“यह है मेरा जवाब”

कोटा रानी कश्मीर की वह शासक थीं जिन्होने ने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। मगर उनके बलिदान को फ़ारसी इतिहासकारों ने मिटाने की कोशिश की।

0
850
last queen of kashmir kota rani
कोटा रानी, कश्मीर की शासक (काल्पनिक चित्र, Twitter)

‘भारत’ एक ऐसा देश जहां वीरता और उसके किस्से कण कण में छुपे हैं। चाहे वह मराठाओं का शौर्य हो या माता पद्मावती का जौहर हो, हिंदुस्तान सदैव इन वीर, वीरांगनाओं का ऋणी व आभारी रहेगा। मगर आज के इतिहासकारों ने एक ऐसी वीरांगना को अतीत में ही खो दिया है, जिन्होंने धर्म एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे। 

इसे न तो हम कहानी कह सकते हैं और न ही कोई कथा, यह तो एक गाथा है जिसे फिरंगी इतिहासकारों ने दबाने की कोशिश की है और आज भी लोग इस गाथा से परिचित नहीं हैं। यह गाथा है कश्मीर की कोटा रानी की, जिसे फ़ारसी इतिहासकारों ने मिटाने की भरसक कोशिश की और आज के वास्तविकता को देखते हुए लगता है शायद वे सफल हो गए हैं। 

इस गाथा में धर्म को बचाने के लिए साम,दाम,दंड,भेद हर हतकन्डो का प्रयोग किया गया है। 

यह भी पढ़ें: नेताजी की कथित अस्थियों से जुड़े वो 5 तथ्य जो आप नहीं जानते हैं

यह गाथा शुरू होती है कश्मीर के शासक सहदेव के साथ, वह 1305 में  कश्मीर की गद्दी पर बैठा और 1326 तक शासन किया। सहदेव के सेनापति थे राम चंद्र और उन्ही की बेटी हैं कोटा रानी। 1319 में तातार के सेनापति डुलचू द्वारा आक्रमण के बाद सहदेव अपने भाई उदयन के साथ किश्तवाड़ भाग गया मगर उसके सहयोगी रिन्चिन, शाहमीर और उसके सेनापति टिके रहे। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब तातार सेनापति डुलचू वापस जा रहा था तो देवकर दर्रा पार करते हुए उसकी और उसके साथ जा रहे सभी लोगों की मौत हो गई। मगर उसके जाने के बाद कश्मीर बर्बाद हो गया, जिसके बाद राम चंद्र ने खुद को राजा घोषित कर लिया। 

इस तरफ रिंचिन जो की बौद्ध था, उसके मन में सत्ता का लालच उमड़ पड़ा और धोके से राम चंद्र को मरवा दिया। अब कश्मीर में बौद्ध शासन था और रिंचिन ने कोटा रानी से विवाह रचा लिया। कहा जाता है कि यह प्रस्ताव कोटा रानी की तरफ से ही आया था, यह इस लिए कि कश्मीर में धर्म को बचाया जा सके और यह तभी संभव है अगर शासक का हिन्दू धर्म के प्रति ज़्यादा झुकाव हो। कोटा रानी ने इस हद तक रिंचिन को हिन्दू के प्रति आकर्षित कर दिया था कि वह धर्म परिवर्तन के लिए भी तैयार हो गया। 

मगर यह कश्मीर का दुर्भाग्य था या बुद्धि का भ्रष्ट होना था कि रिंचिन के धर्म परिवर्तन को हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने स्वीकार नहीं किया। रिंचिन इस बात से इतना आहत हुआ कि उसने मुस्लिम धर्म अपनाया और कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक बन गया। मगर न तो उसने हिन्दुओं पर अत्याचार किए और न ही जबरन धर्म परिवर्तन को सहयोग दिया। 

जिस समय रिंचिन की मृत्यु हुई राजकुमार छोटा था, तब कोटा रानी ने राजकाज संभालने का फैसला किया और तभी उदयन की सेना सामने आ कड़ी हुई। मगर कोटा रानी ने धर्म की रक्षा और संस्कृति को बरकरार रखने के लिए समर्पण को ही उचित उपाय समझा और राज्य के साथ साथ स्वयं को भी समर्पित कर दिया और पुरे प्रशासन को संभालने लगी। 

इधर कश्मीर पर फिर हमला हुआ और राजा अपनी पत्नी और राज्य को छोड़कर लद्दाख की तरफ भाग गया, मगर कोटा रानी नहीं भागी और उन्ही के जोशीले और कर्तव्य निर्वाहन को याद दिलाने वाले भाषणों ने सैनिकों में जोश की ज्वाला को जन्म दिया और इसी जोश ने विपक्षी सेना को भागने पर मजबूर कर दिया। उन्ही के भाषण का यह परिणाम था कि स्थानीय नागरिकों ने भी युद्ध में हिस्सा लिया और इसी युद्ध के पश्चात् उदयन फिर वापस अपने राज्य आया। 

सन 1341 में उदयन की मृत्यु के साथ कश्मीर पर फिर खतरा मंडराने लगा और यह डर तब वास्तविकता में बदला जब शाहमीर ने गद्दी संभाली और कश्मीर में इस्लाम शासन को हुकूमत में लाया। 

कहा जाता है कि शाहमीर ने कोटा रानी को विवाह का प्रस्ताव भेजा और निकाह के लिए मजबूर भी कर दिया। जिस रात में वह प्रतीक्षा कर रहा था, तब उसके सामने ही कोटा रानी ने अपने पेट में खुद ही खंजर गोदते हुए कहा “यह है मेरा जवाब!”

यह भी पढ़ें: क्या संस्कृति को बचाने पर ज़ोर केवल भाषणों में ही दिया जाएगा?

दोस्तों! इस गाथा को फ़ारसी इतिहासकारों ने अन्य भारतीय इतिहास की तरह मिटाने की कोशिश की, और इसी का परिणाम है कि हमारे पास कोटा रानी की न तो जन्म तिथि और न ही कोई चित्र मौजूद है। जो कइयों के लिए आदर्श हो सकती थीं और आज भी हो सकती हैं उन्ही को इतिहास ने भुला दिया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here