क्या आप जानते हैं कि धरती पर रह रहा, सबसे पुराना जीव कौन है ?

UWA के वैज्ञानिकों के अनुसार भूमध्य सागर के तल पर उगने वाले समुद्री घास (Seagrass) धरती पर रह रहे सबसे प्राचीन जीव हो सकते हैं।

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Mediterranean Self Cloning Seagrass - Oldest Living Thing
समुद्री घास ही तटीय पारिस्थितिक तंत्रों की नींव होते हैं। (Unsplash)

कहा जाता है कि तस्मानियाई पौधे (Tasmanian plant) लगभग साठ हज़ार वर्ष पुराने हैं। पर वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसा खोज निकाला है जो उन तस्मानियाई पौधों से भी अत्यंत प्राचीन है।

असल में, भूमध्य सागर (Mediterranean Sea) के तल पर उगने वाले समुद्री घास, इस ग्रह के सबसे प्राचीन, धरती पर रहने वाले जीव हो सकते हैं। यह दावा मेरा नहीं बल्कि, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में शोध कर, ऐसा अनुमान लगाया है। 

तो क्यों ना पहले मैं आपको भूमध्य सागर के संबंध में भी कुछ तथ्यात्मक बातें बता दूँ। 

भूमध्य सागर

भूमध्य का अर्थ हुआ धरती के मध्य का भाग। प्राचीन काल में यूनान, रोम, अरब, स्पेन जैसे देशों के बीच स्थित होने के कारण इसका यह नाम पड़ा। भूमध्य सागर का क्षेत्रफल, भारत के क्षेत्रफल का तकरीबन तीन-चौथाई है। और वर्तमान में यह अटलांटिक महासागर से जुड़ा हुआ है। 

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भूमध्य सागर Mediterranean Sea
भूमध्य सागर। (Twitter)

एक लाख साल पुराने

अब पुनः वैज्ञानिकों की छानबीन की बात करें तो, शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके अध्ययन से यह बात साफ होती है कि यह जलमग्न वनस्पतियां लगभग ‘ एक लाख साल ’ पुरानी हैं।

चिरंजीवी अस्तित्व का मूल कारण 

वैज्ञानिकों का कहना है कि सेल्फ-क्लोनिंग और अलैंगिक रूप से खुद को जन्म देने की क्रिया को करने की क्षमता ही, इनके चिरंजीवी अस्तित्व का मूल कारण है। 

जिन जगहों पर शोधकर्ताओं ने जांच की है, वो सतह दस हज़ार साल से सूखी है और उस वक़्त समुद्र का स्तर आज के मुकाबले सौ मीटर कम हुआ करता था।

वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी (UWA)

अध्ययन का नेतृत्व पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय के महासागर संस्थान द्वारा किया गया था। पेश की गयी रिपोर्ट को प्लॉस वन पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

आपको बता दूँ कि सागर के निचले भाग में उगने वाले समुद्री घास ही तटीय पारिस्थितिक तंत्रों (coastal ecosystems) की नींव होते हैं। निराशाजनक बात है कि यह समुद्री घास पिछले बीस सालों से अपने पतन की ओर लगातार बढ़ रहे हैं। 

वैज्ञानिकों ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह जीव भी अब जलवायु के बदलते चक्र में खुद को ढालने में असमर्थ साबित होंगे। 

यह आर्टिक्ल VOA पर छपे एक अंग्रेज़ी लेख से प्रेरित है।

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