया असली जंगल

आंध्र प्रदेश के बंदरगाह शहर विशाखापत्तनम के ठीक बीच में बड़ी इमारतों के कंक्रीट के जंगल से घिरा एक जैव विविधता पार्क अनूठी राहत देता नजर आता है।

By: नरेंद्र पुप्पाला

आंध्र प्रदेश के बंदरगाह शहर विशाखापत्तनम के ठीक बीच में बड़ी इमारतों के कंक्रीट के जंगल से घिरा एक जैव विविधता पार्क (बायोडायवर्सिटी पार्क) अनूठी राहत देता नजर आता है। पिछले 20 सालों में हजारों युवा प्रभावशाली छात्रों ने इस जैव विविधता पार्क में स्वेच्छा से काम किया है।

विशाखापत्तनम का यह बायोडायवर्सिटी पार्क वैसे तो अन्य ऐसे पार्क की तुलना में महज 3 एकड़ की छोटी सी जगह में फैला है लेकिन यह तकरीबन 2,000 से ज्यादा पेड-पौधों की प्रजातियों, तितलियों की 160 किस्मों, पक्षियों की 60 प्रजातियों समेत कई जीवों का घर है।

जैवविविधता का यह मानव निर्मित आश्रय एक समुद्री जीवविज्ञानी से जीवविज्ञानी बने प्रोफेसर डॉ.एम.राम मूर्ति के अथक प्रयासों का परिणाम है, जिन्होंने 2001 में अपनी पत्नी के साथ डॉल्फिन नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी की स्थापना की थी। यह पार्क 66-वर्षीय सेवानिवृत्त प्रोफेसर, उनकी पत्नी और दशकों के दौरान उनके द्वारा पढ़ाए गए सैकड़ों छात्रों की मेहनत से बना है। जाहिर है शुरुआत तो छोटी थी लेकिन आज यह पार्क अपने आप में एक मिसाल बन चुका है।

प्रो.मूर्ति कहते हैं, “शुरू में हम वृक्षारोपण अभियान, जागरूकता शिविर, नेचर ट्रैक आदि आयोजित करते थे। फिर छात्रों ने महसूस किया कि हमारे पास कुछ और होना चाहिए और इस तरह से एक जैव विविधता पार्क बनाने का विचार पैदा हुआ। एक ऐसी जगह जहां छात्र वास्तव में प्रकृति को सीधे तौर पर देख सकें। इसके लिए हमने देहरादून, बेंगलुरु और कोझीकोड जैसी जगहों से बीज और पौधे लाए।”

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प्रोफेसर डॉ.एम.राम मूर्ति।(आईएएनएस)

दशकों पहले इस प्रयास के लिए जिला प्रशासन ने रानी चंद्रमणि देवी अस्पताल के परिसर में एक हजार स्क्वोयर यार्ड जमीन आवंटित की लेकिन अस्पताल के कचरे और खरपतवार से अटी जमीन को साफ करना भी बड़ी चुनौती थी। खर धीरे-धीरे जमीन उर्वर हुई और मेहनत के नतीजे दिखने शुरू हुए। फिर कुछ और जमीन आवंटित हुई।

इस पार्क में 3 अलग-अलग पारिस्थितिक तंत्र हैं – जलीय, रेगिस्तान और पहाड़ी। उपमहाद्वीप के लगभग सभी प्रमुख पौधे और पेड़ यहां लगे हुए हैं। वनस्पतियों की अलग-अलग श्रेणियों के लिए अलग-अलग खंड बनाए गए हैं। यहां तक कि जीवाश्म पौधों के लिए समर्पित एक खंड है।

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मूर्ति कहते हैं, “हमारा पार्क वास्तव में एक अद्भुत, जीवित प्रयोगशाला है। सीबीआई या अन्य बोर्ड की सभी पाठ्य पुस्तकों में जो कुछ भी पढ़ाया जा रहा है, हम उसे यहां दिखा रहे हैं।”

पिछले तीन दशकों में इस पार्क में अपनी मेहनत की कमाई के 40 लाख रुपये लगाने के बाद अब वे उम्मीद करते हैं कि राज्य सरकार इस काम में मदद के लिए आगे आएगी। वे कहते हैं, “आने वाली पीढ़ियों के लिए इन पौधों के अद्भुत कीमती जीन बैंक को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। हम चाहते हैं कि सरकार इस काम में मदद के लिए आगे आए, तो हमें बहुत खुशी होगी।”(आईएएनएस-SHM)

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