अंग्रेजों ने ‘फूट डालो, राज करो’ का खेल खेला और लिबराधारियों ने ‘हिन्दू बांटो आंदोलन’ का!

हिन्दू एक धर्म है या विचार इसका फैसला आज के समय में ग्रंथ, पुराण या धर्माधिकारी नहीं करते, अपितु इसका फैसला करता है कंप्यूटर के सामने बैठा वह तथाकथित बुद्धिजीवि करता है।

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The British played the game of 'Divide, Rule' and the Liberals played the game of 'Hindu Divide Movement'; अंग्रेजों ने 'फूट डालो, राज करो' का खेल खेला और लिबराधारियों ने 'हिन्दू बांटो आंदोलन' का!
(NewsGram Hindi, Shantanoo Mishra)

हिन्दू या हिंदुत्व, एक धर्म है या विचार इसका फैसला आज के समय में ग्रंथ, पुराण या धर्माधिकारी नहीं करते, अपितु इसका फैसला करता है कंप्यूटर के सामने बैठा वह तथाकथित बुद्धिजीवि जिसे न तो धर्म का ज्ञान है और न ही सनातन संस्कृति की समझ। इन्हें हम आम भाषा में लिब्रलधारी या लिब्रान्डू भी कहते हैं। यही तबका आज देश में ‘हिन्दू बांटों आंदोलन‘ का मुखिया बन गया है। समय-समय पर इस तबके ने देश में हिन्दुओं को हिंदुत्व के प्रति ही भड़काने का काम किया है। महिलाऐं यदि हिन्दू परंपरा अनुसार वस्त्र पहनती हैं तो वह इस तबके के लिए अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट है और साथ ही यह पुराने जमाने का है, किन्तु इसी तबके के लिए हिजाब सशक्तिकरण की मूरत है। जब लव-जिहाद या धर्मांतरण के विरुद्ध आवाज उठाई गई थी तब भी इस तबके ने इसे प्रेम पर चोट या अभिव्यक्ति की आजादी जैसा बेतुका रोना रोया था। दिवाली पर जानवरों के प्रति झूठा प्रेम दिखाकर पटाखे न जलाने की नसीहत देते हैं और बकरी-ईद के दिन मौन बैठकर, सोशल मीडिया पर मिया दोस्त द्वारा कोरमा खिलाए जाने का इंतजार करते हैं।

सवाल करना एक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, किन्तु स्वयं को लिब्रलधारी बताने के लिए श्री राम और सनातन धर्म की परम्पराओं पर प्रश्न-चिन्ह उठाना कहाँ की समझदारी है? इसी तबके ने भारत में मुगलिया शासन को स्वर्णिम युग बताया था, साथ ही हिन्दुओं को मारने वाले टीपू सुल्तान जैसे क्रूर शासक को करोड़ों का मसीहा भी बताया था। लेकिन आज जब भारत का जागरुक युवा ‘छत्रपति सम्राट शिवाजी महाराज’ का नाम गर्व से लेता है तो यह तबका उसे भी संघी या बजरंग दल का बताने में देर नहीं करता। इस तबके के लिए हिंदुत्व धर्म नहीं एक पार्टी की विचारधारा और यह इसी मानसिकता को विश्व में अन्य लोगों तक पहुंचाकर हिन्दुओं को बदनाम करने का कार्य कर रहे हैं।

आप में से कुछ लोगों ने अनुभव भी किया होगा कि जब एक पुरोहित चोटी धारण कर रास्ते पर या सर्वजनिक वाहन में चलता है तो आस-पास के लोग उनका मजाक बनाते हैं। उनके शिखा पर तंज कसा जाता है। यदि कोई व्यक्ति तिलक या त्रिपुण्ड लगाकर घर से निकलता है तब भी उनपर आपत्तिजनक तंज या टिप्पणी की जाती है। नागा एवं अन्य साधुओं का मजाक बनाया जाता है वह भी बिना जाने कि वह साधु कितनी कठिनाई और परिश्रम से अध्यात्म के मार्ग पर इतनी दूर तक आए हैं। उन सभी को सचेत करने के लिए मेरे समक्ष एक ही उदाहरण उपस्थित है की महान गुरु चाणक्य को शिखा और वेशभूषा के लिए ही धनानंद ने अपमानित किया था, किन्तु अंत क्या हुआ, वह आज सभी को ज्ञात है।

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साड़ी या तिलक लिब्रलधारियों के लिए ओल्ड फैशन है।(Wikimedia Commons)

हिन्दू संस्कृति पर प्रश्न भीमराव अम्बेडकर के समय से उठता आया है, जिसपर कई लेख और साक्ष्य इंटरनेट पर उपस्थित हैं, किन्तु जातिवाद का चोगा पहनकर यह अम्बेडकरवादी रामायण जैसी अन्य पवित्र हिन्दू ग्रंथों को फाड़ने की बात करने से भी नहीं हिचकिचाते हैं। लिब्रलधारियों के साथ-साथ यह अलगाववादी नीली सेना(भीम आर्मी) जो स्वयं को पिछड़ी जाति का मसीहा समझते हैं, वह भी हिन्दू को हिंदुत्व के खिलाफ ही भड़काने का काम कर रहे हैं। आपको भलीभांति ज्ञात होगा कि भारत देश अनेकों संस्कृति का संगम है। यहाँ, एक त्यौहार कई नामों से और उसकी विशेषताओं से जाना जाता है। इन सभी के साथ वसुधैव कुटुंबकम का पाठ यह संस्कृति एवं सनातन धर्म हमें सिखाता आया है। किन्तु, यह अलगावादी और लिब्रलधारी बुद्धिजीवी भारत की इसी विशेषता को समाप्त करने का षड्यंत्र रच रहे हैं। इन्हीं के द्वारा इंडियन वैरिएंट, या ‘कुम्भ’ सुपर स्प्रेडर जैसे एक धर्म को अपमानित करने वाले बोल फूटे हैं। आश्चर्य तब होता है जब तमिलनाडु में ईद के कारण कोरोना के भयावह स्थिति उत्पन्न होने पर भी इनकी कलम से स्याही की एक बून्द भी नहीं टपकती है।

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जिन बुद्धिजीवियों को सनातन धर्म में कट्टरता दिखाई देती है उन्हें इसका अर्थ भी ज्ञात नहीं। सनातन धर्म का अर्थ है कि “सभी जीवों के प्रति कर्म, मन, एवं वाणी द्वारा अद्वेष, दया, और दानशीलता ही सनातन धर्म है।

एक विषय और है कि स्वयं को सेक्युलर बताकर वाह-वाही लूटने वाला व्यक्ति, एक विशेष धर्म के प्रति कुछ अलग ही मानसिकता रखता है। इनके लिए बुर्का सशक्तिकरण का प्रतीक बन जाता है, इन्हें लव-जिहाद में कोई खोट नहीं दिखाई देता है। इनके नजरिये से देखें तो ईसाई धर्मांतरण तो मिशनरियों का अधिकार है और उन्हें रोका नहीं जाना चाहिए। पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यकों पर इनके दो बोल नहीं फूटते हैं, मगर तथाकथित अल्पसंख्यक तबके के लिए यह तबका सड़कों पर, कॉलेजों में समर्थन मार्च निकालता है। क्या यही है लिब्रलगिरी?

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